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पिता तनाव में रहता हो या स्मोकिंग करता हो तो भी बच्चे में हो सकता है जेनेटिक डिसऑर्डर

15 फीसद बच्चे प्री-मैच्योर डिलीवरी से पैदा हो रहे हैं। जर्मनी की द पीफ्रोहेम आर्गेनाइजेशन के शोध में ये सामने आया है। इस पर कनाडा, चाइना, जर्मनी, घाना, भारत में काम किया जा रहा है

By Edited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 08:04 AM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 11:38 AM (IST)
पिता तनाव में रहता हो या स्मोकिंग करता हो तो भी बच्चे में हो सकता है जेनेटिक डिसऑर्डर
पिता तनाव में रहता हो या स्मोकिंग करता हो तो भी बच्चे में हो सकता है जेनेटिक डिसऑर्डर

हिसार, जेएनएन। बदलता वातावरण इंसान के लिए खतरा बन रहा है। कुछ दशकों से पर्यावरण में आए बदलाव और प्रदूषण के कारण हमारा डीएनए भी प्रभावित हो रहा है। सांस के प्रदूषण हमारे खून में समा गया है, यही कारण है कि दुनियाभर में 10 फीसद बच्चे प्री-मैच्योर डिलीवरी से पैदा हो रहे हैं। जबकि भारत की स्थिति इससे भी खराब है। भारत में पैदा होने वाले बच्चों में से 15 फीसद बच्चे प्री-मैच्योर डिलीवरी से पैदा हो जाते हैं।

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जर्मनी की द पीफ्रोहेम आर्गेनाइजेशन की तरफ से किए जा रहे शोध में ये सामने आया है। इस संस्थान के तहत कनाडा, चाइना, जर्मनी, घाना और भारत में काम किया जा रहा है। आर्गेनाइजेशन से जुड़े कनाडा के वैज्ञानिक प्रो. डेविड ओलसन शिशु मृत्यू दर पर काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भ्रूण में बदलाव आ रहा है। उसी के कारण मेंटल डिस्टऑर्डर, दुबले-पतले, दिव्यांग या आंखों की समस्याओं के साथ बच्चे पैदा हो रहे हैं। ऐसे में हमें पर्यावरण में बहुत सुधार करने के साथ साथ स्वयं का स्वयं का ख्याल रखना होगा। प्रो. डेविड हिसार के गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे।

माइग्रेशन के कारण भी महिलाओं पर पड़ रहा प्रभाव
प्रो. डेविड के अनुसार बच्चों की प्री-मैच्योर डिलीवरी के कई कारण हैं। पोष्टिक आहार, जनसंख्या वृद्धि, खेतों में कैमिकल, कुपोषणता, महिलाओं में तनाव, प्रदूषण, तापमान, रेडियोएक्टिवत, प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ माइग्रेशन यानी एक जगह से दूसरी जगह (जहां की जलवायु और मौसम अलग तरह का है) जाने से भी महिलाओं पर असर हो रहा है। उन्होंने कहा कि खान-पान का ध्यान रखकर, समय पर मेडिकल ट्रीटमेंट, सरकार की इससे संबंधित योजनाएं लोगों तक पहुंचाकर, भ्रूण बनना शुरू होने से डिलीवरी तक उसका ख्याल रखकर और रसायनिक पदार्थो का सेवन न करके इस प्री-मैच्योर डिलीवरी की समस्या को काफी हद तक खत्म किया जा सकता है।

मां के फेफड़ों के साथ जाता है प्रदूषण
दूसरी और, प्रेग्नेंसी एंड बच्चों के स्वास्थ्य सुधार पर काम कर रहे यूनिवर्सिटी ऑफ ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक प्रो. रिचर्ड शैफरी ने कहा कि जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनका डीएनए प्रभावित हो रहा है। मां सांस लेती है तो प्रदूषण फेफड़ों के माध्यम से खून में चला जाता है। प्लेसेंटा (यानी गर्भ और भ्रूण को जोड़ने वाला) को रक्त के माध्यम से ही भ्रूण के लिए पोषण मिलता है। प्रदूषण या पौष्टिक आहार की कमी सहित विभिन्न कारणों से बच्चे का डीएनए बदल जाता है। प्रो. रिचर्ड के अनुसार वे प्लेसेंटा के रक्त का सैंपल लेकर एंबाइल कोड के माध्यम से डीएनए की स्टडी की जाती है। उन्होंने मेलबर्न में अलग-अलग सत्र की 1000 महिलाओं पर भ्रूण बनने से लेकर बच्चा पैदा होने तक स्टडी की थी।

पिता में तनाव या स्मोकिंग करना भी बदल देता है बच्चे का डीएनए
प्रो. रिचर्ड के अनुसार नवजात में किसी भी तरह के डिसऑर्डर की जिम्मेदार मां के शरीर में जाने वाले पर्यावरण सहित विभिन्न कारक ही नहीं होते हैं। अगर पिता तनाव में रहता है या स्मोकिंग करता है तो भी बच्चे में जेनेटिक डिसऑर्डर हो सकता है। उनकी संस्था ऑप्टीमिजम प्रेग्नेंसी एनवायरमेंट रिस्क असेस्मेंट नेटवर्क भारत में इस पर शोध करने के लिए विभिन्न संस्थाओं से बात कर रही है। इसके लिए उन्होंने मंगलवार को जिले के 2 बड़े शिशु अस्पतालों का दौरा भी किया।


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