Move to Jagran APP

साथ रहने वालों को भी कैंसर होने का नहीं हाेने दिया आभास, हौसला रखा और जीत ली जंग

जब तक कैंसर का पता चलता है तब तक कई स्टेज पार हो चुकी होती हैं। इसके बाद मरीज का बचना मुश्किल हो जाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हौसला नहीं छोड़ते और कैंसर से जीत जाते हैं

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 12:15 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 12:15 PM (IST)
साथ रहने वालों को भी कैंसर होने का नहीं हाेने दिया आभास, हौसला रखा और जीत ली जंग
साथ रहने वालों को भी कैंसर होने का नहीं हाेने दिया आभास, हौसला रखा और जीत ली जंग

फतेहाबाद [मुकेश खुराना] जानलेवा बीमारी कैंसर से फतेहाबाद जिले में हर साल 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। जब तक शरीर में कैंसर का पता चलता है तब तक कई स्टेज पार हो चुकी होती हैं। इसके बाद मरीज का बचना मुश्किल हो जाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हौसला नहीं छोड़ते और कैंसर से जीत जाते हैं। ऐसे ही दो उदाहरण फतेहाबाद जिले के भी हैं जिन्होंने हौसला रखकर कैंसर से जंग लड़ी और मौत के मुंह से बाहर निकल आए। अब आम आदमी की तरह जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।

loksabha election banner

फतेहाबाद के एमएम कालेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर तैनात डा. रीमा सिंगला ने कनाडा में उपचार लेने की कोशिश की, लेकिन वहां के डाक्टरों से टाइम न मिलने के कारण वापस यहां आकर उपचार कराया और ठीक हो गईं। ऐसे ही फतेहाबाद के गांव हिजरावां कलां निवासी जमींदार हरबंस गिल हैं। इन्होंने सर्जरी और उपचार करवाकर कैंसर से जंग जीत ली है। आज वह बिल्कुल स्वस्थ हैं और खेतों में आम किसानों की तरह काम कर रहे हैं।

कैंसर से जंग जीतने वाले प्रोफेसर और जमींदार की कहानी उन्हीं की जुबानी
केस एक : सहायक प्रोफेसर डॉ. रीमा सिंगला ने बताया कि मैं वर्ष 2017 में कनाडा में अपनी बेटी के पास गई थी। यहां पर स्विङ्क्षमग के दौरान बेटी ने कहा कि आप को ब्रेस्ट कैंसर लग रहा है। ऐसा ही मेरी सहेली को था। कनाडा में ही डाक्टर से मिलने की कोशिश की, लेकिन समय न मिलने के कारण डाक्टर से नहीं मिल पाए। जून में वापस भारत आकर नोएडा में रिश्तेदार डाक्टर को दिखाया। दो से तीन दिन तक टेस्ट करवाने के बाद कैंसर की पुष्टि हुई। इसके बाद सर्जरी हुई। डाक्टर ने कुछ मेडिसिन और व्यायाम बताए। मैंने दवाई लेने से इन्कार कर दिया। कुछ समय नोएडा में ही कीमोथेरेपी करवाई और फिर फतेहाबाद में आकर हिसार में कीमोथेरेपी करवाई। हिसार से कीमोथेरेपी करवाने के बाद रोजाना कालेज जाना। इस बार में छात्रों और स्टाफ को भी पता नहीं चल पाया की कीमोथेरेपी चल रही है। 6 महीने बाद बिल्कुल ठीक हो गई और अब नार्मल हूं।

केस दो : जमींदार ने बताया कि मुझे वर्ष 2014 में गले में गांठ महसूस हुई। हिसार के अस्पताल में टेस्ट करवाए और बठिंडा, अमृतसर और बीकानेर में टेस्ट करवाए गए। जांच में पता चला कि कैंसर है। इसके बाद बीकानेर के अस्पताल में ही सर्जरी करवाई गई। यहां पर मात्र दवाइयों का ही खर्च आया। सर्जरी के बाद चंडीगढ़ पीजीआइ में उपचार शुरू कराया। यहां पर कुछ समय उपचार चला और टेस्ट हुए। टेस्ट में सभी रिपोर्ट नार्मल आई। जब कैंसर का पता चला था तो उस समय घबरा गया था, लेकिन हौसला नहीं छोड़ा और उपचार जारी रखा। करीब एक साल बाद बिल्कुल ठीक हो गया। अब किसानों की तरह खेत में काम कर रहा हूं।

फतेहाबाद में कैंसर से मौत का आंकड़ा
वर्ष          मौत
2015        220
2016        280
2017        315
2018        295

जाखल के सिधानी गांव में 11 मरीज कैंसर से पीडि़त
जाखल कस्बे से महज 12 किलोमीटर दूर रतिया रोड पर स्थित है गांव सिधानी। घग्घर के जहर का कहर इस गांव पर पिछले कई दशकों से जारी है। यहां पिछले दस साल में 66 लोगों की मौत कैंसर से हो चुकी है। अब भी गांव में 11 लोग कैंसर से प्रभावित हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार गांव आकर जांच कर रही है। पानी निकासी की व्यवस्था भी सुनिश्चित कर दी गई है। फिर भी अभी और सुधार की जरूरत है। इसके अलावा भट्टू खंड के गांव खाबड़ा, पीलीमंदोरी, फतेहाबाद खंड में ङ्क्षचदड़, बड़ोपल में भी कैंसर पीडि़त मरीज सामने आ चुके हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.