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शौर्य गाथाः टाइगर के नाम से डरते थे आतंकी, मेजर विकास ने चकनाचूर कर दिया था दुश्मन के मंसूबे

जम्मू-कश्मीर को निशाने पर रख पाकिस्तानी सेना आतंकियों को प्रशिक्षण देकर घुसपैठ कराने में सालों से लगी है। कारगिल युद्ध में मुंह की खाने के बाद भी पाक हुक्मरानों के इशारे पर आतंकी देश में घुसपैठ करने में लगे थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 01 Aug 2021 03:30 PM (IST)Updated: Sun, 01 Aug 2021 03:30 PM (IST)
शौर्य गाथाः टाइगर के नाम से डरते थे आतंकी, मेजर विकास ने चकनाचूर कर दिया था दुश्मन के मंसूबे
मेजर विकास यादव ने आतंकियों के मंसूबों को चकनाचूर ही नहीं किया उन्हें मौत के घाट भी उतारा था।

 बादशाहपुर (गुरुग्राम) [महावीर यादव]। जम्मू-कश्मीर को निशाने पर रख पाकिस्तानी सेना आतंकियों को प्रशिक्षण देकर घुसपैठ कराने में सालों से लगी है। कारगिल युद्ध में मुंह की खाने के बाद भी पाक हुक्मरानों के इशारे पर आतंकी देश में घुसपैठ करने में लगे थे। मेजर विकास यादव ने आतंकियों के मंसूबों को चकनाचूर ही नहीं किया उन्हें मौत के घाट भी उतारा था। आतंकियों के खिलाफ चलाए आपरेशन में नौ जून 1996 उन्होंने प्राण न्योछावर कर दिए थे।

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आतंकी मां भारती के लाल से इतना डरते थे कि मेजर विकास को भारतीय सेना का ‘‘टाइगर’’ मान लिया था। सशस्त्र बलों द्वारा इंटरसेप्ट किए गए कई संदेशों में यह बात सामने आई थी। प्राणों का बलिदान देने से पहले जांबाज विकास की अगुवाई में सेना की टुकड़ी ने कश्मीर की चरार-ए-शरीफ मस्जिद में छिपे आतंकियों को अपने अदम्य साहस और पराक्रम से मौत के घाट उतार दिया था। जिसके बाद वे आतंकी संगठनों के निशाने पर आ गए थे।

उनके बलिदान को नमन करने के लिए सरकार ने मेजर के पैतृक गांव रेवाड़ी के कोसली के स्कूल का नाम मेजर विकास यादव के नाम पर रखा, वहीं गुरुग्राम में हाइवे से सेक्टर-15 होते हुए हरियाणा टूरिज्म के शमा रेस्टोरेंट तक के मार्ग को शहीद मेजर विकास यादव का नाम दिया है।

मेजर विकास यादव का जन्म 29 मार्च 1961 को महासिंह यादव और शकुंतला यादव के घर हुआ। पिता महासिंह यादव सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। वे अपने पैतृक गांव कोसली से गुरुग्राम के जैकबपुरा में आकर रहने लगे। विकास यादव ने यहीं से स्कूल की पढ़ाई की और राजकीय महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। 1981 में सेना में भर्ती हो गए एसएस34 कोर्स में चेन्नई की आफिसर ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) में प्रशिक्षण लिया।

26 अगस्त 1982 को सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त हुए। जाट रेजीमेंट में कमीशन मिलने के बाद उनके साहस और पराक्रम को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया। वह अपनी पैनी नजर से आतंकी गतिविधियों पर नजर रखते थे। कश्मीर में अनेक आतंकवादियों को उन्होंने मौत के घाट उतारा। 9 जून 1996 को उनकी यूनिट को इलाके में आतंकवादियों के होने की सूचना मिली। उन आतंकियों को खोजने के लिए आपरेशन शुरू किया गया। आपरेशन रक्षक के दौरान उनकी बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना पदक से सम्मानित किया गया।

परिवार में माता-पिता, पत्नी लता, बेटी अपूर्वा और बेटा अमय हैं। पति के बलिदान के बाद लता ने दोनों बच्चों की बेहतर परवरिश की। बेटा अमन अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है, जबकि बेटी अपूर्वा यादव एमबीए कर निजी कंपनी में कार्यरत है। बलिदानी मेजर विकास यादव के दादा राव सुल्तान सिंह पीसीएस अधिकारी रहे। संयुक्त पंजाब में निदेशक लैंड होल्डिंग के पद से सेवानिवृत्त हुए।


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