यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का..
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का, यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का, कहीं न सब को समुंदर बहा के ले जाए, ये खेल खत्म करो कश्तियां बदलने का।' तरक्की पसंद शायरी के प्रमुख शायर शहरयार के इस शेर को जब शायर अजहर इकबाल ने तरन्नुम में गाया तो महफिल में बहुत देर तक तालियां बजती रही। मौका था डीएलएफ क्लब-5 में शहरयार की गजलों व नज्मों पर मशहूर लेखिका डॉ. रक्षंदा जलील द्वारा लिखी किताब पर विस्तृत चर्चा का।
हंस राज, नया गुरुग्राम
'सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का, यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का, कहीं न सब को समुंदर बहा के ले जाए, ये खेल खत्म करो कश्तियां बदलने का।' तरक्की पसंद शायरी के प्रमुख शायर शहरयार के इस शेर को जब शायर अजहर इकबाल ने तरन्नुम में गाया तो महफिल में बहुत देर तक तालियां बजती रही। मौका था डीएलएफ क्लब-5 में शहरयार की गजलों व नज्मों पर मशहूर लेखिका डॉ. रक्षंदा जलील द्वारा लिखी किताब 'शहरयार-ए लाइफ इन पोएट्री' पर विस्तृत चर्चा का।
कार्यक्रम में बातचीत के दौरान शहरयार और उनके शायरी का नजरिया को लेकर डॉ. सैफ महमूद द्वारा पूछे एक सवाल के जवाब में लेखिका ने कहा कि शहरयार तरक्की पसंद शायर तो थे, लेकिन कही भी इसका ढोल पीटते नजर नहीं आते। वो बेशक नयी दुनिया के बनने की बात से इत्तेफाक रखते हैं पर दुनिया के बेढंगे होने पर, उसमें होने वालों जुल्मों पर टूटकर लिखते हैं। यही कारण है कि उनके चाहने वाले उन्हें एक संवेदनशील शायर मानते हैं।
शहरयार के फिल्मी सफर को लेकर भी उन्होंने कहा कि फिल्म उमराव जान और गमन की शोहरत के बाद वे मुंबई का रुख कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें फिल्मी दुनिया के रंग-ढंग पसंद नहीं आये। वे मानते थे कि अगर वहां काम करना है, तो जमीर ताक पर रखना होगा। ऐसा शायद हो भी क्योंकि 80 के दशक तक शायरी के बड़े नाम जो फिल्मों का हिस्सा बन रहे थे उन्हें उस दुनिया से एक तरह से रवाना कर दिया गया था। ऐसे माहौल में शहरयार का गुजारा नहीं हो पाता। दूसरी तरफ उन्हें अलीगढ़ की दुनिया बहुत रास आती थी। वहीं शायर पल्लव मिश्रा ने भी कहा कि शहरयार ऐसे शायर हैं जो दिल का बयान करने से नहीं चूकते और मुश्किल सवालों के हल भी तलाशते हैं। उन्होंने शहरयार के लिखे कुछ नज्म और गजल भी पढ़े जिनपर लोगों की खूब सराहना मिली।