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भोजपुरी की रूह तक नहीं पहुंचने वाले ही फैलाते हैं अश्लीलता

भजन, लोकगीत और निर्गुण गायकी के सिरमौर भरत शर्मा व्यास की देश-विदेश में जहां भी भोजपुरी बोली, सुनी और समझी जाती हैं वहां लोकप्रियता है। करीब चार दशकों से भोजपुरी की मिठास को अपनी गायकी में घोलकर लाखों श्रोताओं तक परोसने वाले भरत शर्मा ने अपनी गायकी से कभी समझौता नहीं किया। 'गोरिया चांद के अंजोरिया नियन गोर बाडू हो' व 'जबसे गवनवा के दिनवा धरायिल' सरीखे साढ़े चार हजार से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दे चुके भरत शर्मा रविवार को साइबर सिटी में अपनी प्रस्तुति देने आए थे। कार्यक्रम के बाद दैनिक जागरण संवाददाता हंस राज से भरत शर्मा व्यास की बातचीत के खास अंश:

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 07:10 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 07:10 PM (IST)
भोजपुरी की रूह तक नहीं पहुंचने वाले ही फैलाते हैं अश्लीलता
भोजपुरी की रूह तक नहीं पहुंचने वाले ही फैलाते हैं अश्लीलता

भजन, लोकगीत और निर्गुण गायकी के सिरमौर भरत शर्मा व्यास की देश-विदेश में जहां भी भोजपुरी बोली, सुनी और समझी जाती हैं, वहां लोकप्रियता है। करीब चार दशकों से भोजपुरी की मिठास को अपनी गायकी में घोलकर लाखों श्रोताओं तक परोसने वाले भरत शर्मा ने अपनी गायकी से कभी समझौता नहीं किया। 'गोरिया चांद के अंजोरिया नियन गोर बाडू हो' व 'जबसे गवनवा के दिनवा धरायिल' सरीखे साढ़े चार हजार से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दे चुके मूल रूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले भरत शर्मा रविवार को साइबर सिटी में अपनी प्रस्तुति देने आए थे। कार्यक्रम के बाद दैनिक जागरण संवाददाता हंस राज से भरत शर्मा व्यास की बातचीत के खास अंश:

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गायकी में आपकी रुचि कब से है, शुरुआती दौर के बारे में बताइए?

साल 1971 में 10 जुलाई को मेरे गांव में एक कार्यक्रम था, जिसमें बहुत से कलाकार बाहर से आए थे। वैसे तो मैं वहां कार्यक्रम देखने गया था, लेकिन गाने का भी मौका मिल गया। जब मेरा गाना खत्म हुआ तो मुझे बहुत वाहवाही मिली, मनोबल बढ़ा। गायकी में तो रुचि बचपन से ही थी। इस मौके ने और हौसला बढ़ा दिया। उन दिनों गायकों के बीच कोलकाता का क्रेज था इसलिए मां से 16 रुपये लेकर बक्सर से हावड़ा पहुंच गया। वहां कुछ लोग जैसे बच्चन मिसिर, गायत्री ठाकुर, राज किशोर तिवारी जैसे लोगों का बहुत साथ मिला और सालों तक रामायण गाया। जब ऑडियो का जमाना आया तब मैंने अपने गाने रिकॉर्ड भी करवाए। साल 1989 में सबसे पहला एल्बम 'दाग कहां से पड़ी' आयी, जिसके बाद से लोगों का भरपूर प्यार मिलता रहा है।

-- पिछले कुछ वर्षों से भोजपुरी में गीतों के नाम पर परोसी जा रही फूहड़ता को कैसे देखते हैं?

संगीत एक ऐसी कला है जो मनुष्य को उत्तम जीवन जीने की सीख देती है, लेकिन भोजपुरी गीत-संगीत के क्षेत्र में हो रही नैतिक गिरावट दुखद है। आज तेजी से पांव पसारती अश्लीलता व फूहड़ता का श्रोताओं समेत गायकों व गीतकारों को भी बहिष्कार करने की जरूरत है। सस्ती लोकप्रियता व कम समय में अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ गायक भोजपुरी को अश्लीलता व फूहड़ता की भाषा बनाने पर आमादा हैं। गायकों को समझना चाहिए कि अश्लीलता और भद्दे गीत लोकप्रियता ला सकते हैं, लेकिन समाज में वह टिकाऊ और सकारात्मक नहीं हो सकता है।

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भोजपुरी लोकगीतों में बढ़ते फूहड़पन को रोकने के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है?

इसमें दो राय नहीं है कि भोजपुरी में अश्लील गाने परोसे जा रहे हैं और ऐसे गायकों की फेहरिस्त लंबी है। भोजपुरी में फूहड़ता लाने वाले वहीं लोग हैं जो भोजपुरी भाषा की रूह तक नहीं पहुंचे हैं। मैं सभी पाठकों से यही कहूंगा कि 'मत सुनी अइसन गीत। आप लोग ना सुनब अइसन गीत आ सुन के ताली ना बजाइब त इ फूहड़ता अपने आप खतम हो जाई। मत खरीदी अइसन मेमोरी कार्ड आ चिप। मत करी डाउनलोड अइसन गीत जवने के बाप बेटी के साथे आ भाई बहन के साथे ना सुन सकत ह।'

-- क्या इसमें भोजपुरी फिल्मों का भी हाथ है?

शत-प्रतिशत ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि जो लोग वर्षों से अच्छी फिल्में बना रहे हैं या बनाने का प्रयास कर रहे हैं उनके साथ न्याय नहीं होगा। आज कई भोजपुरी फिल्म ऐसी हैं, जिन्हें आप अपने परिजनों के साथ नहीं देख सकते। इसका सबसे बड़ा कारण है कि अब भोजपुरी में मौलिक विषयों पर फिल्में नहीं बनतीं। दशकों पहले बनी 'बैरी कंगना' और 'नदिया के पार' जैसी फिल्में अब कहां हैं। चाहे गायक हो, संगीतकार या फिल्म निर्माता उन्हें इस बात का एहसास होना जरूरी है कि भोजपुरी करोड़ों लोगों की भाषा है और निजी स्वार्थ के लिए इसे बदनाम करना अन्याय है। देश से लेकर विदेश में आपके लाखों चाहने वाले हैं, क्या संदेश देंगे ?

मैं जब दिल्ली-मुंबई और कोलकाता जैसे मेट्रो सिटी में जाता हूं तो देखते हूं लोग खुद को भोजपुरिया कहने से बचते हैं, यह दुखद है। ऐसे लोगों के लिए मेरा यही संदेश है कि 'दिल्ली-बांबे-कलकता चाहे रहीह मसूरी में, पढि़ह-लिखिह कवनो भासा, बतिअइह भोजपुरी में।' जब लोग अपनी बोली-भाषा में बोलेंगे तभी वह समृद्ध होगा। एक ओर जहां भोजपुरी को विदेश में अपनी पहचान बनाते देख गर्व होता है वहीं अपनों के बीच तिरस्कृत होता देख दु:ख होता है।


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