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निगम की डायरी: संदीप रतन

वैसे तो कई सरकारी महकमे काम नहीं करने के लिए चर्चा में रहते हैं लेकिन नगर निगम वाले इस खूबी में एक कदम आगे हैं। यहां तो बिना काम किए ही लाखों-करोड़ों के बिल बन जाते हैं और भुगतान भी हो जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Mar 2021 07:30 PM (IST)Updated: Wed, 17 Mar 2021 07:30 PM (IST)
निगम की डायरी: संदीप रतन
निगम की डायरी: संदीप रतन

बिना सड़क बनाए 50 लाख रुपये जेब में

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वैसे तो कई सरकारी महकमे काम नहीं करने के लिए चर्चा में रहते हैं, लेकिन नगर निगम वाले इस खूबी में एक कदम आगे हैं। यहां तो बिना काम किए ही लाखों-करोड़ों के बिल बन जाते हैं और भुगतान भी हो जाता है। जिसकी जेब में माल गया, वो काम कैसा भी हो फाइल पर सरकारी घुग्गी (हस्ताक्षर) बैठा देता है। ऐसा एक मामला गाढ़ौली कलां का आया है। इस गांव की सड़कों का निर्माण करने से संबंधित 2018 में लगाए गए एक टेंडर की शिकायत शहरी स्थानीय निकाय निदेशालय में पहुंची है। सड़कों के निर्माण के लिए 51.23 लाख रुपये का टेंडर लगाया गया था। निजी एजेंसी पिकी एसोसिएट्स को सड़क बनाने का काम सौंपा गया था। हैरानी की बात ये है कि गांव में कोई भी सड़क नहीं बनाई गई। इस शिकायत का जवाब देते हुए लेखा शाखा और इंजीनियरिग विग के अधिकारियों के हाथ-पांव फूल रहे हैं।

जमीन निगल गई या आसमान खा गया

जनता के पैसे से खरीदी गई करोड़ों रुपये की मशीन का नगर निगम के पास कोई हिसाब नहीं है। मशीन मौके पर मिले या नहीं, लेकिन इस गायब मशीन की मरम्मत के नाम पर लाखों के बिल भी मंजूर हो जाते हैं। ऐसा पिछले कई वर्षो से चल रहा है। लेकिन अब इस कारनामे की पोल खुलने वाली है। पार्षदों की शिकायत पर इन सरकारी मशीनों को तलाशने का काम शुरू हो गया है। जेई और फील्ड के कर्मचारियों की ड्यूटी लगी है, लेकिन मशीन इतनी आसानी से कहां मिलने वाली है। नगर निगम रिकार्ड के मुताबिक चार सुपरसकर मशीनें और तीन जेटिग मशीनों के अलावा और भी कई मशीनें निगम के पास हैं। नगर निगम के पास न तो इनकी मरम्मत के लिए वर्कशाप है और न ही स्टोर। मशीनें नहीं मिलने पर अब निगम वाले इनकी तलाश लेखा शाखा में मंजूर किए गए बिलों से कर रहे हैं।

अधिकारी लगाने लगे रेहड़ी

स्ट्रीट वेंडिग प्रोजेक्ट वैसे तो रेहड़ी लगाकर गुजर-बसर करने वालों के लिए सरकार ने शुरू किया था, लेकिन अधिकारी ही रेहड़ी लगाने लग जाएं तो ताज्जुब होता है। हालांकि यहां ये कोई बड़ी बात नहीं है। 2016 में गुरुग्राम नगर निगम द्वारा शुरू किए गए स्ट्रीट वेंडिग प्रोजेक्ट में हुए घोटाले की परतें खुलती जा रही हैं। जहां निगम अधिकारियों ने निजी एजेंसियों को खूब ढील दी, वहीं एजेंसियों ने भी इसका जमकर फायदा उठाया। नतीजा, ये हुआ कि न तो गरीबों का भला हुआ और न ही व्यवस्थित बाजार बन सके। रेहड़ी वालों का सर्वे कर इनको रेहड़ियां दी जानी थीं। लेकिन यहां तो अधिकारियों ने ही अपनी रेहड़ियां लगवा लीं। माना कि नाम किसी और का है, लेकिन तार सीधे जुड़े हुए हैं। तीनों स्ट्रीट वेंडिग एजेंसियों में रेहड़ी वालों की सूची पर अगर गौर करें तो रेहड़ियां आलीशान कोठियों में रहने वालों लोगों ने खरीद रखी हैं।

अभी तो पार्टी शुरू हुई है..

निगम पार्षदों को पार्टी करने का चस्का लग गया है। मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर की कुर्सी भले न डोले, लेकिन माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। कुछ दिन पहले तावडू के एक फाइव स्टार होटल में पार्षदों ने क्रिकेट खेला। दो दिन तक लंच-डिनर कर सिंहासन हिलाने की तैयारी की। ये बात और है कि दो दिन बाद ही मामला ठंडा पड़ गया। अब 18 मार्च को होने जा रही सदन की बैठक के लिए पार्षद उतावले हो रहे हैं। ये बेचैनी इसलिए क्योंकि बैठक लंबे इंतजार के बाद होने जा रही है, दूसरा निगम बजट के अलावा पार्षद अपना एजेंडा भी रखेंगे। 18 नवंबर 2020 को हुई सदन की बैठक के एजेंडों और पुरानी जांचों पर कोई फैसला नहीं होने से पार्षद काफी खफा हैं। ऐसे में बैठक के हंगामेदार रहने के पूरे आसार हैं। वैसे पार्षदों का कहना भी यही है.. अभी तो पार्टी शुरू हुई है।


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