Haryana: मुर्रा भैंस की जगह गाय पालने की ओर बढ़ा पशु पालकों का रुझान, ये है बड़ी वजह
गाय के दूध की मांग बढ़ने के कारण भी किसानों का रुझान गाय पालने की तरफ बढ़ा है। 2012 की गणना के मुताबिक गायों की संख्या 42088 थी जो अब बढ़कर 61112 हो गई है।
बादशाहपुर (गुरुग्राम) [महावीर यादव]। देशां में देश हरियाणा, जित दूध दही का खाना इस पुरानी कहावत को चरितार्थ करते हुए गुरुग्राम के लोग भैंस पालने में सबसे आगे रहते थे। इसमें भी मुर्रा नस्ल की भैंस पालने वाले सबसे ज्यादा थे। बढ़ते विकास के कारण अब भैंस पालकों में बेहद कमी आई है। पशुओं की 20वीं गणना के मुताबिक जिला में भैंसों की संख्या में 21 फीसद की कमी आई है, जबकि गायों की संख्या 23 फीसद बढ़ी है।
पशुओं की गणना हर 5 साल में की जाती है। 19वीं गणना 2012 में की गई थी। 20वीं इस बार गणना ऐप के माध्यम से की गई है। इससे पहले गणना मैनुअली होती थी।
कई गांव के किसान मुर्रा नस्ल की भैंस पालने के लिए मशहूर
ऐप के माध्यम से हाईटेक गणना करने के लिए इस बार की गणना काफी देरी से हो पाई। जिले में भैंस पालने वालों की संख्या हमेशा से काफी अच्छी रही है। ग्रामीण क्षेत्र में मुख्य कारोबार भैंस पालना ही रहा है। दूध बेचकर अपनी आजीविका चलाना मुख्य कारोबार रहा। कई गांव के किसान मुर्रा नस्ल की भैंस पालने के लिए मशहूर रहे हैं। मुर्रा नस्ल की भैंस अधिक दूध देतो हैं। जैसे-जैसे गांव का शहरीकरण होता जा रहा है। अब भैंस पालने वालों में भी कमी आती जा रही है। 2012 की गणना में भैंस को की संख्या 1 लाख 41 हजार 473 थी। अभी इन भैंसों की संख्या घटकर एक लाख 12 हजार 504 रह गई।
गाय के दूध की बढ़ रही मांग
जबकि गाय के दूध की मांग बढ़ने के कारण भी किसानों का रुझान गाय पालने की तरफ बढ़ा है। 2012 की गणना के मुताबिक गायों की संख्या 42088 थी जो अब बढ़कर 61112 हो गई है। गाय की संख्या में 23 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। इसमें बैलों की संख्या ना के बराबर रह गई। पहले जिला में अधिकतर किसान खेती में हल चलाने के लिए बैल रखते थे। अब खेती भी अत्याधुिनक तरीके होने के कारण बैल के प्रति लोगों का रुझान खत्म हो गया।
भेड़ बकरी पालन के प्रति भी कम हुआ रुझान
पहले जिला के काफी किसानों का बकरी पालन भी व्यवसाय के रूप में माना जाता था। अरावली की तलहटी में बसने वाले अधिकतर गांव में बकरी पालने का बड़ा कारोबार था। गांव में एक एक किसान के पास काफी संख्या में बकरियां होती थी। इन बकरियों को चरने के लिए अरावली की पहाड़ियों में छोड़ दिया जाता था। अब लोगों ने बकरी पालन को भी छोड़ दिया है। 2012 की गणना में 11416 बकरी लोगों के पास थी। इस बार हुई गणना में बकरी की संख्या घटकर 8590 रह गई। इसी तरह भेड़ों की संख्या में भी कमी आई। 2012 की गणना में जहां 2549 भेड़ थी। अब 2280 भेड़ रह गई है। ऊंटों की संख्या भी 7 साल में 88 से घटकर केवल 25 रह गई है।
गुरुग्राम में गधों की संख्या में आई भारी गिरावट
जिले में जहां दूसरे पशुओं की संख्या में कमी आ रही है। वहीं गधों की संख्या में भी काफी गिरावट देखी गई है। पहले प्रजापति बिरादरी काफी संख्या में गधे रखती थी। इसके अलावा ईट भट्टों पर भी ईट की ढुलाई के लिए गधों का प्रयोग किया जाता था। अब ईट भट्टा की संख्या काफी कम हो गई। इसलिए ईट भट्टों पर भी गधों का काम नहीं रहा। 2012 की गणना में जिला में 353 गधे थे। जबकि इस बार की गणना में गधों की संख्या मात्र 88 दर्ज की गई है।
पशुपालन विभाग की उपनिदेशक डॉ. पुनीता पूनिया ने बताया कि सरकार की गोवंश बढ़ाने की योजना के कारण भी लोगों का गाय पालने के प्रति रुझान बढ़ा है। गाय के दूध की मांग भी बढ़ गई है। इसलिए भी लोग गाय पालने में रुचि लेने लगे हैं। गाय रखने के लिए कम स्थान में काम चल जाता है। भैंस के रखने के लिए काफी जगह की जरूरत होती है।
वहीं, गौ सेवा आयोग की सदस्य पूरन यादव ने कहा कि लोगों का गाय पालने के प्रति रुझान बढ़ रहा है। यह समाज के लिए अच्छा संकेत है।
गाय को माता का दर्जा दिया जाता है। यह न केवल दूध देती है। बल्कि घर में गाय पालने से कई फायदे होते हैं। देसी गाय के शरीर पर हाथ फेरने से ही बीपी जैसे रोग दूर हो जाते हैं। गोमूत्र भी अनेक दवाइयों में काम आता है।
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