रिश्तेदार खिलाते थे चावल, हरबंस ने देखा तो 77 की उम्र में 70 मरीजों को पहुंचाने लगे पौष्टिक आहार
जीवन के इस मोड़ पर भी औरों के लिए जीने की आकांक्षा लिये दिन की शुरुआत ही बीमारों के लिए पौष्टिक आहार दलिया बनाकर करते हैं।
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद
नाम हरबंस लाल वढ़ेरा। उम्र 77 वर्ष। जीवन के इस मोड़ पर भी औरों के लिए जीने की आकांक्षा लिये दिन की शुरुआत ही बीमारों के लिए पौष्टिक आहार दलिया
बनाकर करते हैं। इस संवेदना के साथ कि सेहतमंद समाज की अवधारणा को साकार करने में थोड़ी-सी आहुति उनकी भी हो। बुजुर्ग की इस सोच को शहर की स्वयंसेवी
संस्थाएं नित्य सलाम करती हैं। यूं ही नहीं बल्कि हरबंस लाल के हाथों से बनाई पौष्टिकता से भरपूर दलिया सरकारी अस्पताल में दाखिल करीब 70 जरूरतमंद मरीजों तक नियमित पहुंचाकर।
संतुलित आहार दलिया बनाने तथा उसे जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचाने का यह सिलसिला तकरीबन बारह साल से चला आ रहा है। उम्र से बुजुर्ग मगर जज्बात से जवां हरबंस बताते हैं कि वह सुबह छह बजे से दलिया बनाने में जुट जाते हैं। खुद ही बर्तन धोते हैं। चूल्हा साफ करते और घी, चीनी, नमक व सौंफ डालकर दलिया बनाते
हैं। पौष्टिक आहार दलिया की शुद्धता में स्वच्छता जरूरी होती है इसलिए परिवार के किसी सदस्य की भी क्या मजाल कि उसमें हाथ भी लगा दे। एक घंटे में 15 से 20 किलो दलिया बनकर तैयार। इसके बाद पूरा एक घंटा उसे फ्रिज में रखते हैं। इतने में, सेवा भारती व अन्य संस्थाओं से लोग आते हैं और बाल्टियों में दलिया लेकर
सिविल अस्पताल चले जाते हैं। वहां शिशुओं को जन्म देने वाली मां, डायबिटीज व अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों में दलिया बांटते हैं। दलिया बांटने वाले सेवा भारती के जिलाध्यक्ष बताते हैं कि बुजुर्ग हरबंस लाल के हाथों से बने इस पौष्टिक आहार का इंतजार मरीजों के साथ-साथ अस्पताल प्रबंधन के लोगों को भी रहता है। सिविल
सर्जन डॉ. मुनीश बंसल बताते हैं कि सेहत का बेहद संतुलित आहार है दलिया। डिलीवरी केस हो या डायबिटीज, सबके लिए फायदेमंद है। व्यक्तिगत तौर पर दिखाया गया हरबंस लाल का यह जज्बा देश के करोड़ों लोगों के लिए नजीर है।
मैं कौन होता हूं, आहार देने वाला? निमित्त मात्र हूं। सब ईश्वर करवाते हैं। मेरे लिए तो हर दिन सुपोषण सप्ताह होता है। कोशिश रहती है कि समाज को स्वस्थ बनाए रखने में कुछ योगदान दे सकूं। पिछले साढ़े ग्यारह-बारह साल में दस दिन हुए होंगे जब किसी काम की वजह से बाहर रुकना पड़ गया हो और दलिया बनाने से वंचित रहना पड़ा हो। - हरबंस लाल वढ़ेरा। यूं मिली प्रेरणा और बन गए मिसाल
करीब बारह साल पहले की बात है। हरबंस लाल अपनी रिश्तेदारी में राजस्थान के हनुमानगढ़ गए थे। वहां हरनाम दास चावल बनाते थे और गरीबों को खिलाते थे। बात चल पड़ी तो हरनाम दास ने कहा, समाज के लिए कुछ करो। वहां से लौटकर घर आए तो हरबंस करीब दो माह तक इसी उधेड़बुन में रहे कि क्या वह यह सब कर पाएंगे। इस नतीजे पर पहुंचे कि क्यों न आहार को पौष्टिकता से जोड़ कुछ अलग किया जाए। फिर उन्होंने बीमार लोगों को दलिया बनाकर खिलाने की ठानी। मध्यमवर्गीय परिवार के हरबंस लाल को दलिया की आवश्यक सामग्री के लिए अधिक हाथ-पैर मारने की जरूरत नहीं पड़ी। सो, दलिया बनाने का सिलसिला चल पड़ा। अब इसे मरीजों तक पहुंचाने की बात थी। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग जुड़े और स्वस्थ समाज की मंजिल की ओर चल पड़ा कारवां।
क्या होती है दलिया
यह गेहूं को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर बनायी जाती है। इसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन, आयरन और फाइबर पाया जाता है। दलिया से बने डिश ज्यादातर लोग नाश्ते, लंच और डिनर में खाना पसंद करते हैं, इसलिए यह लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय है। दलिया बनाने के कई तरीके हैं। सब्जियों वाली दलिया सब्जी डालकर बनायी जाती है जबकि मीठी दलिया दूध में बनायी जाती है।