डेंगू के डंक से बचाने को रामबाण बन रहीं संस्थाओं की कोशिशें
कोविड के दौरान सामाजिक संस्थाओं ने जिस प्रकार से निभाया था धर्म अब डेंगू से लड़ने में जुटीं हैं।
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जागरण संवाददाता, हिसार : कोविड के दौरान सामाजिक संस्थाओं ने जिस प्रकार से लोगों की मदद को हाथ आगे बढ़ाए उससे हर कोई प्रभावित दिखा। भोजन व्यवस्था से लेकर संक्रमण के खतरे के बीच जरूरी दवाएं और सेनिटाइजेशन इन कार्यों में से एक थे। अब डेंगू फैल रहा है तो कुछ संस्थाएं इस समय भी बिना अपना नाम किए लोगों की मदद कर रही हैं। डेंगू में सबसे जरूर प्लेटलेट्स या रक्त की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होता है इस कार्य को संस्थाओं के प्रयासों से आसान बनाया जा रहा है। यह संस्थाएं इंटरनेट मीडिया पर लोगों को प्रेरित करती हैं, उन्हें रक्तदान के लिए तैयार करती हैं और काम पूरा होने के बाद उन्हें घर भी छोड़कर आती हैं। ताकि लोगों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
एक सप्ताह में 50 से अधिक लोगों को दिया जीवनदान
शहर की सद्भावना संस्था डेंगू का प्रकोप बढ़ने के साथ ही फील्ड में काम करने के लिए उतर आई। संस्था के अध्यक्ष अमित ग्रोवर बताते हैं कि पिछले सात दिनों में 50 से अधिक डेंगू के मरीजों के लिए रक्त व अन्य जरूरी सामान की उपलब्धता कराई गई है। इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। हेल्पलाइन नंबर पर मदद के लिए फोन आते ही इंटरनेट मीडिया के ग्रुपों में भेज दिया जाता है। फिर डोनर मिलने पर उसे लेकर आना फिर रक्तदान कराना फिर वापस घर छोड़ने का काम किया जा रहा है। रक्तदान के लिए कुछ को प्रेरित करना पड़ता है तो कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद के खर्चे में फतेहाबाद, हासीं, उकलाना, राजथल आदि स्थानों से आ रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। रात के दो-दो बजे तक संस्था लोगों की मदद कर रही है। अमित बताते हैं कि फतेहाबाद निवासी रक्तदाता पवन कुमार फतेहाबाद से विशेष तौर पर हिसार रक्तदान करने पहुंचे। वह 40वीं बार रक्तदान करने अपने साधन से एक बार बुलावे पर आए। ऐसे रक्तदाताओं के कारण लोगों की जान बचाई जा रही है।
डेंगू बढ़ने से फ्रेश ब्लड की बढ़ गई मांग
फ्रेश ब्लड हिसार संस्था के संस्थापक मनोज टाक माही ने पिछले वर्ष जुलाई में इस संगठन की स्थापना की थी। तब एक ही उद्देश्य था कि रक्त की जिन्हें जरूरत है उन्हें समय पर रक्त मिल जाए। देखते-देखते संगठन का परिवार बढ़ा होता गया। अब शहर व हिसार के 27 गांवों में युवाओं के ग्रुप बनाए गए हैं। जिसमें रक्तदाता जुड़े हुए हैं। डेंगू के समय उनके ग्रुप का काम काफी बढ़ गया है। रोजाना आठ से 10 लोगों का फोन एसडीपी और आरडीपी के लिए आता है। मनोज बताते हैं कि करीब 400 युवा उनके संगठन से जुड़े हुए हैं और सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं। जो गांव से जुड़े ग्रुप बनाए गए हैं उनमें से अधिकांश शहर के आसपास हैं ताकि रक्तदाता जल्द से जल्द पहुंच सके। इन गांवों में कैमरी, गंगवा, आर्यनगर, डाबड़ा, लुदास, सातरोड, आजाद नगर, हरिकोट, देवा, सिघरान के युवा साथियों से ज्यादा सहयोग रहता है । इसके साथ साथ जो मरीज के सहयोगी होते है उनका ब्लड दूसरे मरीज के लिए डोनेट करवा देते है, जिस से आसानी से रक्तपूर्ति हो जाती है।