परिवार के भरण पोषण को उम्र के 50 वें पड़ाव में शालिनी ने थामा ई-रिक्शा का स्टेयरिंग
शहर में चलने वाले करीब 400 ई-रिक्शा में एकमात्र महिला है झज्जर की बेटी शालिनी। बीमार होने के बावजूद भी नहीं होना चाहती किसी अन्य पर निर्भर
झज्जर [तपस्वी शर्मा] उम्र के जिस पड़ाव में इंसान आरामदायक जीवन व्यतीत करने के बारे में सोचने लगता है। उसी पड़ाव में बीमार होने के बावजूद भी स्वयं के बलबूते ही अपना जीवन-यापन कर रही है झज्जर की 50 वर्षीय बेटी शालिनी। शहर में चलने वाले करीब 400 ई- रिक्शा और आटो में से एक मात्र शालिनी ही महिला है। जो कि नारी सशक्तीकरण की सबल पहचान बनकर सामने आ रही है। पिछले कुछ समय से ई- रिक्शा चला रही शालिनी कहती है कि उसको डिस्क प्रॉबलम है। चलने में और बैठने में भी परेशानी होती है। इसलिए दुपहिया वाहन नहीं चला पाती। परिवार के दूसरे सदस्यों पर बोझ ना बनूं।
इसलिए ई-रिक्शा को अपने पांव बना लिए है। ई-रिक्शा आराम से चला भी लेती हूं और गुजर-बसर भी हो जाता है। इसके अलावा पोस्टआफिस में अभिकर्ता का कार्य भी कर रही हूं। पारिवारिक कारणों के चलते मायके में ही रह रही शालिनी के परिवार में छोटा भाई- भाभी और एक भतीजा भी है। पूरा परिवार साधारण है और मेहनत के माध्यम से जीवन-यापन कर रहा है।
काम करना है तो शर्म किस बात की
शालिनी झज्जर की पहली ई-रिक्शा चालक है। जोकि दूसरे लोगों खासकर युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनी हुई है। आमजन महिला को देखकर कहते है कि अगर महिला होकर वह ई-रिक्शा चलाते हुए अपना भरण- पोषण कर रही है। अगर सभी ऐसी सोच रखने लगे तो बेरोजगारी स्वयं ही दूर हो जाएगी। जब शालिनी से शुरूआती समय में ई-रिक्शा चलाने के अनुभव के बारे में पूछा तो उनका एक ही जवाब था। जब काम करना है तो शर्म किस बात की।
देश- विदेश में भी डंका बजा रही है झज्जर की बेटियां
झज्जर जिला वीरों की भूमि है। झज्जर के वीरों के शौर्य का बोलबाला पूरे विश्व में है तो बेटियां भी किसी से पीछे नहीं है। झज्जर की बेटियां सेना में भर्ती होकर भी देश की सेवा कर रही है तो खेलों में भी डंका बजा रही है। इसी कड़ी में एक अध्याय और जोड़ दिया है शालिनी ने । जो ई- रिक्शा चलाकर युवाओं को प्रेरणा दे रही है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। ईमानदारी, लग्न और परिश्रम के बल पर ही लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, ना कि शार्ट कट माध्यम से।