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Azadi Amrit Mahotasav: 1857 में साहित्यकारों ने रचनाओं के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी जलाई क्रांति की ज्वाला

मध्य भारत के प्रत्यक्षदर्शी विष्णु भट्ट गोडसे की माझा प्रवास दिल्ली के ख्वाज हसन निजामी की गदर की सुबह-शाम मोइनुद्दीन हसन की गदर 1857- आंखों देखा विवरण तथा कार्ल मार्क्‍स की रचना मुख्य हैं। प्रथम स्वतंत्रता समर बाल चाल्र्स की हिस्ट्री आफ म्यूटिनी 1859 महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं।

By Manoj KumarEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 11:46 AM (IST)
Azadi Amrit Mahotasav: 1857 में साहित्यकारों ने रचनाओं के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी जलाई क्रांति की ज्वाला
प्रोफेसर महेंद्र ने बताया 1857 क्रांति की रचनाएं मात्र राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को नहीं बल्कि हरियाणा को भी वर्णित करती हैं

जागरण संवाददाता, हिसार। 1857 की क्रांति के अध्ययन एवं जानकारी के लिए हत्यारे अंग्रेजी शासन के दस्तावेज, अंग्रेजी व अन्य यूरोपीय प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण, स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के लेख, स्वतंत्रता आंदोलन की रचनाएं तथा लोक चेतना है। इतिहासकार एवं हिसार डीएन कालेज प्रोफेसर महेंद्र सिंह ने बताया कि यह मात्र राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को नहीं वर्णित करते बल्कि, हरियाणा के बारे में भी पर्याप्त जानकारी देते हैं।

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मध्य भारत के प्रत्यक्षदर्शी विष्णु भट्ट गोडसे की माझा प्रवास, दिल्ली के ख्वाज हसन निजामी की गदर की सुबह-शाम, मोइनुद्दीन हसन की गदर 1857- आंखों देखा विवरण तथा कार्ल मार्क्‍स की रचना मुख्य हैं। बाद के लेखन में वीडी सावरकर का प्रथम स्वतंत्रता समर, बाल चाल्र्स की हिस्ट्री आफ म्यूटिनी 1859 महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं।

लोक चेतना में खगेंद्र ठाकुर ने बंगाल, बिहार व ब्रज क्षेत्र, अमृत लाल नागर ने अवध, राही मासूम रजा ने दिल्ली से लखनऊ के मध्य, वृंदालाल वर्मा ने बुंदेलखंड तथा पीसी जोशी ने भारत के विस्तृत हिस्से को अपने शोध व लेखन का आधार बनाया है। संत राहड़ ने क्रांति के कारकों, प्रारंभ व विस्तार के विभिन्न पक्षों को लिखा है। कारकों को स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं कि -

सब अंगरेजा कै मन भाई, आटै मैं चरबी मिलवाई, कारतूस कै चरबी पासा, खांड घृत मैं चरबी भाशा

क्रांति के प्रारंभ के बारे में उन्होंने लिखा है कि-

मिरट (मेरठ) आद लाहोर विचालै, फिरी फोज अज्ञा नहि पालै

हिसार क्षेत्र के बारे में उनकी पंक्तियां इस प्रकार हैं-

मच्यौ गदर अंगरेज मराने, रहे खए विज लेय पराने

मिरअ मार हांसी आय भारी, हिसार गदर मच्यो बहु भारी

राजा मरे लाक विचलाऐ, आपस मैं सब लुट मचाऐ

सरसै अरू बंगल तक भाई, मिल मुसलमान rां गदर मचाई।।

हाली पानीपती 1857 की क्रांति के समय दिल्ली में थे। उन्होंने वहां के घटनाक्रम को लिखा। वह अंग्रेजों की दमननीति और आम लोगों की बेबसी पर लिखते हैं-

राज आखिर हुई और बज्म हुई जेरों जबर, अब न देखोगे कभी लुत्फे शबाना हरगिज।।

दमन का विरोध के इन शब्दों में कहते हैं-

जीते हो तो कुछ कीजिए जिंदों की तरह

मुर्दो की तरह जीए तो क्या खाक जीए।।

हरियाणा क्षेत्र में 1901 में साक्षरता दर 2.1 प्रतिशत है। अत: 1857 क्या होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इस क्षेत्र के लोगों ने रागिनी, चुटकुले, कहानी, व किस्से बनाकर इसको पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचेगा। जो अनमोल स्नोत हैं।


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