किसानों की पहुंच से दूर कस्टमर हायरिग सेंटर
बता दें कि हर साल अक्टूबर-नवंबर महीने में धान की पराली जलाने से वातावरण जहरीला होता है। इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार पराली जलाने वालों पर सख्ती कर रही है। इसके लिए किसानों को पराली प्रबंधन की मशीनें सीएचसी सेंटरों द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही हैं। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि महज 5 फीसद किसान भी इन मशीनों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
मनप्रीत सिंह, हांसी
धान की पराली के प्रबंधन के लिए कस्टमर हायरिग सेंटरों की मशीनें किसानों की पहुंच से दूर हैं। जिले में बीते दो सालों के अंदर महज 1842 किसानों ने ही फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सीएचसी सेंटरों से मशीनों को किराये पर लिया, जबकि किसानों संख्या इससे कई गुना अधिक है। हालांकि वर्ष 2018-19 के मुकाबले में 2019-20 में सीएचसी मशीनों का लाभ लेने वाले किसानों की संख्या में दोगुना इजाफा तो हुआ, लेकिन जिले के कुल किसानों की संख्या देखी जाए तो ये काफी कम है।
बता दें कि हर साल अक्टूबर-नवंबर महीने में धान की पराली जलाने से वातावरण जहरीला होता है। इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार पराली जलाने वालों पर सख्ती कर रही है। इसके लिए किसानों को पराली प्रबंधन की मशीनें सीएचसी सेंटरों द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही हैं। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि महज 5 फीसद किसान भी इन मशीनों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
बीते दो साल में केवल 1842 किसानों ने ही कस्टमर हायरिग सेंटरों से मशीनें किराये पर ली, जबकि जिले में खेती करने वालों की संख्या करीब 2,61,120 लाख है। बीते साल जिले में धान की फसल का रकबा 84400 हेक्टेयर था। वहीं केवल 4876 एकड़ कृषि क्षेत्र में फसलों के अवशेषों का प्रबंधन सीएचसी की मशीनों से किसानों ने किया। हालांकि धीरे-धीरे सरकार की जागरूकता व सख्ती का असर दिखने लगा है। इस साल किसान धान के अवशेषों को जलाने के बजाय बेचने व प्रबंधन करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।
बगैर किराये के 24 पंचायतें दे रही मशीनें, किसान अंजान
24 पंचायतों में बगैर किराये के पराली प्रबंधन के यंत्र किसानों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। घिराये, गुराना, खानपुर, बढ़छप्पर, भाटोल-जाटान, धर्मखेड़ी, मदनहेड़ी, सीसर, थुराना, बडाला, भेणी अमीरपुर, मोठ रांगड़ान, राजपुरा, डाबड़ा, लाडवा, नियाना आदि गांवों में किसान अपनी पंचायतों से मशीनें ले सकते हैं। इन मशीनों को कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध करवाया गया है। किसान को ट्रैक्टर व डीजल का खर्च खुद वहन करना होगा। सीएचसी को लेकर कृषि विभाग गंभीर
धान की पराली प्रबंधन हेतु 24 पंचायतों में मशीनें उपलब्ध करवाई गई हैं। बीते कुछ सालों से लगातार सीएचसी सेंटरों की मशीनों का लाभ लेने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ रही है। किसानों को अगर किसी भी प्रकार की समस्या आती है वह तुरंत कृषि विभाग संपर्क करे।
गोपीराम, सहायक कृषि अभियंता, हिसार
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जिले में खेती करने वालों की संख्या 2,61,120 लाख किसान (2011 की जनगणना के अनुसार) जिले में धान का रकबा घटा
2019 - 84400 हेक्टेयर
2020- 56820 हेक्टेयर
वर्ष सीएचसी लाभार्थी किसान कृषि भूमि कवर 2018-19 10 531 2136 एकड़ 2019-20 23 1311 4876 एकड़
किसानों तक नहीं पहुंचती जानकारी
सीएचसी सेंटरों से मशीनें मिलती हैं। ट्रैक्टर का प्रबंध किसानों को स्वयं करना होता है। कई बार मशीनें समय पर उपलब्ध नहीं होती और फसल कटने को तैयार हो जाती है। किसानों की बड़ी आबादी तक सरकारी योजनाओं की जानकारी भी नहीं पहुंचती है। कई मशीनें ऐसी हैं जो केवल पराली को बेलकर बंडल बना देती हैं। इन बंडलों का किसान कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। पराली से खाद बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल व लंबी है ठेके पर जमीन लेने वाले व छोटी जोतों पर खेती करने वाले किसानों के लिए ये घाटे का सौदा है।
मोहन लाल, किसान, गांव लालपुरा