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Haryana, Baroda By Election 2020: बरोदा के अखाड़े में असली व सियासी पहलवानों की राेचक कुश्‍ती

हरियाणा के बरोदा उपचुनाव के अखाड़े में असली और सियासी पहलवानों के बीच रोचक मुकाबला है। इस सियासी कुश्‍ती में सभी दलों ने अपना पूरा जोर लगा रखा है। भाजपा के योगेश्‍वर दत्‍त और कांग्रेस के इंदुराज नरवाल के बीच मुकाबला है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 04:44 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 04:44 PM (IST)
Haryana, Baroda By Election 2020: बरोदा के अखाड़े में असली व सियासी पहलवानों की राेचक कुश्‍ती
कांग्रेस प्रत्‍याशी इंदुराज नरवाल और भाजपा प्रत्‍याशी योगेश्‍वर दत्‍त।

हिसार, [जगदीश त्रिपाठी]। बरोदा के उपचुनावी अखाड़े में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के ओलंपियन पहलवान योगेश्वर दत्त हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से उतारे गए नए-नए राजनीतिक पहलवान इंदुराज नरवाल। तीसरे योद्धा हैं जोगेंद्र मलिक, जो इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट पर उतरे हैं। अभी लोग जोगेंद्र मलिक को मुख्य मुकाबले में नहीं मान रहे हैं।

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पिछला चुनाव यहां से कांग्रेस प्रत्याशी श्रीकृष्ण हुड्डा ने जीता था। वह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खास थे। उनका निधन हो गया। इस बार कांग्रेस ने उनके परिवार से प्रत्याशी नहीं उतारा है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा चाहती थीं कि स्वर्गीय हुड्डा के परिवार से ही किसी को लड़ाया जाए, लेकिन चली भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ही। हां, इतना जरूर हुआ कि हुड्डा भाजपा से आए जिन कपूर नरवाल को टिकट दिलाना चाहते थे, उन्हें नहीं दिला पाए, लेकिन जिन इंदुराज नरवाल को टिकट मिला, उन्हें भी हुड्डा की ही संस्तुति पर मिला है।

भाजपा ने अपने पुराने पहलवान पर ही दांव लगाया है। ओलंपिक मेडल जीतने वाले युवा योगेश्वर दत्त पिछली बार कांग्रेस के बुजुर्ग श्रीकृष्ण हुड्डा से पांच हजार से भी कम वोटों से हार गए थे। वैसे तो कई महीने पहले जब डॉ: अनिल जैन भाजपा के प्रदेश प्रभारी थे तो उन्होंने योगेश्वर को चुनावी अखाड़े में उतरने के संकेत दे दिए थे। योगेश्वर ने एक्सरसाइज भी शुरू कर दी थी। कोरोना संक्रमण काल में धुंआधार जनसंपर्क करते रहे, लेकिन चुनाव आया तो कुछ लोगों ने जातीय समीकरणों का हवाला देते हुए कई अन्य नाम उछाल दिए।

बेचारे योगेश्वर कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ दिल्ली पहुंचे। सोनीपत के सांसद रमेश कौशिक और भाजपा जिलाध्यक्ष मोहन बड़ौली भी योगेश्वर के ही पक्ष में थे और खुद मुख्यमंत्री मनोहरलाल भी। रही बात इनेलो के जोगेंद्र मलिक की तो उनके नाम पर ओमप्रकाश चौटाला ने खुद ही मुहर लगा दी। इस तरह देखा जाए तो एक मुख्यमंत्री और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न भी है।

कपूर नरवाल आखिरकार मान गए 

कांग्रेस की तरफ से जिन कपूर नरवाल को उतारे जाने की चर्चा थी वह 2014 का चुनाव इनेलो के टिकट पर लड़े थे और जबरदस्त टक्कर भी कांग्रेस प्रत्याशी को दी थी। फिर भाजपा में आए, लेकिन टिकट योगेश्वर ने झटक लिया, फिर भी कपूर नरवाल ने भाजपा नहीं छोड़ी। उन्हें भाजपा के कुछ नेताओं ने आश्वस्त भी कर रखा था कि इस बार उन्हें टिकट दिला देंगे, लेकिन वह स्वयं आश्वस्त नहीं थे। उन्होंने सोच रखा था कि इस बार तो लड़ना ही है। भाजपा न सही तो कांग्रेस से। कांग्रेस में उन्हें भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे सरपरस्त भी मिल गए। बरोदा में टिकट उसी को मिलेगा, जिसे हुड्डा चाहेंगे, यह बात कपूर जानते थे।

दिलचस्प यह कि कपूर ने कांग्रेस की सदस्यता भी नहीं ली। तय था कि कपूर हाथ उठाएंगे और उन्हें टिकट की घोषणा कर दी जाएगी। जब ऐसा नहीं हुआ तो कपूर निर्दलीय मैदान में उतर गए। कपूर के मैदान में उतरने से कांग्रेसियों चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। कपूर नरवाल को मनाने के यत्न-प्रयत्न किए जाने लगे। हुड्डा कपूर से मिलने पहुंचे। समझाया। फिर वह चुनाव नहीं लड़ने के लिए मान गए।

बलराज कुंडू का बल चुनाव बाद देखेगी सरकार 

वैसे तो बलराज कुंडू तब से भाजपा के खिलाफ हैं, जब उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट नहीं दिया था। पहले वह रोहतक शहर के पूर्व विधायक और पिछली मनोहर सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री रहे मनीष ग्रोवर पर निशाना साधते थे, बाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भी लपेटने लगे। वजह यह थी कि कुंडू को मंत्री पद नहीं मिला।

दरअसल चुनाव के बाद जब भाजपा बहुमत के आंकड़े से छह कदम दूर रह गई तब निर्दलीय विधायकों के समर्थन की बात चली। वे तैयार भी थे। कुंडू ने विधायकों की लॉबिंग की। कहा कि सब मंत्री बनाए जाएं। हालांकि उनका उद्देश्य खुद का मंत्री बनना सुनिश्चित करना था, लेकिन मनोहर लाल ने जननायक जनता पार्टी से गठबंधन कर गेम खेल दिया। उसके दस विधायक थे। फिर निर्दलीय विधायकों की आवश्यकता ही नहीं रही। फिर भी भाजपा ने उनकी उपेक्षा नहीं की, लेकिन बलराज कुंडू को नहीं पूछा। इससे कुंडू और आहत हो गए, परंतु उनके हाथ में कुछ नहीं रह गया था।

जब वह भाजपाई बने थे तब हरियाणा भाजपा के प्रभारी कैलाश विजवर्गीय थे। उन्होंने रोहतक जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे कुंडू की सरकार से मदद कराई। जब तक विजयवर्गीय रहे, तब तक तो कुंडू सशक्त रहे, पर वह गए तो कुंडू का टिकट भी चला गया। कुंडू ने अपने बल पर निर्दलीय चुनाव जीत लिया था, इसलिए वह पार्टी के अनुशासन से मुक्त हो गए थे। सरकार की तीखी आलोचना करने लगे। वैसे तो उनके आरोपों पर सरकार या भाजपाइयों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी, लेकिन कुछ दिन पहले उनके और उनकी कंपनी से जुड़े कुछ लोगों के खिलाफ गुरुग्राम में एफआइआर दर्ज हो गई है। वैसे बरोदा उप चुनाव तक उस एफआइआर में कुछ प्रगति होगी, ऐसा लगता नहीं।


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