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उखेड़ा रोग के कारण 20 से 45 फीसद फसल होती है खराब

हिसार ग्वार बारानी क्षेत्रों में खरीफ की एक मुख्य फसल मानी जानी जाती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 May 2019 07:15 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2019 07:15 AM (IST)
उखेड़ा रोग के कारण 20 से 45 फीसद फसल होती है खराब
उखेड़ा रोग के कारण 20 से 45 फीसद फसल होती है खराब

जागरण संवाददाता, हिसार : ग्वार बारानी क्षेत्रों में खरीफ की एक मुख्य फसल मानी जानी जाती है। प्रदेश के रेतीले व बारानी इलाकों में ग्वार फसल का जड़ गलन रोग की चपेट में आ रही है। उखेड़ा रोग के प्रकोप से 20 से 45 फीसद खड़ी फसल नष्ट हो जाती है, जो जमीन के प्रकार पर निर्भर करती है। इस बात को ध्यान में रखकर हिसार ब्लॉक के गांव तलवंड़ी रूक्का में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस ढूकिया एवं ग्वार विशेषज्ञ डा. बीडी यादव की ओर से ट्रेनिग का आयोजन किया गया।

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ग्वार विशेषज्ञ डा. यादव ने किसानों को संबोधित करते हुए ग्वार में कम पैदावार होने का उखेड़ा बीमारी एक मुख्य कारण बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस रोग का इलाज नहीं है, परंतु मुख्य कारण किसानों को इस रोग के प्रति जानकारी का अभाव है। जिसके कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उखेड़ा के लक्षण -

डा. यादव ने बताया कि इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों में फसल के पत्ते पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और पौधे धीरे-धीरे मुरझाकर सुख जाते हैं। ऐसे पौधों को जब उखाड़ कर देखते हैं तो उनकी जड़ें काली मिलती हैं।

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उखेड़ा बीमारी का इलाज -

किसान गोष्ठी में जानकारी देते हुए डा. बीडी यादव ने बताया कि इस रोग की फंफूद जमीन के अंदर पनपती है, जो उगते हुए पौधों पर आक्रमण करती है। इस प्रकोप से पौधे की जड़ें काली पड़ जाती हैं और जमीन से उनकी खुराक रूक जाती है। इसलिए पौधों पर स्प्रे करने का कोई फायदा नहीं होता। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 3 ग्राम कार्बन्डाजमि 50 फीसद (बेविस्टीन) प्रतिकिलो बीज की दर से सुखा उपचारित करने के बाद ही बिजाई करनी चाहिए। ऐसा करने से 80 से 95 फीसद इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। जड़गलन रोग का इलाज मात्र 15 रुपये बीज उपचार से संभव है। ग्वार विशेषज्ञ ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीज उपचार ही एक मात्र हल बताया। वैज्ञानिकों ने किसानों को गेहूं व सरसों की फसल कटने के बाद अगली फसल की बिजाई से पहले अपने खेतों की मिट्टी का सैंपल लेकर उसकी जांच एचएयू या हरियाणा सरकार की मिट्टी जांच प्रयोगशाला से करवाने की सलाह दी।

इस दौरान गांव के प्रगतिशील किसान रामकुमार, सुरेश गोयल, रणबीर सिंह, दयानंद, मुंशीराम, होशियार सिंह, विक्रम पंच, सतवीर राठौर, पवन स्वामी आदि मौजूद रहे।

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