गो-मूत्र से बदली किसान की तकदीर, तीन गुना भाव में एनसीआर तक गन्ने और गुड़ की डिमांड
रसायनों का प्रयोग करने वाले किसान तकदीर सिंह को जो फसल भाव मिलता था, गो-मूत्र से जैविक खेती करने से अब फसल का तीन गुना भाव मिल रहा है। पहली दफा 3 घंटे में ही बिक गया था सारा माल
झज्जर [अमित पोपली] सनातन धर्म में तो गाय पूजनीय है ही मगर इसके मूत्र में मानव शरीर में होने वाली बीमारियों से लेकर फसलों की बीमारी को नष्ट करने वाले तत्व मौजूद होते हैं। इसी बात को झज्जर के किसान ने भलि भांति समझा और आज गो मूत्र के प्रयोग के कारण तकदीर सिंह की तकदीर बदल गई है। तकदीर सिंह अक्सर सुनता रहता था कि किसानों को उनकी फसल का भाव नहीं मिलता है। मगर वो इस धारणा को बदलना चाहते थे, लेकिन इसके लिए जरुरत थी किसी ऐसे माध्यम की जिससे वो खेती में लाखाें कमा सकें। जब उन्हें गो मूत्र से जैविक खेती करने की जानकारी कहीं से मिली तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गो-मूत्र को पानी के साथ छिड़काव को किसी भी यूरिया से बेहतर समझने वाले इस किसान को पहली मरतबा तो जैविक खेती करने से डर लगा था। जब फसल एक एकड़ में करीब 200 किलो तक ही हुई। लेकिन जब बाजार में जैविक गन्ना के नाम से बिक्री के लिए पहुंचा तो दाम दोगुने से भी अधिक मिला। जब गन्ना का दाम दोगुने से भी अधिक मिला तो फिर गन्ना से गुड़ बनाने की मन में सोच ने जन्म लिया। पिछले वर्ष जींद कोल्हू में अपने गन्ना से गुड़ बनवाने के लिए पहुंचा तो मात्र तीन घंटे में ही माल उस दाम में बिक गया, जो कि सोचा नहीं था।
अब किसान की सोच को पंख लगने हैं, साथ ही उम्मीद भी जगने लगी है कि अन्य किसान भी इसी राह पर चलते हुए जैविक खेती से जुड़ेंगे तो मोटा मुनाफा कमाएंगे। चूंकि इस दफा पुन: गन्ने की फसल खेतों से निकलते हुए जिला के जहांगीरपुर स्थित कोल्हू पर पहुंच चुकी है। एनसीआर के व्यापारी किसान के संपर्क में है और जैविक गन्ना से तैयार होने वाले जैविक गुड़ का इंतजार कर रहे हैं।
गोशाला से शुरू किया था गोमूत्र लेना, अब कमा रहे लाखों
करीब 5 वर्ष पूर्व रसायनों से मोहभंग होने के कारण झज्जर स्थित गोशाला से तकदीर सिंह ने गोमूत्र लेने के लिए संपर्क किया। पांच रूपये लीटर के हिसाब से गोमूत्र लेने की शुरूआत करते हुए सीधे 9 एकड़ में जैविक खेती की शुरूआत की। पहले-पहल उत्पादन को रसायनों से कम हुआ। लेकिन जब बाजार में दाम मिला तो समझ में आ गया कि जैविक उत्पादों को बेचने के लिए मंडी तक जाने की जरूरत नहीं है। ग्राहक और व्यापारी सीधा खेत में ही जाएंगे। करीब 3500 रुपये क्विंटल तक के दाम में गेहूं बेच चुके तकदीर सिंह का चना भी खास है।
साथ ही अब दो वर्ष से वह गन्ना की फसल के बाद गुड़ तैयार करने के कारोबार से जुड़े हैं। तकदीर के मुताबिक गन्ने को मौसम का भी नुकसान प्राय: नहीं होता। ऊपर से जैविक खेती का फायदा यह रहता है कि गर्मी सर्दी के कारण होने वाली बीमारियों से भी फसल बची रहती है। आज गोमूत्र की पूर्ति के लिए उन्होंने अपने घर में दो देसी गाय पाली हुई है। जिनसे गोमूत्र के साथ दूध की पूर्ति भी हो जाती है। साथ ही गांव में अन्य पशुपालकों से भी गोमूत्र खरीद रहे हैं।
- जैविक गन्ने में लागत कम आती है, जैविक गुड़ का भाव अच्छा मिलता है। गन्ने की फसल के साथ सह-फसल में गेहूं, चना, मटर, लहसुन, राजमा की फसलें इतना उत्पादन दे देती हैं जिससे उस साल की पूरी लागत निकल आती है। सभी किसानों को जैविक खेती से जुडऩा चाहिए। साथ ही अब व्यापारी भी निरंतर संपर्क में रहते हैं। वह स्वयं पूछते है कि कब क्या माल तैयार हो रहा है।
---तकदीर सिंह, निवासी गांव सरोला