Move to Jagran APP

पराली प्रबंधन कर आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान

मेले में विज्ञानियों द्वारा किसानों को फसलों के अवशेष जलाने की बजाय उन्हें जमीन में ही मिलाने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही उनका बेहतर तरीके से प्रबंधन करके किसानों की आमदनी बढ़ाने के तरीके भी बताए गए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Nov 2020 07:18 AM (IST)Updated: Sun, 08 Nov 2020 07:18 AM (IST)
पराली प्रबंधन कर आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान
पराली प्रबंधन कर आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान

जागरण संवाददाता, हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने वर्चुअल कृषि मेले के बाद अब प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र पर जिला स्तरीय किसान मेले आयोजित करने का फैसला लिया है। इन मेलों के माध्यम से किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के अलावा फसल विविधिकरण सहित अन्य जानकारियों से अवगत कराया जा रहा है।

prime article banner

कृषि विज्ञान केंद्र सदलपुर ने गांव साहू में एक किसान मेले का आयोजन किया। इसका आयोजन इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के तहत किया गया। मेले में विज्ञानियों द्वारा किसानों को फसलों के अवशेष जलाने की बजाय उन्हें जमीन में ही मिलाने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही उनका बेहतर तरीके से प्रबंधन करके किसानों की आमदनी बढ़ाने के तरीके भी बताए गए।

पराली न जलाने के बताए गुण

कृषि विज्ञान केंद्र के समन्वयक डा. नरेंद्र कुमार ने कहा कि पराली जलाने की नहीं, बल्कि उसे मिट्टी में मिला कर गलाने की जरूरत है ताकि जमीन की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी हो सके। पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ आम जनजीवन और भूमि के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। किसान पराली का उचित प्रबंधन करते हुए उसकी खाद व चारा तैयार कर बिक्री करके आमदनी बढ़ा सकते हैं। अभियंता अजीत सांगवान ने पराली को जमीन में मिलाने के लिए उपयुक्त मशीनों जैसे रोटावेटर आदि के बारे में जानकारी दी।

साथ ही किसानों से जीरो ड्रिल व हैप्पी सीडर का प्रयोग करके गेहूं की सीधी बिजाई करने का आह्वान किया ताकि फसल अवशेषों को जलाने की बजाय उनका भूमि में ही उपयोग किया जा सके और उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सके। मेले में आसपास के गांव के 200 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया। अवशेष जलाने से ही बढ़ती है स्मॉग वाली धुंध

अभियंता गोपी राम सांगवान ने बताया कि पराली जलाने से सूक्ष्म जीव व मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं, जिनकी भरपाई करना बहुत ही मुश्किल है। इसके अलावा अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण में जहरीली गैसें घुल जाती हैं, जो स्मॉग यानी धुएं वाली धुंध का कारण बनती हैं। इससे लोगों की सांस संबंधी परेशानियां बढ़ जाती हैं। इसके अलावा मिट्टी में मौजूद फायदेमंद जीवाणु व केंचुए भी मर जाते हैं। डा. सत्यवीर कुंडू ने बताया कि पराली से बायोगैस बनाने की विधि और जैविक खाद व दरिया बनाने की विधियां विकसित की जा चुकी हैं।

जिला बागवानी अधिकारी डा. सुरेंद्र सिहाग ने किसानों को बागवानी, जैविक खेती, किचन गार्डनिग आदि की जानकारी के साथ सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं जैसे मशरूम, मधुमक्खी पालन, बागवानी, ड्रिप सिचाई, पॉलीहाउस, कोल्ड स्टोरेज आदि की जानकारी दी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.