कोरोना ने रोहतक में गुलाबी ऑटो पर लगाए ब्रेक, महिला चालकों ताने झेलकर भी नहीं मानी थी हार
कोरोना महामारी ने गुलाबी ऑटो रिक्शा काम ठप कर दिया। कोई महिला चालक बेच रही सब्जी तो कोई तलाश रही रोजगार। महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से शुरू की गई थी गुलाबी ऑटो
रोहतक [ओपी वशिष्ठ] ताने सहे, विरोध झेला, मगर हार नहीं मानी। पुरुषों से मुकाबला कर सड़कों पर खूब रफ्तार पकड़ी। कारवां बनता गया तो लोगों की सोच भी बदली और बातें भी। सब कुछ ठीक चल रहा था, मगर कोरोना ने राह रोक दी। ये कहानी है उन लाचार महिलाओं की जो रोहतक में गुलाबी ऑटो चलाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रही थी। पांच साल पहले शहर में गुलाबी ऑटो रिक्शा की शुरुआत की गई थी। इसके लिए आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को सामाजिक संगठनों ने प्रेरित किया। उनके ड्राइविंग लाइसेंस बनवाएं और सस्ते ऋण पर ऑटो रिक्शा दिलवाई। महिलाओं को शुरुआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में ऑटो की रफ्तार के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी गति पडऩे लगी।
एक तरह से महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई थी। लेकिन कोरोना महामारी ने ऑटो पर ऐसे ब्रेक लगाए, फिर से उनके परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। हालांकि अभी तक महिलाओं ने हौसला नहीं छोड़ा है। कोई ऑटो रिक्शा में सब्जी बेच रही हैं तो कोई माल ढुलाई कर रही है। अगर उनको शीघ्र कोई मदद नहीं मिली तो देश में रोड मॉडल के तौर पर शुरू की गई गुलाबी ऑटो बंद होने के कगार पर पहुंच जाएगी।
सवारी नहीं मिली तो सब्जी बेचना शुरू किया : पिंकी
राहड़ रोड निवासी पिंकी का कहना है कि गुलाबी ऑटो ने उनकी जिंदगी बदल दी थी। रोजाना 600 से 700 रुपये कमा लेती थी। परिवार में केवल वही कमाने वाली है। लेकिन कोरोना के चलते कई माह तक ऑटो बंद रही। जब ऑटो चलाने की अनुमति मिली तो सवारी नहीं मिली। लॉकडाउन में ऑटो रिक्शा में सब्जी बेचने का काम किया, लेकिन उसमें नुकसान हो गया। लेकिन ऑटो रिक्शा चलाना नहीं छोड़ेंगे क्योंकि इसी से परिवार में अच्छे दिन आए थे।
तेल का खर्च भी नहीं निकल पाता : कमलेश
कमलेश बताती हैं ऑटो रिक्शा लॉकडाउन के बाद दोबारा से चलानी शुरू कर दी है। लेकिन सवारी नहीं मिल रही। लॉकडाउन के दौरान पति बीमार हो गया, उनके इलाज में 50 हजार रुपये खर्च हुए। परिवार में कोई दूसरा कमाने वाला नहीं है। ऑटो रिक्शा में फिलहाल आमदनी नहीं है। जितना पूरा दिन में सवारी ढोकर कमाते हैं, उनका तेल खर्च हो जाता है। जब तक परिस्थितियां सामान्य नहीं हो जाती, तब तक कोई अन्य रोजगार तलाश कर रहे हैं।
ऑटो रिक्शा की कमाई से बेटा एयरफोर्स में गया : सुमित्रा
गुलाबी ऑटो रिक्शा संघ की प्रधान गांव बसंतपुर निवासी सुमित्रा का कहना है कि गांव में घूंघट करना पड़ता है। शहर में जब गुलाबी ऑटो रिक्शा अभियान शुरू किया तो उसने भी चलाने का निर्णय लिया। शुरुआत में काफी दिक्कत आई। ग्रामीणों के अलावा शहर में पुरुष ऑटो रिक्शा चालक ताने मारते थे। लेकिन उन्होंने परवाह नहीं की। धीरे-धीरे हौसला आया और आर्थिक संकट भी छंटना शुरू हो गया। ऑटो रिक्शा की कमाई से बच्चों की बेहतर पढ़ाई कराई। एक बेटे कू की एयरफोर्स में ज्वाइनिंग हो गई है।
सरकार से मदद की लगाएंगे गुहार : राजेश लुंबा
गुलाबी ऑटो रिक्शा अभियान के संयोजक राजेश लुंबा उर्फ टीनू ने बताया कि गुलाबी ऑटो रिक्शा अभियान की शुरुआत वर्ष 2015 में की थी। महिला सशक्तीकरण व सुरक्षा के उद्देश्य से इसकी शुरुआत की। सरकार से गुलाबी ऑटो रिक्शा चालकों को आर्थिक सहयोग के लिए मांग की जाएगी। रोहतक के अलावा जींद, सोनीपत, बहादुरगढ़ व भिवानी में भी गुलाबी ऑटो शुरू किए गए थे। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक शशांक आनंद का इसमें विशेष सहयोग रहा।