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रैपिड मेट्रो के लिए नियमों को किया गया दरकिनार

अधिकार मंच के सदस्य व आरटीआइ कार्यकर्ता हरींद्र धींगड़ा का आरोप है कि रैपिड मेट्रो को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपना खजाना लुटाने की तैयारी कर रही है। इस मामले में शुरू से ही नियमों को दरकिनार किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 09:30 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 06:38 AM (IST)
रैपिड मेट्रो के लिए नियमों को किया गया दरकिनार
रैपिड मेट्रो के लिए नियमों को किया गया दरकिनार

जागरण संवाददाता, गुरुग्राम

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अधिकार मंच के सदस्य व आरटीआइ कार्यकर्ता हरींद्र धींगड़ा का आरोप है कि रैपिड मेट्रो को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपना खजाना लुटाने की तैयारी कर रही है। इस मामले में शुरू से ही नियमों को दरकिनार किया गया। रैपिड मेट्रो के लिए प्रदेश सरकार ने राइट्स के माध्यम से सिकंदरपुर से दिल्ली-जयपुर हाईवे की कनेक्टिविटी के लिए फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करवाई थी। राइट्स ने 3.2 किलोमीटर के मेट्रो लिक की अनुशंसा की थी, जिसकी लागत 403 करोड़ रुपये अनुमानित थी। राइट्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि निवेश करने वाली कंपनी को यह लागत राशि 30 वर्षों में 15.1 प्रतिशत मुनाफे के साथ प्राप्त हो जाएगी। सीएजी ने भी वर्ष 2016 के रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया था। इस मामले की सीबीआइ से जांच कराई जाए ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके।

शनिवार को सिविल लाइंस स्थित शमां टूरिस्ट काम्पलेक्स में पत्रकारों से बातचीत करते हुए हरींद्र धींगड़ा ने कहा कि वर्ष 2008 के दौरान तत्कालीन प्रदेश सरकार ने डीएलएफ को लाभ पहुंचाने के लिए राइट्स के सर्वे या अनुशंसा के बिना रैपिड मेट्रो का रूट 3.2 किलोमीटर से बढ़ाकर 5.1 किलोमीटर कर दिया था। मात्र 1.9 किलोमीटर रूट में बढ़ोतरी करने की वजह से लागत राशि 403 करोड़ से बढ़कर 900 रुपये तक पहुंच गई। जब यह 5.1 किलोमीटर का रूट पूरा हुआ, तब इसकी लागत 1200 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने टेंडर के नियमों को तोड़ दिया था। लाभ पहुंचाने के लिए शर्तों को एग्रीमेंट में जोड़ा गया।

एग्रीमेंट के मुताबिक रैपिड मेट्रो के ऑपरेशन पीरियड के दौरान हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण को खामी दिखती है और प्रोजेक्ट रद होता है तो प्रोजेक्ट का अधिग्रहण कर लिया जाएगा। आगे कंपनी को वित्तीय दस्तावेज के आधार पर निवेश की कुल लागत का 80 प्रतिशत दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि रैपिड मेट्रो सफल हुआ तो लाभ इसके निवेशकों का और नुकसान हुआ तो इसकी भरपाई हरियाणा सरकार करेगी।

उन्होंने बताया कि आयकर विभाग की जांच में एक बार पाया गया था कि रैपिड मेट्रो संचालन करने वाली कंपनी आईएल एंड एफएस रेल ने कोलकाता की कंपनी सिल्वर प्वाइंट इंफ्राटेक से 20.18 करोड़ से अधिक का फर्जी बिल लिया है। प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि फर्जी वर्क ऑर्डर के जरिये कंपनी ने 300 करोड़ से अधिक की हेराफेरी की है। वर्क ऑर्डर को रैपिड मेट्रो के निर्माण के रूप में दिखाया गया है। आज प्रोजेक्ट को घाटे में दिखाकर हरियाणा सरकार से 2800 करोड़ रुपये की राशि रैपिड मेट्रो की एवज में मांगी जा रही है।

प्रेस कांफ्रेंस में हरींद्र धींगड़ा के साथ आरटीआइ कार्यकर्ता ओमप्रकाश कटारिया, रमेश यादव, रविद्र यादव एवं राम सैनी भी उपस्थित थे। बता दें कि कंपनी ने रैपिड मेट्रो का अधिग्रहण करने के लिए प्रदेश सरकार को नोटिस दे रखा है। कंपनी का कहना है कि रैपिड मेट्रो घाटे में चल रही है। वह अब आगे इसका संचालन करने में असमर्थ है। इधर, प्रेस कांफ्रेंस में लगाए गए आरोपों पर कंपनी के प्रवक्ता शरद गोयल ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।


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