: कहीं चुनौतियों के भंवर में दम न तोड़ दें छोटे उद्योग
वर्तमान में स्मॉल इंडस्ट्री (छोटे उद्योग) की क्या हालत है यह किसी से छिपी नहीं है। नित नई-नई चुनौतियों से इनके प्रदर्शन और स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। औद्योगिक विशेषज्ञों को आशंका है कि कहीं छोटे उद्योग चुनौतियों के भंवर में फंस कर दम ना तोड़ दें। उद्यमियों की स्पष्ट राय है कि उद्योगों की यह हालत पिछले करीब डेढ़ दशक की उपेक्षा का परिणाम है। वित्तीय चुनौतियों और सरकारी उपेक्षा के कारण इनकी डगर कठिन-द-कठिन होती जा रही हैं। छोटे उद्योगों द्वारा हजारों की संख्या में लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। इनकी स्थिति खराब होने से रोजगार के सृजन को बड़ी हानि होने लगी है।
यशलोक ¨सह, गुरुग्राम
वर्तमान में स्मॉल इंडस्ट्री (छोटे उद्योग) की क्या हालत है यह किसी से छिपी नहीं है। नित नई-नई चुनौतियों से इनके प्रदर्शन और स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। औद्योगिक विशेषज्ञों को आशंका है कि कहीं छोटे उद्योग चुनौतियों के भंवर में फंसकर दम न तोड़ दें। उद्यमियों की स्पष्ट राय है कि उद्योगों की यह हालत पिछले करीब डेढ़ दशक की उपेक्षा का परिणाम है। वित्तीय चुनौतियों और सरकारी उपेक्षा के कारण इनकी डगर कठिन-दर-कठिन होती जा रही हैं। छोटे उद्योगों द्वारा हजारों की संख्या में लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। इनकी स्थिति खराब होने से रोजगार के सृजन को बड़ी हानि होने लगी है।
गुरुग्राम में गारमेंट, ऑटो, नट-बोल्ट, कॉटन टेक्सटाइल, इलेक्ट्रिकल एवं मशीनरी पार्ट्स, केमिकल, रबर एवं प्लास्टिक, मेटल, वुड, पेपर एवं ¨प्र¨टग, लेदर व इंजीनिय¨रग उत्पादों से संबंधित छोटे उद्योगों की संख्या सैकड़ों में हैं। इनमें से किसी की भी स्थिति ऐसी नहीं है कि आगे अपना विस्तार कर सकें या काम को बढ़ा सकें। इनके समक्ष वित्तीय संकट दैत्याकार हो गया है। लेदर यूनिट चलाने वाले सत्यभान का कहना है कि कच्चे माल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं श्रम शक्ति के महंगा होने और प्लांट का रेंट अधिक होने से खर्चा काफी बढ़ गया है। ऐसे में उद्योग चलाना अब अधिक फायदेमंद नहीं रहा। वहीं दिनोंदिन सरकारी औपचारिकताएं भी बढ़ती जा रही हैं।
अभी छोटे उद्योगों के वर्ग में उन औद्योगिक यूनिटों को रखा जाता है, जिनका पांच करोड़ रुपये तक का निवेश प्लांट और मशीनरी पर हो। केंद्र सरकार इस वर्गीकरण को बदलना चाहती है मगर अभी यह बिल संसद में है। छोटे उद्योगों का वित्तीय संकट तब खत्म होगा जब बैंकों द्वारा उन्हें आसानी से कर्ज बिना कुछ गिरवी रखवाए दिया जाएगा। --
सिर्फ गुरुग्राम ही नहीं प्रदेशभर के छोटे उद्योगों की हालत खराब है। सरकार द्वारा इन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वित्तीय मामलों में इनका संकट इतना बढ़ गया है कि वह बंदी की दहलीज पर पहुंच चुके हैं। इनके उत्पादन को मार्केट तक पहुंचाने के लिए सरकार को आगे आना होगा। इनके लिए विशेष अनुदान की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
- एचपी यादव, प्रेसिडेंट एनसीआर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री बैंकों द्वारा आसानी से कर्ज का नहीं मिलना। कच्चे माल का महंगा होना। आरएंडी एवं मार्के¨टग का अभाव। महंगी श्रम शक्ति, छोटे उद्योगों की राह के लिए रोड़ा बन गई हैं। इन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है अन्यथा इनकी स्थिति और खराब हो जाएगी।
- विकास जैन, प्रेसिडेंट गुड़गांव चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री