रोडवेज बसों के चुनौतीपूर्ण किस्से सुन सामना करने की ठानी, बीटेक पास सोनिया बनीं कंडक्टर
परिचालक बनने की इच्छा त्याग कर दे इसलिए चालक मामा सुनाते थे बसों के चुनौती भरे किस्से। सोनिया ने कहा किसी को तो पहल करनी पड़ेगी और भर्ती में आवेदन कर दिया। जानें कैसे हुआ ये सब
हिसार [जागरण स्पेशल] जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई न कोई लक्ष्य होना चाहिए, ये बात हम अक्सर सुनते हैं। हम लक्ष्य चुनते भी हैं मगर समय के साथ ये कब बदल जाए इसके बारे में कह पाना मुश्किल है। हिसार की बीटेक पास सोनिया के फैसले को देख ये समझना और भी सरल है कि जीवन में स्थाई कुछ भी नहीं है। दरअसल कंप्टूयर साइंस स्ट्रीम से बीटेक पास सोनिया ढुल अध्यापिका बनना चाहती थीं मगर अब वह रोडवेज विभाग में बतौर स्थाई महिला परिचालक भर्ती हुई हैं। आप सोच रहे होंगे कि बीटेक पास होने के बावजूद महिला एक युवती परिचालक कैसे बन गई।
शुरुआत में परिजनों को भी सोनिया के इस फैसले के बारे में जान हैरानी हुर्इ थी। सोनिया परिचालक बनने का ख्याल बदल दे इसके लिए राेडवेज बस में चालक के तौर पर नौकरी कर रहे सोनिया के मामा जोगेंद्र ने राेडवेज बस के चुनौती भरे किस्से सोनिया को सुनाए। रोडवेज बसों में होने वाले रोजाना के झगड़े, सीट के लिए बहस और पॉकेट मारी के अलावा महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार के बारे में सुन सोनिया ने हार नहीं मानी बल्कि उन्होंने इस तरह की चुनौतियों से निपटने की ठान ली।
किसान परिवार की बेटी है सोनिया
हिसार के गांव फरीदपुर की 25 वर्षीय सोनिया किसान परिवार की बेटी हैं। सोनिया ने हरियाणा स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (एचएसएससी) की ओर से निकाली गई परिचालकों की स्थाई भर्ती में आवेदन किया था। छह दिसंबर को जारी हुई लिस्ट में सोनिया का भी नाम था। वो सोमवार को ड्यूटी ज्वाइन करेंगी।
पांच गांवों के ग्रामीण बोले- बेटी हो तो ऐसी
सोनिया के महिला परिचालक बनने से पंचग्रामी चौतरा के गांव किनाला, पाबड़ा, फरीदपुर, खैरी और कंडूल के ग्रामीणों में खुशी का माहौल है। सभी ने साेनिया के घर पहुंचकर उन्हें बधाई दी और फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया। ग्रामीणों ने कहा कि बेटी हो तो ऐसी हो जो पुरुष प्रधान समाज की सोच बदलने का काम करे।वहीं सोनिया के पिता फूलकुमार व माता राजबाला ने कहा कि हमें हमारी बेटी पर गर्व है।
सोनिया बोली- मन में हौंसला हो तो काेई मंजिल नहीं होती मुश्किल
सोनिया ने कहा कि वो बीटेक पास हैं चाहती तो किसी आसान सी जॉब कर सकती थी, मगर रोडवेज बसों में चुनौतियों से सामना करके वो यह साबित करना चाहती हैं कि बसों में चालक और परिचालक केवल पुरूष ही नहीं हो सकते। उन्होंने कहा अगर मन में हौंसला हो तो कोई मंजिल मुश्किल नहीं होती। बेटियां अगर बाहर निकलेंगी तो समाज भी उन्हें स्वीकार करेगा।
अस्थाई महिला परिचालकों ने भी पेश की थी मिसाल, सरकार ने छीनी नौकरी
हाल में ही हरियाणा रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान पहली बार रोडवेज बसों में पहली बार महिला परिचालकों ने ड्यूटी ज्वाइन की थी। इसमें कुल तीन महिलाओं में से रेवाड़ी की शर्मिला तो वहीं सिरसा की निर्मला और शैफाली शामिल रही। दूध पीते बच्चों को घर छोड़ नौकरी करने की बदलाव की ये बयार शुरू होने पर हर ओर इनके चर्चे थे तो वहीं रिश्तेदार बधाई को लेकर इन्हें फोन कर रहे थे। मगर ये सिलसिला एक सप्ताह ही चला और इन युवतियों से नौकरी छीन ली गई। रोडवेज की हड़ताल खत्म होने पर जैसे ही पक्के कर्मचारी काम पर लौटे तो आउट सोर्सिंग के तहत भर्ती सभी कर्मचारियों को घर का रास्ता दिखा गया। मगर सोनिया स्थाई पद पर नियुक्त हुईं है और उन्हें बिना गलती किए हटाया नहीं जा सकता है।