शौर्य गाथा: आतंकियों को ढेर करने के बाद ली थी अंतिम सांस
26 जून 2003 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों व सैन्य टुकड़ी के साथ मुठभेड़ चल रही थी। इसी टुकड़ी में राइफल मैन देवेंद्र सिंह भी शामिल थे।
मोनू यादव, फरुखनगर (गुरुग्राम)
26 जून 2003 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों व सैन्य टुकड़ी के साथ मुठभेड़ चल रही थी। इसी टुकड़ी में राइफल मैन देवेंद्र सिंह भी शामिल थे। सेना के जवानों ने सात में से तीन आतंकियों को जंगल में ही मार गिराया था। अंधेरे का फायदा उठा चार आतंकी भाग निकले और एक गांव के घर में घुस घरवालों को बंधक बना लिया था। बंधकों को छुड़ाने के लिए देवेंद्र सिंह साथी जवानों के साथ आगे बढ़े और घर के अंदर कूद एक आंतकी को दबोच मौत की नींद सुला दिया। तभी एक आतंकी ने कमरे के अंदर से देवेंद्र के ऊपर हथगोला फेंका, जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए। इसके बाद भी मां भारती के लाल ने कमरे के अंदर घुसकर तीनों आतंकी मार गिराए थे। होश तब खोया जब चार आतंकियों के शव देख लिए। साथी बुरी तरह घायल देवेंद्र को अस्पताल ले गए पर भारत मां के जयकारे लगाते हुए हरियाणा के गबरू जवान ने अंतिम सांस ली। अदम्य साहस के वीर बलिदानी को मरणोपरांत शौर्य चक्र दिया गया जो राष्ट्रपति के हाथ से बलिदानी की वीरांगना ऊषा ने लिया था।
गुरुग्राम जिले के गांव शेखुपुर माजरी निवासी देवेंद्र सिंह बचपन मे खिलौना पिस्तौल से खेला करते थे। बड़े होने के बाद पिता से सेना में जाने की इच्छा जताई। पिता रामकिशन व माता साहब कौर ने उन्हें अपनी सहमति दे दी। देवेंद्र 27 जून 1997 में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए। उन्हें ट्रेनिग के बाद 15 राज राइफल में नियुक्ति मिली थी। पहली पोस्टिग जम्मू-कश्मीर में हुई। उस समय अनंतनाग जिला में आंतकी लगातार हमले कर रहे थे देवेंद्र की टुकड़ी एक-एक कर उनका सफाया कर रही थी। हमारे पति बाद में पहले भारत मां के लाडले थे। उन्होंने प्राणों का बलिदान देकर मां भारती के दूध का कर्ज उतारा है। मुझे गर्व है कि उन्हें अदम्य साहस के लिए शौर्य चक्र मिला, जिसे लेते वक्त मैं गर्व महसूस कर रही थी। वह चाहते थे कि उनके बच्चे भी देश सेवा के लिए कार्य करें पर उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। हमारी संतान होती तो उसे भी सेना में भेजती।
- ऊषा देवी, वीरांगाना छोटे बेटे को सेना में भेजूंगा
अमर बलिदानी देवेंद्र सिंह के पिता रामकिशन ने बताया कि पूरे गांव को देवेंद्र पर गर्व महसूस होता है। गांव में 26 जनवरी व 15 अगस्त पर बलिदानी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करके प्रसाद बांटा जाता है। रामकिशन बताते हैं कि अब छोटे बेटे को सेना में भर्ती के लिए प्रेरित कर रहे हैं, और एक दिन उसको सेना में भर्ती हुआ देखना यही मेरी इच्छा है। बहू ऊषा को उपायुक्त कार्यालय में नौकरी मिल गई है।