1971 विजय दिवस : भारतीय फौज को देख अपने बुजुर्ग को छोड़ भाग गए थे पाकिस्तानी, 10 दिन हमने संभाला
49 साल पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध का अजब किस्सा सिरसा के डबवाली निवासी रिटायर्ड कर्नल बिक्रमजीत सिंह गिल ने बताया कि भारतीय सेना पाकिस्तान के एक गांव में घुसी तो कुछ लोग चारपाई पर एक बुजुर्ग को लेजा रहे थे। भारतीय सेना को देखते ही वे उसे वहीं छोड़ गए।
डबवाली/सिरसा [डीडी गोयल]। बेशक 49 साल बीत चुके हैं। पाकिस्तान का नाम आते ही वर्ष 1971 की याद ताज़ा हो जाती है। उस दौरान भारतीय सेना पाकिस्तान में घुसी तो लोग भागने लगे। हम पाकिस्तान के एक गांव में दाखिल हुए तो कुछ लोग चारपाई पर एक बुजुर्ग को लेजा रहे थे। भारतीय सेना को देखते ही वे उसे वहीं छोड़ गए। 10-12 दिन तक हमनें पाकिस्तानी बुजुर्ग का ख्याल रखा। जब सीज फायर हुआ तो बुजुर्ग को वापिस लौटा दिया। यह कहना है भारतीय सेना के रिटायर्ड कर्नल बिक्रमजीत सिंह गिल का। गिल डबवाली के गांव पन्नीवाला मोरिकां के रहने वाले हैं। वर्ष 2000 में परिवार समेत पंजाब के बठिंडा शिफ्ट हो गए थे।
ब्रिकमजीत सिंह गिल को दो बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला था। जून 1971 में इंडिपेंडेंट आम्र्ड ब्रिगेड में बतौर सैकंड लेफिटनेंट देश के इस्टर्न सेक्टर नागालैंड में तैनात थे। कर्नल गिल की रेजिमेंट को अक्तूबर 1971 में वेस्टर्न सेक्टर भेज दिया गया। जहां उन्हें भारतीय सेना की फ्रंट लाइन के लिए युद्धक सामग्री आपूर्ति करने का कार्य सौंपा गया था। सामग्री को सांबा सेक्टर पहुंचाने की जिम्मेदारी थी। युद्ध शुरु होने के बाद दुश्मन ने 6 दिसंबर को सांबा से करीब 10 किलोमीटर पहले रात में एम्युनिशन लाइन तोडऩे का प्रयाास किया। एक विमान ने नेपाम बम गिरा दिया। अगर सप्लाई लाइन पर गिरता तो नुकसान हो जाता।
1965 में पाकिस्तान के रेलवे स्टेशन पर खड़े थे
गिल का कहना है कि वर्ष 1965 में भ्री भारतीय फौज पाकिस्तान के काफी अंदर तक घुस गए थे। सियालकोट सिर्फ 10-12 किलोमीटर था। हम पाकिस्तान के एक रेलवे स्टेशन के पास खड़े थे। उस समय पाकिस्तान के खेतों में रशियन ट्रैक्टर दिखाई दिए। इसका मतलब 1962 के बाद रशियन पाकिस्तान की मदद कर रहा था। युद्ध के बाद हमारे प्रधानमंत्री वहां गए थे। दोनों देशों में संधि के बाद सबकुछ बेहतर हो गया।
पढ़ाई छोड सेना में भर्ती हुए
वर्ष 1962 में गिल नेशनल कॉलेज सिरसा में बीए प्रथम वर्ष का छात्र था। वे बताते हैं कि उस समय युद्ध हो रहा था। देश के लिए कुछ कर गुजरने का ख्याल आया। बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई छोड़कर सेना में भर्ती हो गया। अंतिम वर्ष की पढ़ाई सेना में रहते हुए पूरी की। पैराशूट जंप तथा घुड़सवारी सेना में सीखी। आज मैं 74 वर्ष का हो चुका हूं, हौसला इतना है कि पैराशूट जंप कर सकता हूं।