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आइआइएम रोहतक के कार्यक्रम में बोले दलाई लामा, कहा-जन्म तिब्बत में हुआ, लेकिन सांस्कृतिक रूप से मैं भारतीय

रोहतक आइआइएम के एक कार्यक्रम में अध्यात्म गुरु दलाई लामा ने आनलाइन मोड के माध्यम से शिरकत की। इस मौके पर दलाई लामा ने कहा कि पश्चिमी देशों ने भी यह समझा है कि वैश्विक शांति और सद्भावना बनाए रखने के लिए भारतीय जीवन पद्धति उपयुक्त है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 07:35 PM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 07:35 PM (IST)
आइआइएम रोहतक के कार्यक्रम में बोले दलाई लामा, कहा-जन्म तिब्बत में हुआ, लेकिन सांस्कृतिक रूप से मैं भारतीय
आइआइएम रोहतक के कार्यक्रम में आनलाइन माध्यम से शामिल हुए दलाई लामा।

जागरण संवाददाता, रोहतक। प्राचीन भारतीय संस्कृति अहिंसा और करुणा संदेश को बढ़ावा देती है। भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों की आपसी सद्भावना प्रभावित करती है। तिब्बत में विवाद की वजह से मुझे यहां शरण लेनी पड़ी। भारत पूरी दुनिया के समक्ष धार्मिक सद्भावना का आदर्श उदाहरण पेश करता है। इस देश की वर्षों की परंपराएं वैश्विक धार्मिक सद्भाव बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। अध्यात्म गुरु दलाई लामा ने यह विचार रखे। वे वीरवार को भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) रोहतक के विद्यार्थियों को एक आनलाइन सेशन में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने करुणा-बुद्धिमत्ता से चुनौतियों का समाना करने विषय पर व्याख्यान दिया। वीडियो कांफ्रेंसिंग से संचालित सेशन में फैकल्टी मेंबर, स्टाफ, विद्यार्थी और विभिन्न देशों से लोग जुड़े।

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वैश्विक शांति बनाए रखने के लिए भारतीय जीवन पद्धति उपयुक्त

दलाई लामा ने कहा कि पश्चिमी देशों ने भी यह समझा है कि वैश्विक शांति और सद्भावना बनाए रखने के लिए भारतीय जीवन पद्धति उपयुक्त है। आधुनिक जीवन शौली और अध्यात्मिकता के जुड़ाव के रास्ते को भारत प्रशस्त कर सकता है। छात्र-छात्राएं समाज में क्या योगदान दे सकते हैं इस बात पर फोकस करें।

भौतिकतावाद की तरफ बढ़ते विश्व में शांति और खुशनुमा वातावरण बनाए रखने के लिए भारत को अहिंसा और करुणा की प्राचीन परंपराओं को जागृत रखना होगा। सहिष्णुता, विचारशीलता और दया भावना का पाठ यह संस्कृति, दुनिया को पढ़ा सकती है। भारत और चीन जैसे सघन आबादी वाले देशों में जरूरी है कि लोगों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव हो, मेलजोल से ही विवादों का समापन होगा।

सांस्कृतिक रूप से मैं भारतीय

दलाई लामा ने कहा कि सांस्कृतिक रूप से वह खुद को भारतीय मानते हैं। उनका जन्म तिब्बत में हुआ, जहां की संस्कृति बौद्ध और नालंदा की परंपराओं पर आधारित है। उनका मानना है कि शिक्षा लोगों के व्यवहार में ऐसा बदलाव लाने में सक्षम है जिससे विवादों पर विराम लगेगा, वैश्विक शांति प्राप्त हो सकेगी। सही शिक्षा का उद्देश्य दूसरों को ठीक तरह से समझने का होना चाहिए। समाज का हिस्सा होने के नाते सिर्फ खुद के लिए सोचना नीति संगत नहीं। धर्म, राष्ट्रीयता, रंगभेद से ऊपर उठकर दूसरों के प्रति करुणामयी सोच अपनानी होगी।

करुणा और अहिंसा से समस्याओं का समाधान संभव

आइआइएम रोहतक के निदेशक प्रो. धीरज शर्मा ने बताया कि एक व्यक्ति के तौर पर हमें समझना होगा कि करुणा और अहिंसा से अधिकांश समस्याओं का समाधान संभव है। दलाई लामा के मानवीय एकता का संदेश हमें संसार को अलग नजरिए से देखने के लिए प्रेरित करता है। जिसमें दूसरों से जुड़ाव पर जोर है। संस्थान भी प्रयासरत है कि विद्यार्थियों को सिलेबस के साथ ही करुणा और अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाए।


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