अनसुने शब्दों के उच्चारण से पढ़ते हैं मन की बात, फिर बिछड़ों को अपनों से मिलाते हैं अनूप
हरियाणा के फतेहाबाद के अनूप के पास बेहद खास क्वालिटी है। वह उच्चारण से किसी व्यक्ति की भाषा समझ लेते हैं या यूं कहें मन की बात पढ़ लेते हैं। अपने इस गुण से वह बिछड़ गए गैर हिंदीभाषी लोगों को उनके अपनों तक पहुंचाते हैं।
फतेहाबाद, [मणिकांत मयंक]। हरियाणा के फतेहाबाद के टाेहाना कुमार एक अनोखी खूबी रखते हैं। वह शब्दों के उच्चारण से मन की बात और किसी भी भाषा को समझ लेते हैं। वे शब्द संग चेहरे की भाव-भंगिमा का मनन करते हैं। फिर अपनों से दूर बिछड़े हुए लोगों के लिए शब्द व चेहरे के भाव को भटकाव एवं मिलन का जरिया बनाते हैं। ओर से छोर तक... भाषा की परेशानियों के बावजूद देश के अनेक हिस्सों से लेकर भूटान के सीमावर्ती इलाके तक...। वह अब तक विभिन्न परिस्थितियों में भटके हुए 64 लोगों को उनके स्वजनों तक पहुंचा चुके हैं।
देशभर के अनेक क्षेत्रों से भटके हुए 64 लोगों को अपनों तक पहुंचा चुके टोहाना के अनूप
अनूप कुमार शब्दों के उच्चारण को पढ़कर ऐसे लोगों को अपनों तक पहुंचाते हैं जो देश के किसी गैर हिंदी भाषी प्रदेश से भटककर यहां पहुंच जाते हैं। भारत विकास परिषद से जुड़े अनूप उन शब्दों के अर्थ तलाशते हैं। यदि उन्हें समझ में आ जाता है कि इस भाषा का शब्द है तो उस प्रदेश की भारत विकास परिषद के लोगों से संपर्क करते हैं। इंटरनेट की भी मदद लेते हैं।
भारत विकास परिषद के सदस्य हैं, परिषद की अन्य प्रदेशों की इकाइयों से लेते हैं मदद
बीकॉम व एमएमसी अनूप कुमार बताते हैं कि 40 मामले टफ थे। कारण कि सुदूर प्रांतों की भाषा को समझना कठिन था। बस, शब्दों के उच्चारण व चेहरे की भंगिमाओं को पढ़कर ही उनके रिश्तेदारों तक पहुंच सके। भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय नेटवर्क का लाभ मिलता रहा। वह बताते हैं कि परिवार से बिछड़े लोगों में अलग-अलग मन:स्थिति के विभिन्न आयुवर्ग के लोग होते हैं। जब उन्हें सौंपते हैं तो उनके स्वजन अपनी भाषा में यह कहते हुए दुआएं देते हैं कि आप भगवान हो।
जब हेमवती के पिता ने कहा, आप भगवान हो
भूटान बोर्डर के जलपाईगुड़ी की महिला हेमावती पंद्रह माह से भटकती हुई टोहाना रेलवे स्टेशन आ पहुंची। वह बार-बार तमर्ची-तमर्ची बोल रही थी। अनूप कुमार ने उसकी तीन-चार बार काउंसलिंग की। पिता के बारे में पूछा तो बार-बार पीठ की ओर हाथ ले जा रही थी। अंदाजा लगाया। कहीं चाय बगान में तो काम नहीं करते। फिर तमर्ची शब्द नेट पर डाला। चमुर्ची नाम का जिला आया।
चाय बागानों से संपर्क साधा तो सबने बताया कि वह चमर्ची है। वहां के पुलिस स्टेशन से संपर्क किया तो पता चला कि ग्यारह माह से लापता होने के कारण उसके स्वजनों ने मरा हुआ मान लिया था। फिर वहां के पुलिस प्रशासन के जरिये हेमावती के स्वजनों को जानकारी दी। वे आए और उसे ले गए। हेमावती के पिता बंधन मांझी ने कहा, आप भगवान हो।
कोरोना संकट के दौर में भी अनूप कुमार अपनी चार सदस्यीय टीम के साथ बिहार के मधुबनी, उत्तरप्रदेश के मेरठ, आंध्रप्रदेश, झारखंड, असम, गुजरात जैसे सुदूर स्थानों स्थानों तक सात लोगों को उनके परिवार से मिला चुका हैं।
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खुद करते हैं काउंसिलिंग
अनूप कुमार बताते हैं कि शब्दों के उच्चारण का कोई न कोई मतलब होता है। उसे समझने के लिए मिलते-जुलते शब्द तलाशते हैं। उसे कई बार रिपीट करने की कोशिश करते हैं। तीन-चार सवाल के बाद फिर सवाल। इस तरह, अनेक काउंसिलिंग के बाद समझ आती है। संबंधित जगह की भारत विकास परिषद मददगार होती है। मसलन, मां को क्या कहते हैं आदि पूछते हैं। फिर स्थानीय पुलिस से भी हेल्प लेकर स्वजनों तक पहुंचते हैं।