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सीबीआइ व ईडी की जांच के दौरान बिल्डरों ने ले लिया मुआवजा

मानेसर जमीन घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है। घोटाले को उजागर करने वाले मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय में मामला चलने के दौरान आरोपित बिल्डरों ने हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण से करोड़ों रुपये का मुआवजा उठा लिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 07:30 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 05:07 AM (IST)
सीबीआइ व ईडी की जांच के दौरान बिल्डरों ने ले लिया मुआवजा
सीबीआइ व ईडी की जांच के दौरान बिल्डरों ने ले लिया मुआवजा

आदित्य राज, गुरुग्राम

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मानेसर जमीन घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है। घोटाले को उजागर करने वाले मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय में मामला चलने के दौरान आरोपित बिल्डरों ने हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण से करोड़ों रुपये का मुआवजा उठा लिया। जिस दौरान मुआवजे की राशि उठाई गई, उस दौरान जांच ईडी एवं सीबीआइ जोर-शोर से जांच कर रही थी।

बता दें कि अगस्त, 2004 के दौरान तत्कालीन ओमप्रकाश चौटाला की सरकार ने मानेसर, नखड़ौला व नौरंगपुर गांव की 912 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कराई थी। इसके लिए 27 अगस्त, 2004 को सेक्शन-4 का नोटिस जारी हुआ था। वर्ष 2005 में प्रदेश में सरकार बदल गई थी और मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बने थे। हुड्डा सरकार ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को रोका नहीं, बल्कि तेजी से आगे बढ़ाया था। इस बीच बिल्डरों ने किसानों को सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने का भय दिखाकर सस्ते दर में उनकी जमीन खरीदनी शुरू कर दी थी।

25 अगस्त, 2005 में जमीन अधिग्रहण के लिए सेक्शन-6 का नोटिस जारी हुआ था। इसके बाद बिल्डरों ने जमीन खरीदने की प्रक्रिया और तेज कर दी थी। किसानों को दो अगस्त, 2007 में सेक्शन-9 का नोटिस भेजा गया था। 24 अगस्त, 2007 को तत्कालीन प्रदेश सरकार ने अचानक जमीन अधिग्रहण का फैसला वापस ले लिया था। तब तक किसानों को अधिग्रहण का डर दिखाकर बिल्डर उनकी लगभग 444 एकड़ जमीन खरीद चुके थे।

सरकार के फैसले से किसानों ने खुद को ठगा महसूस किया था। इसके बाद सभी ने मिलकर मामले को हर स्तर पर उजागर करने का निर्णय लिया था। इसमें मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव ने विशेष भूमिका निभाई। फिर मामला हरियाणा उच्च न्यायालय में पहुंचा। वहां हार होने के बाद किसान सर्वोच्च न्यायालय में 24 अप्रैल, 2015 पहुंचे थे। मामले को उजागर करने के लिए 12 अगस्त, 2015 को मानेसर थाने में मामला दर्ज कराया गया।

मामला दर्ज होते ही प्रदेश सरकार ने सीबीआइ जांच कराने की घोषणा कर दी थी। 15 सितंबर, 2015 से सीबीआइ जांच शुरू हुई। इस बीच ईडी ने भी अपने स्तर पर जांच शुरू की। इधर, मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 12 मार्च, 2018 को फैसला सुनाते हुए बिल्डरों द्वारा खरीदी गई जमीन का मालिकाना हक हरियाणा राज्य औद्योगिक व संरचना विकास निगम (एचएसआइआइडीसी) को दे दिया था।

फैसले से पहले उठा ली मुआवजे की राशि

पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव का कहना है कि जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया एचएसआइआइडीसी ने शुरू की थी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार मास्टर प्लान 2031 लेकर आई थी। प्लान में तीनों गांवों की जमीन आ गई थी। इससे जमीन के विकास करने की जिम्मेदारी हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के पास आ गई थी। प्राधिकरण ने वर्ष 2014 में आंतरिक विकास के लिए सड़क बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण का नोटिस जारी किया था। इससे बिल्डरों द्वारा खरीदी गई जमीन भी अधिग्रहण के दायरे में आ गई थी। अपनी जमीन का मुआवजा कई बिल्डरों ने वर्ष 2017 के दौरान उठा लिया, जबकि मामला तब न केवल सर्वोच्च न्यायालय में था, बल्कि सीबीआइ एवं ईडी भी जांच कर रही थी। यही नहीं, जिस जमीन को बिल्डरों ने किसानों से प्रति एकड़ 15 से 20 लाख रुपये में खरीदा था, उस जमीन का मुआवजा पांच करोड़, 40 लाख रुपये से अधिक उठाया गया। यह खेल बिना अधिकारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। जो भी मामले में शामिल हैं, सभी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। संवाददाता ने इस मामले में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के प्रशासक जितेंद्र यादव से संपर्क कर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।


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