Move to Jagran APP

पालन करते हैं इस्लाम धर्म का, मगर अपने हिदू गोत्र पर भी है गर्व

अरावली की तलहटी में बसा सोहना। करीब 70 हजार की आबादी वाला एक कस्बा जहां हिदू-मुस्लिम एकता और भाईचारे के गुलदस्ते से एकता और अखंडता की बगिया महकती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 06:43 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 07:25 PM (IST)
पालन करते हैं इस्लाम धर्म का, मगर अपने हिदू गोत्र पर भी है गर्व
पालन करते हैं इस्लाम धर्म का, मगर अपने हिदू गोत्र पर भी है गर्व

सतीश राघव, सोहना (गुरुग्राम)

loksabha election banner

अरावली की तलहटी में बसा सोहना। करीब 70 हजार की आबादी वाला एक कस्बा जहां हिदू-मुस्लिम एकता और भाईचारे के गुलदस्ते से एकता और अखंडता की बगिया महकती है। सोहना से सटे मेवात के गांवों की बात करें तो यहां मुस्लिम समुदाय के लोग हिदुओं के साथ मिलजुल कर रहे हैं। मतांतरण के बाद भी वर्षों से अपनी सोच, संस्कृति और विचारों में हिदुत्व को सम्मानजनक स्थान देते हैं।

मेवात जिले में बसने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग अपने आप को भगवान श्रीराम की संतान बताते हैं। मेवात के गांव हाजीपुर के रहने वाले खुर्शीद बताते हैं कि उनके परदादा यानी चौथी पीढ़ी के पूर्वज का नाम कंवर सिंह था, जिनका बढ़गुजर यानी राघव गोत्र था। आज भी उनकी बढ़गुजर गोत्र के नाम से ही पहचान है। गांव सामदीका के रहने वाले सुभान खान बताते हैं कि उनके ननिहाल में पांच मामा थे जिनका नाम हरिसिंह, रविसिंह, जयसिंह नाम था जिनका गहलोत गोत्र था।

खुद को हिदू पूर्वजों की औलाद बताते हुए यह लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की उस बात की पुष्टि करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था चाहे हिदू हो या मुस्लिम, सबका डीएनए एक है। आज भी मेवात में रहने वाले मेव (मुस्लिम) समुदाय के लोगों का आसपास के गांवों में रहने वाले हिदू परिवारों से भाईचारा है जिसे सभी लोग बरसों बीत जाने के बाद भी निभाते आ रहे हैं।

सोहना कीशाही मस्जिद के इमाम मौलवी नसीम अहमद बताते है कि उनके पूर्वज भी हिदू ही थे ओर वे भगवान श्रीराम को मानते है। खुद उनका निकास राजपूत बाहुल्य गांव भोंडसी गांव से है और उनका बढ़गुजर गोत्र था। लेकिन उनका मानना है कि सबसे बड़ी बात इंसानियत की है। मजहब कोई भी हो सबसे पहले भाईचारा व इंसानियत है। पूरा परिवार आज भी होली, दीपावली व ईद साथ मिल-जुल कर मनाते हैं।

मतांतरण के बाद भी परंपराएं पूरी तरह नहीं बदलीं। शादियों में हिदुओं की तरह ही रस्में होती हैं। सोहना के आसपास मुस्लिम बहुल गांवों में बसने वाले लोगों में नंबरदार सूबे खान, नूरदीन, सुलेमानी बताते है कि उनके पूर्वज हिदू थे। हजारों साल बीत जाने के बाद भी वे अपने हिदू पूर्वजों का सम्मान करते हैं। इनका कहना है कि बरसों से आपसी भाईचारे की जो मिसाल बनी है उसे हम निभाते रहेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.