खेती की लागत को कम कर रही जीवाणु खाद, अधिक से अधिक किसान करें इस्तेमाल
लैब विशेषज्ञों ने बताया कि एफपीओ हैबिटेट के साथ हुए समझौते के अंतर्गत यहां तैयार किए जा रहे जीवाणु खाद से बीजों को उपचारित किया जाता है। इसके अलावा कई किसान फसलों की सिचाई के दौरान पानी के साथ भी इस खाद का उपयोग करते हैं। यूरिया खाद पर होने वाले 500 रुपये के खर्च के बदले केवल 150 रुपये की जीवाणु खाद अधिक कारगर साबित हो रही है। जिले के अनेक किसान इस खाद का उपयोग अपने खेत में कर रहे हैं। साथ ही अपने खर्च को कम करते हुए जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के जीवाणु खाद उत्पादक एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (सेंटर ऑफ बायो फर्टिलाइजर प्रोडक्शन एवं टेक्नोलॉजी) का सोमवार को डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा ने निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि यूरिया, डीएपी तथा कीटनाशकों के विकल्प के रूप में जीवाणु खाद खेती की लागत को कम करती है। इससे किसानों की आमदनी और जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ रही है। इसलिए किसान अधिक से अधिक किसानों को जीवाणु खाद का इस्तेमाल करें।
लैब विशेषज्ञों ने बताया कि एफपीओ हैबिटेट के साथ हुए समझौते के अंतर्गत यहां तैयार किए जा रहे जीवाणु खाद से बीजों को उपचारित किया जाता है। इसके अलावा कई किसान फसलों की सिचाई के दौरान पानी के साथ भी इस खाद का उपयोग करते हैं। यूरिया खाद पर होने वाले 500 रुपये के खर्च के बदले केवल 150 रुपये की जीवाणु खाद अधिक कारगर साबित हो रही है। जिले के अनेक किसान इस खाद का उपयोग अपने खेत में कर रहे हैं। साथ ही अपने खर्च को कम करते हुए जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि किसान जीवाणु खाद को अपनाकर न केवल 5 से 10 फीसद फसल की पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं, बल्कि जीवाणु खाद के उपयोग से 15-25 फीसद तक रासायनिक खादों के उपयोग में बचत तथा मिट्टी की पैदावार क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं। डिप्टी स्पीकर ने पादव जैव प्रौद्योगिकी केंद्र का भी दौरा किया। इस दौरान कुलपति प्रो. समर सिंह, पूर्व विधायक रामचंद्र कंबोज आदि पदाधिकारी उपस्थित रहे।
किसान विज्ञानियों से संपर्क बनाएं
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय निरंतर किसानों के हितों को ध्यान में रखकर ही शोध कार्य कर रहा है। मौजूदा समय में खराब हुई कपास की फसल को लेकर भी विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर इसके कारणों को जाना है। उन्होंने कहा कि किसान विश्वविद्यालय के विज्ञानियों से लगातार संपर्क बनाए रखें और अपनी फसलों में सिफारिश किए गए कीटनाशकों का ही प्रयोग करें। बिना सिफारिश किए गए कीटनाशकों के प्रयोग से कई बार किसान की फसल नष्ट हो जाती है और उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
कुछ वर्षो में जीवाणु खाद के उत्पादन में हुई है वृद्धि
पिछले 2 वर्षों में इस केंद्र ने लगभग 6 लाख लीटर जीवाणु खाद का उत्पादन व बिक्री की है और इस वर्ष यह लक्ष्य 10 लाख लीटर तक पहुंचाना है। अभी हाल के दिनों में जीवाणु खाद की बिक्री के लिए हमारे विश्वविद्यालय, हैफेड तथा हैबिटेट जिनोम ने करार साइन किया है, ताकि जीवाणु खाद अधिक से अधिक किसानों को उपलब्ध कराई जा सके।