प्याज और सेब में मिलने वाले क्यूरिस्टिन कंपाउंड जख्म को जल्दी कर सकता है ठीक
वैभव शर्मा हिसार अभी तक फलों में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट तत्व लोगों की बीमारियों
वैभव शर्मा, हिसार: अभी तक फलों में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट तत्व लोगों की बीमारियों में मदद कर रहे थे। अब फ्लेवोनाइड तत्वों की विशेषताएं भी सामने आ रही हैं। लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के वेटरनरी फार्माक्लॉजी एवं टोक्सीक्लॉजी डिपार्टमेंट में शोधार्थी अभिनव चौधरी ने वैज्ञानिक डा. विनय कांत के नेतृत्व में अपनी मास्टर डिग्री के दौरान प्याज व सेब में पाए जाने वाले क्यूरिस्टिन कंपाउंड पर शोध किया। जिसमें उन्होंने पाया कि इस कंपाउंड में कुछ गुण ऐसे हैं जो त्वचा के जख्मों को जल्द से जल्द सही कर सकते हैं। डा. विनय बताते हैं कि हमने विशुद्ध रूप से क्यूरिस्टिन कंपाउंड को एक उचित मात्रा में चूहों पर प्रयोग किया तो पाया कि जख्म जल्द ठीक हो रहे हैं। मगर इसमें शर्त है कि कंपाउंड का एक उचित मात्रा में प्रयोग किया जाए। ऐसे में चूहों पर प्रयोग सफल होने के बाद इसकी दवा बनाने का आगामी स्तर पर रिसर्च लगातार जारी है। यह रिसर्च हाल ही में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूरोपियन जर्नल ऑफ फार्माक्लॉजी में भी प्रकाशित हुई है।
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ऐसे शुरू की थी रिसर्च
वैज्ञानिक डा. विनय बताते हैं कि क्यूरिस्टिन कंपाउंड पर पिछले लंबे समय से अलग-अलग लैब में शोध चल रहा है। यूं तो इस कंपाउंड की कई विशेषताएं हैं, यह ब्लड बेसल्स को बढ़ाने का काम करता है, एंटी कैंसर इफेक्ट भी इस कंपाउंड ने दिखाए हैं। इस पर कई शोध भी हुए हैं। मगर लुवास में हम त्वचा पर लगे जख्मों को ठीक करने पर जोर देते हैं। ऐसे में हमने क्यूरिस्टिन कंपाउंड से शोध करना शुरू कि यह किस प्रकार से जख्म पर प्रभाव डालता है। ताकि जख्मों को जल्द ठीक करने वाली दवाइयां बन सकें। शोध में हमने चूहों पर प्रयोग कर पाया कि इस कंपाउंड में ऐसे गुण भी हैं जो जख्म पर कारगर हैं मगर जख्म सही करने की गति अभी भी धीमी ही थी। ऐसे में शोध चलता रहा।
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नैनो टेक्नोलॉजी में किया प्रयोग
शोध में देखा कि जख्म ठीक करने की धीमी गति का कारण है कि यह कंपाउंड सेल मेंबरेन को क्रॉस नहीं कर पा रहा है। ऐसे में जख्म को ठीक करने के लिए ज्यादा डोज लग रही थी। डा. विनय बताते हैं कि फिर हमने इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए इसे नैनो टेक्नोलॉजी में ले गए। ऐसे में हमने काइटोजन के नैनो पार्टिकल लेकर उसमें क्यूरिस्टिन मिला दिया। यह करने पर हमें काफी चौंकाने वाले परिणाम मिले। इसमें जब पहले कंपाउंड की जितनी डोज लग रही थी, वह 10 गुना कम हो गई। यानि कम दवा असर करती दिखी।
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कई ट्रायल के बाद बनती है ड्रग्स
डा. विनय बताते हैं कि किसी भी ड्रग को बनाने के लिए लंबी प्रक्रिया होती है और कई विभागों की इसमें सहभागिता होती है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट पर अभी भी हमारा काम चल रहा है। जैसे-जैसे काम बढ़ता जाएगा टीम भी बड़ी होती जाएगी। अभी चूहों पर प्रयोग हुआ है, फिर क्लीनिकल प्रयोग होंगे। भविष्य में इस कंपाउंड को लेकर जैल या आइंटमेंट बनाकर जख्मों पर प्रयोग किया जा सकेगा।
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इन वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट पर किया काम
वैज्ञानिक डा. विनय बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर डायरेक्टर रिसर्च डा. प्रवीन गोयल व विभागाध्यक्ष डा. विनोद कुमार के निर्देशन में छात्र अभिनव चौधरी, वेटरनरी पैथलॉजी डिपार्टमेंट से असिस्टेंट प्रोफेसर डा. बाबूलाल जांगीर, एनिमल बॉयोटेक्नोलॉजी से वैज्ञानिक डा. विनय जोशी मुख्य रूप से शामिल रहे।
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यूरोपियन जर्नल में लुवास के शोधार्थियों का शोध प्रकाशित होना बड़ी बात है। इससे अन्य प्राध्यापकों व शोध छात्रों को भी अच्छा करने की प्रेरणा मिलेगी ।
डा. प्रवीन गोयल, डायरेक्टर रिसर्च, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय।