बॉक्सर बनाना चाहते थे पिता, निशांत ने चुना क्रिकेट, विजय मर्चेंट ट्राफी जिताई तो बोले गर्व है
सुनील सिंधू ने बताया कि निशांत जब छह साल का था तो वह उसे बॉक्सर बनाना चाहते थे। मगर निशांत समय मिलते ही क्रिकेट खेलने लग जाता, जिस पर उन्होंने नाराजगी भी जताई थी। मगर आज स्थिति और है
रोहतक [रतन चंदेल] आमतौर पर बच्चे उसी क्षेत्र को कार्यक्षेत्र के तौर पर चुनते हैं जिसमें माता पिता की सहमति हो। मगर कुछ लोग होते हैं तो सिर्फ अपने दिल की आवाज ही सुनते हैं। यही कारण है कि वो उस क्षेत्र में महारत भी हासिल करते हैं। एक ऐसा ही वाकया हरियाणा के रोहतक का भी है। हरियाणा को विजय मर्चेंट ट्राफी जिताने में विशेष योगदान देने वाले कप्तान निशांत सिंधू को उनके पिता सुनील बॉक्सर बनाना चाहते थे। मगर निशांत के मन में क्रिकेट के प्रति जुनून को उनके कोच ने पहचाना, जिसके बाद पिता ने उन्हें क्रिकेट खिलाना शुरू कर दिया।
इसके बाद निशांत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने खेल की बदौलत हरियाणा को पहली विजय मर्चेंट ट्राफी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इस जीत ने निशांत के पिता सुनील सिंधू का सिर फख्र से ऊंचा कर दिया। विजय नगर निवासी सुनील का कहना है कि बेटे के यहां तक पहुंचने में उसके कोचों की खास भूमिका रही है। उन्होंने ही निशांत की प्रतिभा को समय पर पहचाना और निखारा है।
सुनील सिंधू ने बताया कि निशांत जब छह साल का था तो वह उसे बॉक्सर बनाना चाहते थे। मगर निशांत समय मिलते ही क्रिकेट खेलने लग जाता, जिस पर उन्होंने नाराजगी भी जताई। एक दिन कोच के प्रेरित करने पर उन्होंने निशांत को क्रिकेट खिलाना शुरू कर दिया। तब से लेकर आज तक निशांत ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। कुछ साल स्कूल में अभ्यास के बाद हरियाणा की टीम में चयनित हो गए। इतना ही नहीं पहले वे अंडर-14 की टीम में शामिल हुए और फिर टीम के कप्तान भी रहे।
उम्दा प्रदर्शन के दम पर ही निशांत पिछले साल अंडर-16 टीम में चुने गए और कप्तान की जिम्मेदारी भी मिली। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को बूखबी निभाया। टीम को साथ लेकर विजय मर्चेंट जैसी ट्रॉफी जीतकर हरियाणा के लिए बड़ी उपलब्धि हासिल की। निशांत फिलहाल एक निजी स्कूल में दसवीं कक्षा के छात्र हैं। उनकी इस उपलब्धि पर कोच, परिजनों व अन्य क्रिकेट प्रेमियों में खुशी है।