जानिये- दिल्ली से सटे हरियाणा में 30 साल बाद कहां बह रहा धरना, पांडवकाल से है इसका कनेक्शन
चहुंओर लहलहाती हरियाली और जगह-जगह से निकलते जल स्नोत एनसीआर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। इस बार ऐसी ही एक सुखद घटना अरावली की वादियों में हुई। आज से तीन दशक पहले तक निकलने वाले झरने में एक बार फिर से जल प्रपात होने लगा।
नई दिल्ली/गुरुग्राम/फरीदाबाद [प्रियंका दुबे मेहता]। लगातार हुई बारिश में प्रकृति का जो रूप निखरा है वह अद्भुत है। चहुंओर लहलहाती हरियाली और जगह-जगह से निकलते जल स्नोत एनसीआर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। इस बार ऐसी ही एक सुखद घटना अरावली की वादियों में हुई। आज से तीन दशक पहले तक निकलने वाले झरने में एक बार फिर से जल प्रपात होने लगा। हरी भरी वादियों से ढके इस स्थान पर अचानक यह झरना अपने साथ इतिहास के उन पन्नों पर जमी गर्द भी धो रहा है जो आज से तकरीबन पांच हजार वर्ष पहले की कहानी कहते हैं। यह झरना पांडव कालीन है। पास ही स्थित मंदिर और सदियों से लोगों की आस्था प्रतीक बने रहे इस झरने को पांडवकालीन बताया जाता है।
तिल प्रस्थ का हिस्सा था फरीदाबाद
द्रौपदी ट्रस्ट फाउंडेशन की संस्थापक और पौराणिक इतिहासकार नीरा मिश्र का कहना है कि महाभारत में 209 पृष्ठ पर यह लिखा हुआ है कि जब पांडवों को जगह मिल गई और उन्होंने भगवान कृष्ण के साथ राज्य बसाना शुरू किया तो सबसे पहले इन लोगों ने जगह-जगह जल निकाय और जल स्नोत निíमत किए। उस काल में विद्यार्थी विज्ञान का ज्ञान रखते थे, भूगोल और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और उनके प्रभाव को समझते थे। अर्जुन ऐसी धनुíवद्या का ज्ञानी था जिससे आग और पानी दोनों निकाल सकते थे। इसका विज्ञानी तर्क यह है कि उस दौर में मंत्र द्वारा ऊर्जा निकलती थी। इस तरह से अर्जुन ने फरीदाबाद के इस झरने को भी अपने बाण से निकाला था। फरीदाबाद का यह हिस्सा उस समय तिलपत था जोकि पांडवों को मिले पांच गांवों में से एक था। स्थानीय निवासी कपिल भड़ाना का कहना है कि यह झरना पहले निरंतर गिरता था। जिन वर्षों में बरसात नहीं हुई उस दौरान यह बंद हो गया था। 2015-2016 में जब बरसात अच्छी हुई थी तो यह झरना फिर फूट निकला था। स्थानीय निवासी 80 वर्षीय मंगल राव का कहना है कि पहले यहां जाना भी मुश्किल होता था लेकिन उन्हें याद है कि वे कैसे परिवार के साथ वहां बने झरना मंदिर में जाया करते थे। उनका कहना है कि यह मंदिर और झरना पांडवों द्वारा इंद्रप्रस्थ बसाए जाने के समय से ही है। उस समय उन्हें अरावली में पानी के स्नोत और उसकी उपलब्धता की संभावना दिखाई दी। ऐसे में उन्होंने यहां पर तप किया और उस तप की शक्ति से झरना गिरने लगा। इसी मान्यता को सही बताते हुए हरिराम सिंह का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि पांडवों को जब अपने हिस्से के गांव मिले थे, यह स्थान उनमें से एक प्रमुख स्थान था। ऐसे में उनकी आस्था जुड़ी है यहां से।
यहां पर मिला 15वीं शताब्दी का शिवलिंग
अरावली के इस हिस्से में लंबे समय से शोध कर रहे विद्यार्थी शैलेश बैसला का कहना है कि उन्हें झरने के स्थान पर 15 सौ साल पुराना एकमुखी शिवलिंग मिला है जो कि प्रतिहार काल का माना जा सकता है। झरने के पास शिवलिंग की एक गुफा टूटी हुई है। इससे साबित होता है कि वहां पर सातवीं-आठवीं शताब्दी में कोई मंदिर रहा होगा जिसे बाद में मुगल आक्रमणकारियों ने तोड़ा होगा और शिवलिंग को गुफा से बाहर कर दिया होगा। शैलेश के मुताबिक यह शिवलिंग पुरातत्व विभाग के लिए भी एक महत्वपूर्ण साक्ष्य हो सकता है।