हरियाणवी संस्कृति बढ़ा रहे दम-दम करदी चाल सै, बारहा टीकड़ खाऊं सूं, गानों से धूम मचा चुके सोनू गारनपुरिया
सोनू के अभियन वाले ‘दम-दम करदी ’ ‘मेरे सिर पै बंटा टोकणी’ ‘बारहा टीकड़’ काला तीतर’ ‘अतवार की छुट्टी ’ ‘नशेड़ी ’ ‘भोले के ठिकाणे ’ काले चश्मे वाली ‘भूत दिखाई दे है‘ आदि गाने शादी समारोह ही नहीं दिल्ली सहित कई बड़े शहरों के डिस्कोथेक में खूब गूंजते हैं।
हिसार [अशोक कौशिक] वो दिन अब लद गए जब हरियाणवी बोली को कोई अक्खड़ तो कोई भोला समझकर मजाक उड़ाता था। एग्रीकल्चर कल्चर समझे जाने वाले हरियाणवी कल्चर की धूम आज देश के कोने-कोने में मची है। सादगी और भोलापन समेटे हरित प्रदेश की संस्कृति के प्रति लोगों की अवधारणा बदलकर अमिट छाप कायम करने में कला के क्षेत्र की बड़ी भूमिका रही है। लेखन, गायन और अभिनय के माध्यम से हरियाणवीं संस्कृति को गौरवान्वित करने वालों में सोनू गारणपुरिया का नाम भी शुमार है। लेखन और अभिनय करने वाले साोनू के मुरीद केवल हरियाणा ही नहीं है वरन दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित देश के कई अन्य प्रदेशों में भी हैं।
सोनू का वास्तविक नाम सुनील कुमार है। 6 जनवरी 1987 को भिवानी जिले के गांव गारनपुरा कलां में जन्मे सोनू के परिवार का कला की दुनिया से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। पिता दरिया सिंह शिक्षक थे तो मां पार्वती साधारण गृहिणी। लिहाजा हर सामान्य माता-पिता की तरह वो भी चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक बने। किंतु शुरू से ही सोनू का मन पढ़ाई में कम क्रिकेट और नाच-गाने में ज्यादा रमता था। इसलिए छठी कक्षा के बाद उनका दाखिला पास के गांव के एक निजी विद्यालय में करा दिया गया। ये बदलाव भी सोनू के मन से क्रिकेट और कला के प्रति उनके जुनून को नहीं डिगा सका।
अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल पर धीरे-धीरे वे स्कूल के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम की शान बन गए। इस बीच स्वजन उन्हें लगातार पढ़ाई की ओर ज्यादा ध्यान देने को कहते रहे, पर सोनू ‘सुनो सबकी करो मन की’ भाव मन में लिए लगातार अपनी प्रतिभा को निखारते चले गए। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद हिसार के एक कॉलेज में दाखिला लिया। यही दौर उनके जीवन को दिशा देने वाला दौर साबित हुआ। कालेज की क्रिकेट टीम में जगह बनाने के बाद उन्हें लगने लगा कि उनका क्रिकेटर बनने का सपना साकार करने की दिशा में वे सही जा रहे हैं। कुछ माह तक सब ठीक बीता, पर जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि उनके बालमन का यह सपना साकार होना इतना सहज नहीं है।
यूं रखा कला की दुनिया में कदम
नरेंद्र बल्हारा के एक भावुक नाटक को देखकर इनके अंदर छिपा कलाकार फिर जाग गया। ये वर्ष 2006 की बात है। नरेंद्र से मिलकर अपनी भावनाएं रखीं तो उन्होंने सोनू का उत्साहवर्धन करने के साथ-साथ कहा, ‘‘जो भी करना, बस अपनी संस्कृति, अपनी माटी का कभी अपमान नहीं करना। ’’ सोनू ने पहली बार ‘गुड़ की डली’ एलबम के माध्यम से गीत लेखन के क्षेत्र में कदम रखा। इस दौरान उनका संपर्क राममेहर महला और पवन पिलानिया से हुआ। इस तिकड़ी ने एक के बाद एक लगातार कई सुपरहिट गीत देकर लोगों का अपना दीवाना बना दिया।
बनना चाहते थे क्रिकेटर, नियति ने बना दिया एक्टर
लेखन, अभिनय और गायन की दुनिया में आना सोनू की चाहत नहीं थी। असल में वो क्रिकेटर बनना चाहते थे। बकौल सोनू, एक समय था जब उनकी सोती-जागती आंखों में एक ही सपना था नीली जर्सी धारण करना। किंतु उचित मार्गदर्शन न मिलने के कारण वे अपने इस सपने को साकार नहीं कर सके, जिसका मलाल उन्हें आज भी है।
फेसबुक और यूट्यूब पर भी दीवाने कम नहीं
सोनू के ‘दम-दम करदी ’, ‘मेरे सिर पै बंटा टोकणी’, ‘बारहा टीकड़’, काला तीतर’, ‘अतवार की छुट्टी ’, ‘नशेड़ी ’, ‘भोले के ठिकाणे ’ काले चश्मे वाली, ‘भूत दिखाई दे है‘ आदि गाने शादी समारोह ही नहीं दिल्ली सहित कई बड़े शहरों के डिस्कोथेक में खूब गूंजते हैं। जिनमें ये मॉडल के तौर पर अभिनय कर चुके हैं। फेसबुक, इन्स्टाग्राम और यूट्यूब पर भी उनके चाहने वालों की संख्या हजारों में है। हरियाणा के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जहां कहीं भी स्टेज शो करते हैं छा जाते हैं।
हजरों गीतों में बिखेर चुके हैं अदाकारी का जलवा
बकौल सोनू वे अब तक करीब 1500 गीत लिख चुके हैं तथा विभिन्न एलबमों में 6000 के अधिक गीतों में बतौर अभिनेता अपनी अदाकारी का जलवा दिखा चुके है। दर्शकों द्वारा अंजली राघव और मिस अदा के साथ उनकी जोड़ी को खूब सराहा जाता है। सोनू ने अपने करियर में ज्यादातर एलबम में इन्हीं के साथ काम किया है। इसके अलावा उन्होंने गायन और निर्देशन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया है। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में कई लोगों का सहयोग रहा है। स्वजनों के अलावा स्व.नरेंद्र बल्हारा, राममेहर महला और विजय वर्मा के प्रोत्साहन से वे निरंतर अपनी प्रतिभा को निखारते चले गए।
जब छाए हरियाणवी जादू, कोई रुक न पाए
कहने की आवश्यकता नहीं हैं कि हिंदी भाषी राज्यों में तीज-त्योहारों, विवाह समारोह के अलावा शैक्षणिक संस्थाओं के कार्यक्रमों हरियाणवी गीत-संगीत खूब रंग जमा रहा है। पर गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी ऐसा ही देखने को मिले तो क्या कहेंगे? जामनगर में ट्रांसपोर्ट के पेश से जुड़े गारनपुरा के तेज सिंह बताते है कि नवरात्र में डांडिया उत्सव में यहां हरियाणवी गानों से खूब रंग जमता है। हालांकि इस बार आयोजनों पर कोरोना का साया है। चेन्नई में रेलवे पुलिस में कार्यरत गारनपुरा के बजंरग शर्मा और एयरफोर्स में कार्यरत कुड़ल के अंकित भारद्वाज बताते हैं कि घर से हजारों किलोमीटर दूर हरियाणवी गाने सुनकर अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करते हैं। मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, महाराष्ट्र आदि के रहने वाले उनके कई साथी भी हरियाणवी गीतों के जादू के आगे खुद को थिरकने से रोक नहीं पाते।