धूल के गुबार से फूल रही है हर शख्स की सांस
शहर की तस्वीर दो दशक पहले जो थी वह बदल गई है। छोट़ा से गुरुग्राम का नाम पूरे विश्व में छाया हुआ है। यहां देश ही नहीं विदेश के लोग भी रह रह है। मगर ठंड की तासीर गर्म होने से पहले शहर में धूल और धुंए की जो चादर छा जाती है वह सबके लिए परेशानी खड़ी कर देती है। शहर की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। मानव जीवन को खतरे में है ही पक्षी भी दम तोड़ रहे हैं। पिछले साल भी ऐसा हुआ था। पर्यावरण सुधार के लिए बड़ी-बड़ी बातें हुई मगर प्रशासनिक स्तर पर ऐसे कोई बड़े कदम नहीं उठाए गए
शहरनामा/सत्येंद्र ¨सह
शहर की तस्वीर दो दशक पहले जो थी वह बदल गई है। छोटा से गुरुग्राम का नाम पूरे विश्व में छाया हुआ है। यहां देश ही नहीं विदेश के लोग भी रह रह है। मगर ठंड की तासीर गर्म होने से पहले शहर में धूल और धुएं की जो चादर छा जाती है वह सबके लिए परेशानी खड़ी कर देती है। शहर की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। मानव जीवन को खतरे में है ही पक्षी भी दम तोड़ रहे हैं। पिछले साल भी ऐसा हुआ था। पर्यावरण सुधार के लिए बड़ी-बड़ी बातें हुई मगर प्रशासनिक स्तर पर ऐसे कोई बड़े कदम नहीं उठाए गए जिससे कंक्रीट के जंगल की आबो-हवा लोगों के अनुकूल बन सके। कूड़ा प्रबंधन बेहतर बनाने के दावे भी धरातल पर नहीं दिखे। बिल्डरों की मनमानी जारी है। निर्माण भले ही रोक दिये गए हो मगर चुपके-चुपके आज भी निर्माण कार्य चल रहे हैं। सड़कें धूल के गुबार को बढ़ा रही हैं। शायद ही ऐसी कोई सड़क हो जिसमें गड्ढे और धूल नहीं हो।
रात की रोशनी में ¨सगापुर का नजारा दिखाने वाले इस शहर में जब लोग दिन में आते हैं तो तस्वीर दूसरी पाते हैं। वाहन रेंगते हुए चलते हैं। शीशा खोल दो चंद पल में ही धूल की परत अंदर छा जाती है। ऐसे में लोगों के मुंह से यही बात निकलती है कि शहर के हालात ऐसे क्यों हो गए? दरअसल प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस शहर को ढांचागत तरीके से विकसित नहीं किया गया। सड़क बनती है तो बिजली व टेलीफोन वाले सड़क खोद चल देते हैं। सड़क बनाने के बाद सीवर लाइन बड़ी करने का प्लान बनाया जाता है।
हालांकि बीते चार साल में शहर के ऊपर सरकार ने कुछ ध्यान दिया मगर जिस तरह से दिया जाना चाहिए था वह नहीं किया। पुराने शहर को मेट्रो से जोड़ने तथा फ्लाईओवर बनाने की योजनाएं राजनैतिक अड़ंगों के चलते सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि दूसरे शहरों में घोषणा के तीसरे साल ही मेट्रो दौड़ने लगी है। जब तक शहर की ट्रैफिक व्यवस्था नहीं सुधरेगी सार्वजनिक वाहन प्रणाली नहीं मजबूत होगी और एक घर के चार सदस्य अलग-अलग कार से आएंगे जाएंगे शहर की सूरत नहीं सुधरने वाली है। सुधार नहीं हुआ तो लोग यहां रहने का चाहत स्वास्थ्य के चलते छोड़ देंगे।