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Haryana Budget 2021: जूनोटिक बीमारियों पर रहेगी निगरानी, तीन जिलों में खुलेंगी बायो सेफ्टी लेवल 2 लैब

वायरस व बैक्टीरिया पर काम करने के लिए बीएसएल-2 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अच्छे स्तर की लैब मानी जाती है। यह लैब एवियन इन्फ्लूएंजा तथा अन्य पोल्ट्री रोगों में रैपिड और रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटीपीसीआर) के टेस्ट आसानी से कर सकेगी।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Sat, 13 Mar 2021 10:13 AM (IST)Updated: Sat, 13 Mar 2021 10:13 AM (IST)
Haryana Budget 2021: जूनोटिक बीमारियों पर रहेगी निगरानी, तीन जिलों में खुलेंगी बायो सेफ्टी लेवल 2 लैब
अभी प्रदेश में हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में ही एकमात्र बीएसएल थ्री स्तर की लैब है।

हिसार [वैभव शर्मा]। जूनोटिक (वे वायरस जनित बीमारियां जो पशुओं से इंसानों में और इंसानों से पशुआ में फैलती हैं) बीमारियों पर निगरानी रखने के लिए सरकार ने पहली बार इस बार बजट में कदम उठाया है। इसके तहत हिसार, सोनीपत और पंचकूला में बीएसएल- 2 (बायो सेफ्टी लेवल 2) लैब बनेगी। हिसार के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञानि विश्वविद्यालय में तो लैब का निर्माण भी शुरू कर दिया गया है।

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वायरस व बैक्टीरिया पर काम करने के लिए बीएसएल-2 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अच्छे स्तर की लैब मानी जाती है। यह लैब एवियन इन्फ्लूएंजा तथा अन्य पोल्ट्री रोगों में रैपिड और रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटीपीसीआर) के टेस्ट आसानी से कर सकेगी। अभी तक प्रदेश में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान के पास ही इस स्तर की लैब है। मौजूदा समय में इसका प्रयोग पोल्ट्री में फैलने वाले वायरस जनित रोगों की जांच के लिए किया जाएगा मगर विज्ञानी इसका प्रयोग दूसरे बैक्टीरिया वायरस पर शोध के लिए भी कर सकेंगे।

कैसे किसी लैब को बीएसएल-3 स्तर का मिलता है प्रमाण

इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर), काउंसिल आफ साइंटफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च व डिपार्टमेंट आफ बायो टेक्नोलाजी के मानक पूरे करने पर लैब को स्तर प्रदान किया जाता है। बायो सेफ्टी लेवल-1 लैब केवल शिक्षण के लिए बनाई जाती है। बीएसएल-2 लैब में वायरस की जांच, क्लीनिकल रिसर्च और शिक्षण का कार्य होता है।

बीएसएल लैब में ये होती हैं सुविधाएं

  • बीएसएल लैब को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बनाया जाता है।
  • इस लैब में हवा फिल्टर होकर लैब के भीतर प्रवेश करती है। इसके साथ ही हवा फिल्टर होकर ही बाहर निकलती है।
  • इन हवाओं का संपर्क एक-दूसरे से नहीं होता है। जिसके कारण संक्रमण का खतरा बेहद कम हो जाता है।
  • इसके साथ ही अलग-अलग जांचों के लिए अलग-अलग क्यूब बने होते हैं, जो पूरी तरह से एयरप्रूफ होते हैं। इन्हीं क्यूब के जरिये लैब में जांच होती है।
  • लैब में विशेष तौर पर फेस मास्क, पीपीई किट, हाथों में गलब्स, पहनकर ही प्रवेश मिलता है।
  • हवा का नेगेटिव प्रेशर होने के कारण भी वायरस या वैक्टीरिया प्रभावशाली नहीं रहते।

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