रायसीना की जमीन दिखा गैरतपुर के कई फार्म हाउस की हुई रजिस्ट्री
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद एक बार फिर से शुरू हुई जांच में घोटाले सामने आने लगे हैं। गैरतपुर बास गांव की चालीस एकड़ जमीन पर जो फार्म हाउस बने हुए हैं, उनकी रजिस्ट्री रायसीना की जमीन दिखाकर की गई। यह बात नायब तहसीलदार बादशाहपुर ने उपायुक्त के लिखे पत्र में स्वीकार की है..
सत्येंद्र ¨सह गुरुग्राम
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद एक बार फिर से शुरू हुई जांच में घोटाले सामने आने लगे हैं। गैरतपुर बास गांव की चालीस एकड़ जमीन पर जो फार्म हाउस बने हैं, उनकी रजिस्ट्री रायसीना की जमीन दिखाकर की गई। यह बात नायब तहसीलदार बादशाहपुर ने उपायुक्त के लिखे पत्र में स्वीकार की है। जांच में यह भी सामने आया कि दो बिल्डरों की मिलीभगत कर पंचायत विभाग व राजस्व विभाग के कई अधिकारियों पर कर्मचारियों ने सब कुछ किया था। जांच रिपोर्ट का आकलन कर उपायुक्त दोषी कर्मचारियों व अधिकारियों तथा बिल्डर प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने कराने के लिए केस फाइल तैयार करा रहे हैं।
भूमि घोटाले की शिकायत वर्ष 2006 में सेक्टर चौदह निवासी अधिवक्ता आरएल नरूला ने की थी। दरअसल उस समय नगर परिषद (अब नगर निगम) ने शहर का कूड़ा डालने के लिए गैरतपुर पंचायत से करीब नौ लाख रुपये में दो साल के लिए लीज पर ली थी। पंचायत ने जमीन तो दे दी मगर उसकी जमीन पर दो बिल्डरों ने कब्जा कर रखा था। जिसके चलते नगर परिषद ने आरएल नरूला की जगह पर कूड़ा डालना शुरू कर दिया था। नरूला ने प्रशासन को शिकायत दी थी, जिसमें यह भी बताया था कि पंचायती जमीन पर अवैध कब्जे हैं। जिसके बाद तत्कालीन उपायुक्त आरपी भारद्वाज ने जांच कराई तो शिकायत सही पाई गई। भारद्वाज का तबादला हुआ। उसके बाद जो भी उपायुक्त बना उसके पास नरूला ने शिकायत दी सभी जांच कराते रहे पर कार्रवाई नहीं हुई। सीएम ¨वडो की एक्शन टेकन रिपोर्ट में भी अवैध कब्जा माना गया था। उसमें यह भी लिखा है कि बिल्डर ने सकतपुर व गैरतपुर बास के सरकारी रास्ते पर भी कब्जा कर रखा है। दैनिक जागरण ने 23 मार्च के अंक में पूरे मामले को लेकर खबर प्रकाशित की तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अधिकारियों को बुला मामला समझा फिर उपायुक्त विनय प्रताप ¨सह को निर्देश दिया था कि पूरे मामले की जांच कराने के बाद जो भी दोषी मिले उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराएं। इन खसरा नंबर की जमीन पर अवैध कब्जे
जांच में पाया गया है कि खसरा नंबर188,189,190,191, 200 से 202 तक की जमीन पर अवैध कब्जा किया जा चुका है। इस खेल में राजस्व विभाग से लेकर पंचायत विभाग के कई अधिकारी व कर्मचारी शामिल रहे हैं। मैं, शुरू से कह रहा हूं कि करीब दो सौ करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाली पंचायती जमीन को बिल्डरों के हवाले तत्कालीन पंचायत व विभागीय अधिकारियों ने मिलीभगत कर की थी। जांच कई बार हुई पर आंच किसी तक नहीं आई। अब उम्मीद जगी है कि मनोहर सरकार दूध का दूध पानी का पानी अलग कर देगी। रजिस्ट्री करने में भी साक्ष्य नहीं देखे गए थे।
आरएन नरूला, निवासी सेक्टर 14 (शिकायतकर्ता )