ई-त्वचा से कृत्रिम अंग भी महसूस करेंगे दर्द, तकनीक भारत लाने की तैयारी
सोनीपत के विज्ञानी प्रो. रविंद्र दहिया नौ साल से ग्लास्गो यूनिवर्सिटी में हैं।चार-पांच वर्ष पहले उनके मन में विचार आया कि प्रयास करने पर रोबोट भी दर्द महसूस कर सकता है। यदि रोबोट दर्द महसूस करना शुरू कर दे तो इंसानों की तरह अधिक दक्षता के साथ काम कर सकेगा।
गुरुग्राम [आदित्य राज]। आने वाले समय में रोबोट ही नहीं बल्कि कृत्रिम अंग भी हर स्पर्श और दर्द को महसूस कर सकेंगे। ऐसा रोबोट और कृत्रिम अंगों पर इलेक्ट्रानिक त्वचा लगाने से संभव होगा। इससे संबंधित शोध का प्रकाशन साइंस रोबोटिक जर्नल में हो चुका है। विशेष बात यह है कि अब इस त्वचा के निर्माण पर जोर दिया जाएगा। इसके लिए स्काटलैंड की ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रो. रविंद्र दहिया ने रोबोट के साथ कृत्रिम अंग बनाने वाली कंपनियों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। भारत में भी यह आसानी से उपलब्ध हो, इसके लिए वह जल्द ही कानपुर स्थित भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) प्रबंधन से संपर्क करेंगे। केंद्र सरकार से भी वह इस बारे में संपर्क करेंगे ताकि देश में इसके निर्माण व प्रयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
सोनीपत के हैं रहने वाले
मूल रूप से सोनीपत जिले के भट्टगांव निवासी विज्ञानी प्रो. रविंद्र दहिया नौ साल से ग्लास्गो यूनिवर्सिटी में विज्ञानी हैं। चार-पांच वर्ष पहले उनके मन में विचार आया कि प्रयास करने पर रोबोट भी दर्द महसूस कर सकता है। यदि रोबोट दर्द महसूस करना शुरू कर दे तो इंसानों की तरह अधिक दक्षता के साथ काम कर सकेगा। इसी सोच के तहत चार वर्ष पहले उन्होंने शोध करना शुरू कर दिया। शोध में उनके साथ 10 अन्य लोग भी शामिल रहे। कोरोना महामारी की वजह से कार्य प्रभावित हुआ, अन्यथा एक-दो वर्ष पहले ही शोध पूरा हो जाता। मेहनत का लाभ अब दुनिया को मिलेगा। इलेक्ट्रानिक त्वचा दर्द भी महसूस कर सकेगी और गर्म-ठंडा का फर्क भी।
इस तरह किया आविष्कार
प्रो. रविंद्र दहिया ने मानव शरीर के स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) और मस्तिष्क की संप्रेषण पद्धति को अपनी खोज का आधार बनाया है। जिस प्रकार शरीर के किसी भी अंग पर किसी वस्तु का स्पर्श अथवा आघात होता है तो उसकी जानकारी तुरंत मस्तिष्क तक पहुंच जाती है। इससे कम से कम समय में उस पर मस्तिष्क प्रतिक्रिया देता है। रोबोट भी ऐसा ही दर्द महसूस करे, इसके लिए जिंक आक्साइड नैनोवायर से बने 168 स्नैप्टिक ट्रांजिस्टर के ग्रिड से सीधे ही एक फ्लैक्सिबल प्लास्टिक सरफेस पर प्रिंट किया। फिर स्नैप्टिक ट्रांजिस्टर को आदमी के हाथों की तरह बने रोबोट के हाथों से जोड़ दिया। इससे रोबोट अपनी हथेलियों पर स्पर्श का अनुभव करने लगा।
सरकारी कंपनियों के आगे आने से बनेगी बात
यदि किसी का कृत्रिम पैर है और उसने अपना पैर किसी दूसरे के पैर पर रख दिया तो उसे आभाष नहीं होता है कि किसी अन्य का पैर दब रहा है। इलेक्ट्रानिक त्वचा लगाए जाने के बाद कृत्रिम पैर महसूस कर सकेगा कि वह किसी अन्य के पैर को दबा रहा है। इसी प्रकार गर्म-ठंडे का अहसास भी कृत्रिम अंग प्रयोग करने वालों को हो सकेगा। स्काटलैंड से फोन पर बातचीत में प्रो. रविंद्र दहिया ने कहा कि पूरी दुनिया में रोबोटिक सिस्टम पर काफी जोर दिया जा रहा है।
अगले दस सालों में दिखेगा बदलाव
अगले 10 वर्ष में किसी फैक्ट्री में रोबोट और लोग साथ-साथ काम करते हुए दिखाई देंगे। रोबोट भी इंसान की तरह ही संवेदनशील होगा। यह सब इलेक्ट्रानिक त्वचा की वजह से संभव होगा। प्रयास है कि यूनिवर्सिटी की ओर से कंपनी बनाकर इसे मार्केट में उतारा जाए या फिर कुछ कंपनियों के साथ तालमेल किया जाए। इसी दिशा में वह कानपुर स्थित कंपनी एलिम्को से भी संपर्क करने जा रहे हैं। सरकारी कंपनियों के आगे आने से कम से कम कीमत पर इलेक्ट्रानिक त्वचा उपलब्ध हो सकेगी। अगले तीन से चार वर्ष के दौरान यह मार्केट में हर जगह उपलब्ध हो जाएगी।