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कपड़े के थैले से जोड़ा स्वच्छता, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण

जब कोई कवि लेखक सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ जाता है तो फिर उस अभियान की दिशा और दशा कुछ अलग ही होती है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 06:06 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 06:21 AM (IST)
कपड़े के थैले से जोड़ा स्वच्छता, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण
कपड़े के थैले से जोड़ा स्वच्छता, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण

पूनम, गुरुग्राम

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जब कोई संवेदनशील कवि, लेखक अपने रचनाकर्म के साथ सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ जाता है, तो फिर उस अभियान की दिशा और दशा कुछ अलग ही होती है। साइबर सिटी जहां सबसे ज्यादा प्रदूषण के लिए बदनाम है वहीं उन अभियानों के लिए भी जानी जाती है जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे हैं। शहर की ऐसी ही एक गृहलक्ष्मी ने गुरुग्राम के साथ ही दिल्ली, एनसीआर के शहरों को स्वच्छ और पॉलीथिन मुक्त बनाने की ठानी है।

ममता अग्रवाल कवयित्री हैं, सामाजिक सरोकारों से वर्षो से जुड़ी हैं मगर उनके एक अभियान ने न केवल स्वच्छता को बढ़ावा दिया है, पर्यावरण सुरक्षित शहर बनाने में योगदान दिया और कुछ जरूरतमंदों को रोजगार भी दिया है। सेक्टर-54 स्थित सनसिटी में रहने वाली ममता अग्रवाल कपड़े के थैले देकर लोगों से बिना पॉलीथिन काम करने का संकल्प करवाती हैं। लोगों से पुराने कपड़े एकत्र कराकर उनके तरह-तरह के थैले बनवाती हैं। यह कार्य नो-प्रॉफिट नो-लॉस किया जाता है। एक कपड़े का थैला दस रुपये में मिलता है। ममता अग्रवाल के इस अभियान का लाभ केवल गुरुग्राम की उनकी सोसायटी ही नहीं, बल्कि दिल्ली और एनसीआर के शहर भी उठा रहे हैं।

रविवार को गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड में दीपावली मेला आयोजित किया गया, वहां भी ममता अग्रवाल द्वारा तैयार कराए गए कपड़े के थैले बांटे गए । इस मेले का थीम इको जोन था और आस-पास की सोसायटियों के लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। गुरुग्राम में पर्यावरण को लेकर काम करने वाले एक्टिविस्ट ग्रुप में ममता अग्रवाल के अभियान की काफी चर्चा होती है। स्वच्छता अभियान से हुई थी शुरुआत

करीब दो साल पहले ममता हर शनिवार और रविवार को सनसिटी में स्वच्छता अभियान चलाती थीं। लोगों का समूह, खासतौर पर बच्चे और महिलाएं मिलकर सोसायटी में सुबह सफाई करते थे। स्वच्छता के लिए नुक्कड़ नाटक और जागरूकता अभियान चलाया जाता था। वे बताती हैं कि कचरे में सबसे ज्यादा पॉलीथिन होता था। पर्यावरण के लिए यह काफी नुकसानदायक है। चीजों को रीसाइकिल करने के बारे में सोचा गया फिर पुराने कपड़ों से थैले बनाने का विचार आया।

सनसिटी जैसी पॉश सोसायटी में उन्हें पुराने कपड़े खूब मिलने लगे। आज की जीवनशैली ऐसी है कि लोग मजबूत पुराने कपड़े भी फेंक देते हैं। ममता अग्रवाल ने उसे एकत्र कराना शुरू किया। कुछ लड़कियों को ट्रेनिग दिलाई और उनसे थैले बनवाने शुरू किए। सोसायटी की दुकानों में कपड़े के थैले देकर उनसे पॉलीथिन का इस्तेमाल बंद करने को कहा। इन थैलों की बहुत मांग है। खासतौर पर नए गुरुग्राम की उन सोसायटियों में, जहां लोग पॉलीथिन-फ्री सोसायटी का अभियान चला रहे हैं।

ममता लायनेस क्लब के माध्यम से सामाजिक सरोकारों के लिए कार्य करती रही है। उन्होंने दिल्ली के नजफगढ़ में एक केंद्र बनाया है जिसका नाम सोशल विजन है। वहां एक क्लॉथ बैंक भी बनाया गया है। इस क्लॉथ बैंक में लोगों से लिए गए पुराने कपड़े रखे जाते हैं। कुछ कपड़ों से बैग तैयार किया जाता है। क्लॉथ बैंक से जरूरतमंद लोग पहनने के लिए कपड़े भी ले जाते है। इस मुहिम से थैला तैयार करने वाली महिलाओं को उनका मेहनतनामा मिल जाता है और आम लोग को दस रुपये में एक कपड़े का थैला उपलब्ध हो जाता है। इसमें करीब आठ-दस जरूरतमंद परिवारों की महिलाएं काम कर रही हैं।

ममता बताती हैं कि मेरी कोशिश थी कि हर तरह का थैला बनाया जाए। वह कहती हैं कि हमने आम थैलों के साथ दुपट्टों और साड़ियों की मदद से ऐसी छोटी-छोटी थैलियां भी तैयार कीं, जिसे बाजार में लेकर जाया जाए और उसमें अलग-अलग सामान लेकर फ्रिज में भी ज्यों का त्यों रखा जा सके ताकि पॉलीथिन से बचाव के लिए अलग से मेहनत नहीं करनी पड़े। ममता बताती हैं कि अमेरिका में रह रही उनकी बहू ने भी कपड़े के थैले उनसे मंगवाए हैं। बर्तन बैंक भी शुरू किया

ममता अग्रवाल ने डिस्पोजबल क्राकरी से बचाव के लिए एक क्राकरी बैंक भी शुरू कराया है। जहां से लोग किसी भंडारे, उत्सव, समारोह के लिए स्टील के बर्तन ले जाते हैं, जिससे वे प्लास्टिक या स्टायरोफोम में डिस्पोजेबल प्लेट, ग्लास, कटोरी के प्रयोग से बच जाते हैं।


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