देश के कोने-कोने की संस्कृति रच बस गई साइबर सिटी के परिवेश में
देशां में देश हरियाणा जित दूध दही का खाना। यह कहावत पूरे प्रदेश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का आईना है। साइबर सिटी भी प्रदेश की इस धरोहर का एक अंश है।
महावीर यादव, गुरुग्राम
'देशां में देश हरियाणा, जित दूध दही का खाना।' यह कहावत पूरे प्रदेश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का आईना है। साइबर सिटी भी प्रदेश की इस धरोहर का एक अंश है। बेशक शहर ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के कारपोरेट कार्यालय तथा आइटी का हब होने के कारण अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली। शहर की संस्कृति में देश-विदेश के रंग घुल गए हैं, मगर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्राचीन संस्कृति बरकरार है।
कुछ समय पहले तक गुरुग्राम ठेठ कृषि प्रधान जिले के रूप में पहचाना जाता था। जैसे-जैसे विकास का पहिया घूमता गया, गुरु द्रोण की धरती विभिन्न प्रांतों और देशों की संस्कृति और सभ्यताओं से समाहित करती चली गई। आज चाहे पूर्वांचल क्षेत्र का आस्था का पर्व छठ हो या, महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला गणेश उत्सव हो या फिर पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा हो। सभी त्योहार यहां पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। पूर्वांचल का छठ मइया का पर्व यहां की संस्कृति में पूरी तरह से रच-बस गया है। पिछले वर्ष नवंबर माह में छठ पर्व पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल पूर्वांचल के लोगों के बीच पहुंचे। छठ पर्व अब स्थानीय महिलाएं भी काफी संख्या में मनाने लगी हैं। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि देश के प्रत्येक कोने की सभ्यता परंपरा और संस्कृति का समावेश गुरुग्राम में पूरी तरह से हो चुका है।
ओपन थिएटर में हर शुक्रवार होता था सांस्कृतिक कार्यक्रम
शासन व प्रशासन के स्तर पर भी दूसरे प्रदेशों की संस्कृति के समावेश को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। नगर निगम ने लोगों के मनोरंजन के लिए सेक्टर-29 स्थित ओपन थिएटर में प्रत्येक शुक्रवार को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया था। कोरोना संक्रमण के कारण नगर निगम की इस बेहतरीन पहल को रोकना पड़ा। नगर निगम अधिकारियों ने अपने प्रदेश की संस्कृति और कार्यक्रमों से तो युवा पीढ़ी को रूबरू कराने की शुरुआत की थी। इन कार्यक्रमों में आसपास के प्रांतों के पारंपरिक गीतों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समावेश भी किया गया था। शहर देश के भिन्न-भिन्न कोनों की संस्कृति और सभ्यताओं से परिपूर्ण हो गया। इस बीच अपने पारंपरिक हरियाणवी संस्कृति को बचाए रखने के लिए राष्ट्रीय महिला जाट मंच काम कर रहा है। मंच की महिलाओं की चिता है कि कहीं इस चकाचौंध में युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को पीछे ना छोड़ दे। मंच की अध्यक्ष पुष्पा धनखड़ बताती हैं कि हमारे शहर में जिस तरह से सभी परंपरा और संस्कृति पनपी है। उससे हम भारतीय संस्कृति के परिवेश में बहुत मजबूत हुए हैं। इसके साथ ही हमें अपनी प्राचीन हरियाणवी संस्कृति को भी कायम रखना है। एक महिला जाट मंच के माध्यम से परंपरागत त्यौहार सांझी तीज के कार्यक्रम किए जाते हैं। सांझी तथा कार्तिक महीने में महिलाओं द्वारा माता नहलाना और हरियाली तीज के त्यौहार हरियाणवी संस्कृति का प्रमुख हिस्सा रहे हैं। इन त्योहारों से युवा पीढ़ी दूर होती जा रही है। महिलाओं और युवा पीढ़ को प्राचीन संस्कृति से जोड़े रखना लोकगीत और हरियाणवी पहनावा परंपरा में रखना ही मुख्य उद्देश्य है।
भूमिजा मैथिली मंच के अध्यक्ष महावीर मिश्रा बताते हैं किसी भी समाज के विकास में उसके संस्कृति का बहुत बड़ा महत्व होता है। संस्कृति समाज की परंपराओं तथा रीति-रिवाजों का प्रतिनिधित्व करती है। देश में 'कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी' की कहावत के अनुसार ही अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराएं हैं। जैसे-जैसे समाज विकास की तरफ बढ़ रहा है। अपनी जीविका के लिए लोगों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाना पड़ रहा है। अपनी संस्कृति को कायम रखने के लिए पूर्वांचल के मैथिली क्षेत्र के लोगों ने भूमिजा मैथिली मंच की स्थापना की है। महावीर मिश्रा का कहना है कि समाज के लोगों को प्राचीन संस्कृति से जोड़े रखना ही उनकी प्राथमिकता है। सभ्यता और संस्कृति को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए ही वे काम कर रहे हैं।