Gurugram Farmhouse News: अरावली नहीं बची तो दिल्ली-एनसीआर के इलाके बन जाएंगे रेगिस्तान, रिपोर्ट में खुलासा
प्रशासन यह मानता है कि राजस्व रिकॉर्ड मेें गैर मुमकिन फार्म हाउस नाम का कोई शब्द नहीं। फिर यह साफ है कि जहां भी फार्म हाउस बने हैं वे गैर मुमकिन पहाड़ के इलाके में हैं।
गुरुग्राम [आदित्य राज]। दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवनदायिनी कहे जाने वाली अरावली को बचाने की सक्रियता वर्षों से कागजों में दिख रही है, जमीन पर नहीं। इसका नतीजा यह है कि पांच विभागों के ऊपर अरावली को बचाने की पूरी जिम्मेदारी होने के बाद भी हजारों एकड़ भूमि पर गैर वानिकी कार्य हो गए। विधानसभा में भी वर्ष 2007 के दौरान फार्म हाउसों का मुद्दा जोर-शोर से उठा था, लेकिन कुछ दीवारें तोड़कर खानापूर्ति कर दी गई थीं। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के बाद उम्मीद है कि अरावली को बचाने का प्रयास जमीन पर दिखाई देगा। एनजीटी ने वन क्षेत्र में बनाए गए सभी फॉर्म हाउसों को तोड़ने का आदेश जारी किया है।
अरावली को बचाने का मुद्दा वर्ष 1990 से ही समय-समय पर उठाया जा रहा है। कई बार विधानसभा में मुद्दा उठाया गया। वर्ष 2007 के दौरान पटौदी के तत्कालीन विधायक भूपेंद्र चौधरी ने हरियाणा विधानसभा में मुद्दा उठाते हुए प्रश्न किया था कि किस आधार पर अरावली इलाके में अंसल को फार्म हाउस बनाने की अनुमति दी गई। मुद्दा उठाए जाने के बाद विधानसभा की लोक लेखा समिति ने अरावली का दौरा किया था। उस दौरान जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट पर भी चर्चा की गई थी। उस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि अरावली नहीं बची, तो दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके रेगिस्तान बन जाएंगे। इसके बाद भी केवल कुछ फार्म हाउसों की दीवारें तोड़कर खानापूर्ति की गई थीं।
राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन फार्म हाउस जैसा शब्द नहीं
प्रशासन यह मानता है कि राजस्व रिकॉर्ड मेें गैर मुमकिन फार्म हाउस नाम का कोई शब्द नहीं। फिर यह साफ है कि जहां भी फार्म हाउस बने हैं वे गैर मुमकिन पहाड़ के इलाके में हैं। इसके बाद भी प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा है। जब मामला गर्माता है तो कहीं पर एक-दो दीवारों को तोड़कर सरकार के सामने या फिर अदालत के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देता है। सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान कहते हैं कि किसी ने भी ईमानदारी से अरावली को बचाने के लिए प्रयास नहीं किया। यदि ईमानदारी से प्रयास होता तो आज अरावली में कहीं भी गैर वानिकी कार्य दिखाई नहीं देते।
हरियाली बढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति
वर्ष 1990 के दौरान अरावली पहाड़ी इलाके में हरियाली बढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति की गई थी। हेलीकॉप्टर से मई से जून के दौरान बीज गिराए गए थे। जब दिसंबर में सर्वे किया गया तो उसमें एक से दो प्रतिशत ही पौधे सामने आए थे। इसके बाद भी इलाके में पौधारोपण के नाम पर खानापूर्ति की गई। कई बार बिलायती बबूल की जगह स्थानीय वनस्पतियां लगाने की योजना वन विभाग ने बनाईं लेकिन कागजों से बाहर नहीं निकलीं। बिलायती बबूल स्थानीय वनस्पतियों के दुश्मन हैं। जहां पर बिलायती बबूल होते हैं वहां पर दूसरी कोई वनस्पति जीवित नहीं रहती है। बिलायती बबूल की वजह से ही अरावली पहाड़ी क्षेत्र से वन्य जीव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। वन्य जीव बिलायती बबूल के कांटों में फंस जाते हैं।
भूपेंद्र चौधरी (पूर्व विधायक, पटौदी) का कहना है कि मैंने अरावली पहाड़ी क्षेत्र में बनाए गए फार्म हाउसों के खिलाफ विधानसभा में जमकर मुद्दा उठाया था। इसके बाद कुछ दीवारों को तोड़कर रिपोर्ट दिखा दी गई थी। तत्कालीन अधिकारियों ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया। विधानसभा में मुद्दा उठाने के बाद भी कई बार पत्र लिखा लेकिन कोई असर नहीं हुआ। फार्म हाउसों को ध्वस्त करने के साथ ही उन सभी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए, जिनके समय में फार्म हाउस बनाए गए। जब तक जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी, तब तक अरावली में गैर वानिकी कार्य होते रहेंगे।
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