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राकेश टिकैत ने खुद को हरियाणा का बता छेड़ा नया शिगूफा, कहीं हरियाणा की राजनीति में एंट्री की तो नहीं तैयारी

दिल्ली में छब्बीस जनवरी प्रकरण के दो दिन बाद उप्र-दिल्ली के गाजीपुर बार्डर राकेश टिकैत ने उप्र के लोनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर पर रोते हुए धमकाने का आरोप लगाया तो वह रोकर हीरो बन गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 03:11 PM (IST)Updated: Sun, 27 Jun 2021 02:06 PM (IST)
राकेश टिकैत ने खुद को हरियाणा का बता छेड़ा नया शिगूफा, कहीं हरियाणा की राजनीति में एंट्री की तो नहीं तैयारी
हरियाणा में जो लोग राकेश टिकैत को बाहरी बता रहे हैं, वे जान लें-मैं सोनीपत के मझाना गांव का हूं।

जगदीश त्रिपाठी, हिसार। राकेश टिकैत ने झज्जर में यह दावा कर कि वह हरियाणा के हैं, एक नया शिगूफा छेड़ दिया है। उनका कहना है कि हरियाणा में जो लोग उन्हें (राकेश टिकैत को) बाहरी बता रहे हैं, वे जान लें-मैं सोनीपत के मझाना गांव का हूं। अब उन्होंने मझाना कहा था या मल्हाना, लेकिन सोनीपत मे मझाना नाम का कोई गांव शायद नहीं है। मल्हाना गांव जरूर है, जहां जाट समुदाय के बालियान गोत्र के लोग रहते हैं। संभव है कि राकेश टिकैत इसी गांव की बात कर रहे हों, क्योंकि वह भी बालियान गोत्र के हैं। लेकिन यह तो तय है कि वह इस गांव के निवासी नहीं हैं।

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संभव है कि यहां से कभी उनके पूर्वज मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव गए हों, वैसे अभी यह भी पुष्ट नहीं है कि उनके पूर्वज सोनीपत के मल्हाना गांव से सिसौली लेकिन गए थे, लेकिन गए भी होंगे तो कई पीढ़ियों पहले। गौरतलब है कि राकेश टिकैत के प्रपितामह बालियान खाप के चौधरी थे। चौधरी का टीका होता था, इसलिए उन्हें टिकैत की उपाधि मिलती थी। उनके निधन के समय उनके पुत्र यानी राकेश टिकैत के पितामह की उम्र पंद्रह-सोलह वर्ष की रही होगी। बालियान खाप के गण्यमान्य लोगों ने पहले तो नया चौधरी चुनने के लिए विचार किया, लेकिन बाद में सर्वसम्मति से तय हुआ कि उनके बेटे को ही चौधरी बना दिया जाए। उनके बाद चौधर उनके बेटे महेंद्र सिंह टिकैत को मिली, जो दिल्ली के वोट क्लब मैदान में लाखों किसानों की भीड़ एकत्र कर देशभर में चर्चित किसान नेता के रूप में उभरे।

स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के बाद चौधर उनके बड़े पुत्र नरेश टिकैत को मिली जो राकेश टिकैत के बड़े भाई हैं। आठ महीने पहले नवंबर में कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलन शुरू हुआ तो टिकैत बंधु शामिल तो हुए लेकिन आंदोलन का नेतृत्व उनके बहुत महत्व नहीं देता था। आंदोलन में शामिल चालीस के लगभग संगठनों ने जब मिलकर संयुक्त किसान मोर्चे की कोर कमेटी बनाई तो दोनों भाइयों में से एक को भी स्थान नहीं मिला। अब भी संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से जो प्रेसनोट जारी होते हैं, उनमें नरेश अथवा राकेश टिकैत का नाम नहीं होता है।

यह बात अलग है कि आज हरियाणा में आंदोलन का प्रमुख चेहरा राकेश टिकैत बन चुके हैं। दिल्ली में छब्बीस जनवरी प्रकरण के दो दिन बाद उप्र-दिल्ली के गाजीपुर बार्डर राकेश टिकैत ने उप्र के लोनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर पर रोते हुए धमकाने का आरोप लगाया तो वह रोकर हीरो बन गए, क्योंकि उनके आंसुओं से हरियाणा में उनके स्वजातीय समुदाय में जबरदस्त आक्रोश पनप गया और राकेश टिकैत को प्रबल समर्थन मिल गया। आंदोलन के अन्य नेता नेपथ्य में चले गए।

