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बेटी ने टोका तो 80 वर्षीय पिता ने जीते 250 मेडल, ताने सहे मगर पत्‍नी को भी बनाया चैंपियन

2002 में खेलना शुरू कर बुजुर्ग दंपती सुंदर सिंह ढिल्लो और हरप्यारी जीत चुके 250 से अधिक पदक। सुबह चार बजते ही पहुंच जाते हैं पार्क में रोजाना 10 से 12 किलोमीटर चलते हैं पैदल

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 06:28 PM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 09:04 AM (IST)
बेटी ने टोका तो 80 वर्षीय पिता ने जीते 250 मेडल, ताने सहे मगर पत्‍नी को भी बनाया चैंपियन
बेटी ने टोका तो 80 वर्षीय पिता ने जीते 250 मेडल, ताने सहे मगर पत्‍नी को भी बनाया चैंपियन

हिसार [पवन सिरोवा] सफलता का उम्र से कोई लेना-देना नहीं। 80 साल के बुजुर्ग दंपती सुंदर सिंह ढिल्लो और उनकी पत्नी हरप्यारी इस बात को कई वर्षों से प्रमाणित करते चले आ रहे हैं। जीवन में अधिक से अधिक पदक जीतने का लक्ष्य रखने वाला यह दंपती अब 250 से अधिक नेशनल व स्टेट लेवल खेल प्रतियोगिताओं में पदक हासिल कर चुका है।

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हौसला इस कदर बुलंद है कि दोनों सुबह चार बजे पार्क में पहुंच जाते हैं और 10 से 12 किलोमीटर पैदल चलते हैैं और दौड़ लगाते हैं। हिसार (हरियाणा) में रहने वाले सुंदर सिंह बताते हैं कि वे टहलने और दौडऩे का अभ्यास कभी बंद नहीं करते। यह नियम 2002 से बनाया हुआ है।

साल 1990 में सेना में सूबेदार पद से रिटायर्ड सुंदर सिंह की बेटी वैशाली अंतरराष्ट्रीय स्तर की जूडो खिलाड़ी हैं। पिता को कई सालों तक घर पर ही बैठा देख उन्होंने एक दिन अनायास यह कह दिया कि पापा, आप खिलाड़ी बेटी के पिता हैं। सेना से रिटायर्ड सैनिक हैं। आपको दिनभर घर में यूं बैठे रहना शोभा नहीं देता।

बेटी की बात सुंदर सिंह के दिल में बैठ गई। उन्होंने अगले दिन से ही पार्क में दौड़ लगाने के लिए जाना शुरू कर दिया। साल 2002 में पहली बार भिवानी में आयोजित मास्टर्स एथलेटिक्स मीट में हिस्सा लिया और लॉंग जंप, 200 व 100 मीटर रेस में रजत पदक जीते। इस दौड़ ने उनके जीवन में सपने भर दिए। अधिक से अधिक पदक जीतने का लक्ष्य बना उन्होंने इसे अपना जुनून बना लिया ताकि मन इसमें लगा रहे।

इसके बाद प्रतिदिन सुबह उठने और 10 किलोमीटर दौड़ लगाने का नियम बनाया। अगले साल 2003 में हिसार में पांच किलोमीटर वॉक में गोल्ड जीतने की खुशी ने उन्हें मैदान से ऐसा जोड़ा कि उन्होंने प्रतिदिन सुबह कम से कम 10 किलोमीटर दौड़ लगानी शुरू कर दी। इंजीनियर बेटा विदेश चला गया, बेटी की शादी हो गई। इसके बाद पत्नी हरप्यारी घर में अकेली रह गईं। ऐसे में वह भी पति के साथ मैदान में जाने लगीं।

साल 2013 में पहली बार अलवर (राजस्थान) में नेशनल मास्टर्स मीट में दोनों ने 100 व 200 मीटर रेस, तीन किलोमीटर वॉक, पांच किलोमीटर ओपन दौड़ में हिस्सा लिया और गोल्ड मेडल जीते। यह बुजुर्ग दंपती युवा खिलाडिय़ों के लिये प्रेरणा बन रहे हैं। अब तक सुंदर सिंह मास्टर्स एथलेटिक्स मीट में करीब 160 नेशनल व स्टेट पदक जीत चुके है, वहीं हरप्यारी भी करीब 100 नेशनल व स्टेट चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी हैं।

तानों से बचने के लिए जब अंधेरे में लगाई दौड़

हरप्यारी कहती हैं, सुबह दौड़ लगाने जाती तो कई लोग हंसते थे। कमेंट भी करते थे कि बुढ़ापे में दौड़कर क्या ओलंपिक जीतना है। तब शर्म आती थी। इसलिए अलसुबह व अंधेरा होने पर शाम को दौड़ लगाती थी। धीरे-धीरे लोगों की परवाह करनी छोड़ दी। जब पदक जीतने लगे तो ताने मारने वालों ने आकर सम्मानित किया। इस सम्मान ने हौसला बढ़ाया। अब हम दोनों का एक ही लक्ष्य है कि मरते दम तक पदक जीतने का प्रयास करते रहना है।

बीमारी को हरा बने चैंपियन

साल 2017 में फेफड़ों में परेशानी के कारण सुंदर सिंह बीमार हो गए। डॉक्टर ने जवाब दे दिया। उनके उपचार के दौरान हरप्यारी भी बीमारी हो गईं। दोनों का करीब दो साल आर्मी अस्पताल में इलाज चला। वहां सुंदर सिंह ने मौत से जंग जीती। स्वास्थ्य में सुधार होते ही दंपती मैदान में उतरे और फिर से लॉग जंप, 100 व 200 मीटर, तीन किलोमीटर और पांच किलोमीटर वॉक की तैयारी की। फरवरी 2020 में ओपन चैंपियंस नेशनल मीट में दोनों ने चार-चार पदक जीते।

इनकी सेहत का राज

सुबह : जल्दी उठकर एक गिलास पानी। नियमित व्यायाम। क्षमतानुसार चलना और दौडऩा। स्नान के बाद नाश्ते में दूध और गोंद के दो लड्डू।

दोपहर : भोजन में तीन रोटी, दाल, सब्जी और दही।

शाम : पेटभर कर ज्यादा दूध वाली खीर।

रात : हल्का-फुल्का भोजन। समय पर सोना।


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