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शादियों में बेटियों का दान नहीं किया जाता : आचार्य देवव्रत

हिमाचल प्रदेश के राज्‍यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि बेटियां परिवार का अभिन्‍न हिस्‍सा होती हैं और शादियों में इनका दान नहीं किया जाता।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 11 Apr 2018 12:18 PM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2018 12:18 PM (IST)
शादियों में बेटियों का दान नहीं किया जाता : आचार्य देवव्रत
शादियों में बेटियों का दान नहीं किया जाता : आचार्य देवव्रत

जेएनएन, हिसार। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि समाज में नारी का विशेष स्थान है। शादी के समय बेटी का दान नहीं किया जाता, क्योंकि दान में जो दे दिया जाता है उसे कभी वापस नहीं लिया जाता और दान देने वाले का उससे कोई संबंध भी नहीं रहता। बेटी की शादी को कन्‍यादान कहना सही नहीं है। बेटी तो आजीवन महत्वपूर्ण हिस्सा रहती है। बेटियां हमारे परिवार का हिस्सा हैं और उन्हें पूरा मान-सम्मान दिया जाना चाहिए।

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 'नाज है बेटियों पे' कार्यक्रम में 33 बेटियों को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने किया सम्मानित

वह यहां दैनिक जागरण के 'नाज है बेटियों पे' कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। समारोह में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में देश-विदेश में नाम रोशन करने वाली 33 बेटियों को सम्मानित किया। इससे पहले मुख्य अतिथि सहित सभी विशिष्ट अतिथिगणों ने दैनिक जागरण के संस्थापक स्व. पूर्णचंद्र गुप्त और पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। बाद में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

हिमाचल के राज्‍यपाल व अन्य अतिथियों के संग सम्‍मानित की गईं बेटियां।

समारोह में राज्यसभा सदस्य डा. डीपी वत्स एवं हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केपी सिंह ने बतौर विशिष्ट अतिथि शिरकत की। दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी, मुख्य महाप्रबंधक नितेंद्र श्रीवास्तव भी कार्यक्रम में मौजूद रहे। आचार्य देवव्रत ने स्पष्ट करते हुए कहा कि वर शादी के समय वधू को ग्रहण करता है न कि दान लेता है। वैदिक काल में शादी के समय गोदान की परंपरा थी, लेकिन कालांतर में दान शब्द को कन्या से जोड़ दिया गया जोकि सही नहीं है।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि बेटियों की कामयाबी के पीछे उनके माता-पिता का हाथ होता है। पहले के समय में रूढ़ीवादी सोच ने बेटियों को आगे नहीं बढ़ने दिया। वैदिक काल में पुरुष और महिलाओं में अंतर नहीं था। मध्यकाल में विदेशी आक्रमणकारियों के कारण बेटियों को बचाने के नाम पर पर्दा प्रथा शुरू हुई। इससे महिलाएं चार दीवारी में सिमट कर रह गईं, लेकिन अब धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।

एथलीट बिमला देशवाल और उनके पति तेजपाल देशवाल को सम्मानित करते आचार्य देवव्रत।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि आज से करीब 150 साल पहले बेटियों के लिए जालंधर में उत्तर भारत की पहली पाठशाला खुली। स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य श्रद्धानंद ने बेटियों के लिए लड़ाई लड़ी और उसी का परिणाम है कि आज बेटी हर मुकाम हासिल कर रही हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें नारी ने अपना परचम न लहराया हो। शिक्षा के क्षेत्र में 80 फीसद लड़कियां टॉप पर रहती हैं।

उन्होंने कहा कि दैनिक जागरण की यह पहल सराहनीय है। सामाजिक सरोकारों में जागरण अहम भूमिका निभाता आ रहा है। यह समाज का सच्चा प्रहरी है। समाचार पत्र होने के साथ समाज और देश को आगे बढ़ाने में वह अपना योगदान दे रहा है। लोगों के मन में नकारात्मक समाचार की धारणा बनी हुई है लेकिन दैनिक जागरण समाज में सकारात्मक सोच लाने के नक्शे कदम पर चल रहा है।

हरियाणा से राज्यसभा सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल डा. डीपी वत्स ने कहा कि इच्छा शक्ति से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। देश की फौज हो या खेल का क्षेत्र या कोई अन्य मैदान हर क्षेत्र में नारी ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है। हर परिवार को चाहिए कि वह अपनी बेटी को हौसला देकर आगे बढ़ाए।

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नारी सशक्तीकरण दैनिक जागरण का सर्वोच्च सरोकार

दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि दैनिक जागरण सिर्फ समाचार पत्र ही नहीं है वरन वह सामाजिक मित्रत्व का निर्वाह भी सात सरोकारों का मार्फत कर रहा है। उन्होंने नारी सशक्तीकरण को जागरण का सर्वोच्च सरोकार बताते हुए अन्य सरोकारों पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, स्वस्थ समाज, सुशिक्षित समाज, जनसंख्या नियोजन और गरीबी उन्मूलन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार भी इन्हें अंगीकार कर रही हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ आदि नारी सशक्तीकरण अभियान का ही हिस्सा हैं।


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