गुरनाम चढ़ूनी जो आंदोलन में हरियाणा के एकमात्र चेहरा थे, उन्होंने राकेश टिकैत पर आक्षेप भी लगाए तो उनका इतना प्रबल विरोध हुआ कि वह बैकफुट पर चले गए और राकेश टिकैत हरियाणा में आंदोलन का सर्वमान्य चेहरा हैं। उनकी सभाओं में जिसे वह महापंचायत कहते हैं जबरदस्त भीड़ उमड़ती है। यह बात अलग है कि भीड़ में शामिल लोग उनके स्वजातीय ही होते हैं। लेकिन इससे क्या? यह उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बल तो मिलता ही है।

संभव है कि उत्तर प्रदेश में दो चुनाव लड़कर जमानत जब्त करा चुके राकेश टिकैत हरियाणा से विधानसभा या लोकसभा में पहुंचने की सोच रहे हों। इसके लिए सोनीपत मुफीद हो सकता है। जाट बहुल मतदाता वाला क्षेत्र है। वहां उनके गोत्र के लोग भी हैं। लेकिन यदि वह चुनावी राजनीति में प्रवेश करते हैं तो एक बड़ा प्रश्न यह उभरेगा कि वह इसके लिए किस दल का सहारा लेंगे। प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी की सरकार का तो वह विरोध ही कर रहे हैं। कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) में से ही किसी एक को उन्हें चुनना होगा। ऐसी स्थिति में वह इनेलो को ही चुनेंगे। उनके पिता स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत और इनेलो सुप्रीम चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के बीच आत्मीय रिश्ते रहे हैं। पारिवारिक संबंध हैं। कुछ दिन पहले टिकैत सिरसा जिले में स्थित चौटाला परिवार के फार्म हाउस पर जाकर चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से आशीष भी ले चुके हैं।

बता दें कि कभी स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत चौधरी ओमप्रकाश के चौटाला के मुख्यमंत्री काल में जींद के कंडेला में हुए किसान आंदोलन में चौटाला के अनुरोध पर किसानों को समझाने पहुंचे थे। वहां किसानों ने उन्हें अपमानित भी किया था। यद्यपि उस घटना को बहुत दिन बीत चुके हैं और आंदोलन का चेहरा बनने के बाद राकेश टिकैत की पहली महापंचायत कंडेला में ही हुई थी। उसके बाद वह हरियाणा में दर्जनों महापंचायतें कर चुके हैं।

राकेश टिकैत के बयानों से आंदोलन हिंसक होने का भी खतरा

इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुरनाम चढूनी और राकेश टिकैत आंदोलन को लेकर अलग अलग सुर आलाप रहे हैं। हरियाणा के हिसार में कोविड अस्‍पताल का शुभारंभ करने के दौरान जब सीएम पहुंचे तो आंदोलनकारियों ने जमकर उत्‍पात मचाया। राकेश टिकैत ने इसका समर्थन भी किया। मगर जब नोएडा में इसी तरह के कार्यक्रम में पहुंचे तो राकेश टिकैत ने कहा दिया कि वे स्‍वास्‍थ्‍य सेवा से जुड़े कार्य में आ रहे हैं उनका विरोध नहीं करेंगे। यही सवाल गुरनाम चढूनी ने भी पूछा कि यूपी में किसान विरोध क्‍यों नहीं कर रहे हैं। वहीं हरियाणा के टोहाना में जेजेपी विधायक देवेंद्र बबली के साथ आंदोलनकारियों की झड़प पर गुरनाम चढूनी ने कहा था कि हमें किसी पर हाथ नहीं उठाना है, अगर ऐसा कोई करेगा तो हम उसका साथ नहीं देंगे। मगर उनके इस बयान का विरोध हो गया है और राकेश टिकैत ने कहा था कि ये चढूनी के निजी विचार हो सकते हैं।


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