बापू की एक आवाज पर रुक गया मेवात से पाकिस्तान पलायन
आज राष्ट्र पिता महत्मा गांधी की 150वीं जयंती है पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।
सत्येंद्र सिंह, घासेड़ा (नूंह)
आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। गुरुग्राम से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित अब नूंह जिले का हिस्सा बन चुके घासेड़ा गांव के लोगों की भी बापू से यादें जुड़ी हुई हैं। आजादी के बाद यहां से पाकिस्तान पलायन कर रहे मुस्लिम समुदाय के लोगों को रोकने के लिए गांधी खुद उनके बीच पहुंचे थे। गांधी के साथ संयुक्त पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव भी थे। पलायन कर रहे लोग राजस्थान की सीमा पर पहुंच चुके थे। काफी संख्या में लोग पाकिस्तान जा भी चुके थे। तब महात्मा गांधी ने लोगों को पलायन से रोकने के लिए घासेड़ा गांव के गुज्जर बाड़े में पंचायत की थी, जिसमें बीस हजार से अधिक लोग जुटे थे।
दरअसल आजादी के वक्त बंटवारा होने पर मेवात क्षेत्र के करीब 30 हजार मुस्लिम पलायन कर पाकिस्तान जा रहे थे। इस बात की जानकारी बापू को हुई तो वे 19 दिसंबर 1947 को सबसे पहले घासेड़ा गांव के मंदिर पर पहुंचे। यहां कुएं के चबूतरे पर इलाके के प्रमुख लोगों के साथ बैठक की थी। गांधी ने इसके बाद कुछ मीटर की दूरी पर स्थित गुज्जर बाड़ा में पंचायत की थी। उस समय यह जमीन संदगी पटवारी के नाम थी। यहां पर अब स्कूल बन चुका है। पंचायत में आसपास के इलाके के लोग जमा थे। महात्मा गांधी के मनाने पर मुसलमानों ने यहां से जाने का इरादा त्याग दिया था। हमारा गांव प्रदेश के ऐतिहासिक गांवों में शुमार है। इसलिए सरकार को चाहिए कि यहां पर महात्मा गांधी से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए कोई काम करे। हमारे दूसरे दादा (दादा के भाई) की पीढ़ी आज भी पाकिस्तान में रह रही है। लेकिन गांधी जी के कहने पर हमारे दादा घासेड़ा में रुक गए थे। आज गांधी जी हमारे बीच में भले ही नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी हमारे जहन में बसी हैं।
-असलम, निवासी घासेड़ा महात्मा गांधी ने हमारे बुजुर्गों से कहा था कि मेव समाज देश की रीढ़ है, आजादी में आप सबका भी योगदान है। गांधी भी आपके साथ जीना मरना चाहता है। अगर आप लोगों को पाकिस्तान जाना है, तो मेरे शरीर के ऊपर से गुजरना होगा। जिस पर पूरे क्षेत्र के लोगों ने पाकिस्तान जाने का इरादा बदल लिया। बापू ने उनको पूरे विकास व सुरक्षा का भरोसा दिया। लेकिन बापू के दिए वचन के वर्षों बाद भी गांव घासेड़ा कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है।
-दीन मोहम्मद, निवासी घासेड़ा
घासेड़ा को आज भी गांधी ग्राम बनने का इंतजार
दिल्ली-सोहना अलवर हाईवे पर स्थित घासेड़ा गांव के लोगों को आज भी गांव का नाम गांधी ग्राम बनने का इंतजार है। सरकारें बदलती रहीं, नाम आवेदन मिलते रहे लेकिन गांव को गांधी की पहचान नहीं मिली। 1950 से लेकर 2018 तक 150 पत्र सरकार को भेजे गए। लेकिन कांग्रेस, भाजपा, इनेलो सहित अन्य सरकारों ने गांव का नाम नहीं बदला। हालांकि गांव के लोग खुद को गांधी से जुड़ा मानते हैं। इसके कारण सामान्य बोलचाल में गांधी ग्राम शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। हालांकि सरकार से लेकर प्रशासन, कोई भी उनकी सुध लेने वाला नहीं है। रास्तों से लेकर उसके किनारे गंदगी के ढेर लगे पड़े हैं। गांव का ऐतिहासिक दरवाजा रखरखाव के अभाव में टूटकर गिर चुका है। 2007 में गांव को आदर्श गांव घोषित किया गया था, जिसके तहत करोड़ों रुपये का फंड गांव को मिला। इससे गांव की सड़कों की हालत तो सुधर गई लेकिन समस्याएं अभी भी हैं।
आजादी की लड़ाई में दी शहादत
1857 की क्रांति से लेकर आजादी मिलने तक मेवात इलाके के सैकड़ों लोगों ने देश के लिए कुर्बानी दी। घासेड़ा गांव के लोगों की दी गई कुर्बानी को लेकर गौरव पट्ट बनवाया गया है, जिसपर गांव का पूरा इतिहास दर्ज है। गौरव पट्ट के मुताबिक यहां के आठ लोग 1857 की क्रांति में शहीद हुए थे।