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बैलेंस शीट: यशलोक सिंह

कोरोना काल कॉमर्शियल रियल एस्टेट के लिहाज से बेहद नकारात्मक साबित हो रहा है। कोविड-19 के कारण गुरुग्राम स्थिति आइटी-आइटीईएस कंपनियों के काम कराने का तरीका तेजी से बदलता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 02:37 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 02:37 PM (IST)
बैलेंस शीट: यशलोक सिंह
बैलेंस शीट: यशलोक सिंह

कॉमर्शियल प्रॉपर्टी का क्या होगा?

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कोरोना काल कॉमर्शियल रियल एस्टेट के लिहाज से बेहद नकारात्मक साबित हो रहा है। कोविड-19 के कारण गुरुग्राम स्थिति आइटी-आइटीईएस कंपनियों के काम कराने का तरीका तेजी से बदलता जा रहा है। यह कंपनियां अब बड़े के स्थान पर छोटे कार्यालय को रखना पसंद कर रही हैं। कार्यालय छोटा करने का चलन जोर पकड़ता जा रहा है। प्रॉसेस नाइन कंपनी के सीईओ राकेश कपूर बताते हैं कि उन्होंने अपने गुरुग्राम कार्यालय की 50 प्रतिशत लीज को छोड़ दिया है। रियल एस्टेट विशेषज्ञों का कहना है कि रिहायशी रियल एस्टेट की स्थिति तो धीरे-धीरे बेहतर की ओर अग्रसर हो रही है, मगर कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को बतौर कार्यालय किराए पर लेने का चलन अब कम होता जा रहा है। भविष्य में इसमें और भी गिरावट देखने को मिलेगी। विशेषकर आइटी-आइटीईएस क्षेत्र में, क्योंकि वह अपने कर्मचारियों से बड़े कार्यालयों के बजाय घर से काम कराने को सबसे अधिक पसंद करने लगे हैं। आखिर कब दूर होंगी खामियां

दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डीएचबीवीएन) द्वारा बिजली बिल की गलत गणना पर आखिर कब विराम लगाया जाएगा? इससे सिर्फ आम बिजली उपभोक्ताओं को ही नहीं, उद्यमियों को भी बहुत समस्या हो रही है। उद्यमियों की शिकायत है कि जब भी उन्हें गलत गणना पर आधारित बिजली बिल मिलता है तो उसमें दर्ज राशि इतनी भारी भरकम होती है कि उनके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। उपभोक्ताओं को पहले इसे ठीक कराने को लेकर डीएचबीवीएन कार्यालयों के चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ते हैं। उन्हें एसडीओ से कई बार संपर्क करना पड़ता है तब कहीं जाकर बिजली बिल में सुधार की प्रक्रिया शुरू हो पाती है। एसडीओ स्तर से सुधार के बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए हिसार स्थित डीएचबीवीएन कार्यालय भेजा दिया जाता है। गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष जेएन मंगला का कहना है कि ऐसे कुछ मामले पिछले लगभग डेढ़ साल से डीएचबीवीएन हिसार कार्यालय में लंबित हैं। औद्योगिक हितैषी हो श्रम कानून

श्रम कानूनों में बदलाव की मांग उद्योग जगत की ओर से लगातार की जा रही है। उद्यमियों का कहना है कि औद्योगिक हित के लिए बदलाव बहुत जरूरी है। इससे हरियाणा सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार की नई औद्योगिक नीति आने वाली है, इसमें औद्योगिक बेहतरी के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाएंगे इस पर उद्यमियों की निगाहें टिकी हुई हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन साल के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है। मध्य प्रदेश की सरकार ने भी औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं। राजस्थान की सरकार ने काम के घंटों को लेकर बदलाव किए हैं। गुजरात ने भी लगभग तीन साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों की घोषणा कर दी। महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा सरकार ने भी नए उद्योगों को आकर्षित करने को लेकर ऐसा ही किया है। बड़ा लफड़ा है कैपिटल गेन टैक्स

कैपिटल गेन टैक्स खत्म करने की उद्योग जगत की मांग काफी पुरानी है। उनका कहना है कि औद्योगिक निवेश, विकास एवं विस्तार की राह में यह सबसे बड़ा रोड़ा है। आयकर अधिनियम की धारा 54 में कैपिटल गेन टैक्स का जिक्र है। उदाहरण के लिए अगर कोई उद्यमी अपनी पुरानी फैक्ट्री या औद्योगिक प्लाट, जिसे उसने कभी एक करोड़ रुपये में खरीदा था को बाद में दो करोड़ रुपये में बेचता है तो उसे एक करोड़ रुपये का लाभ होता है। इस लाभ का 20 फीसद हिस्सा उसे कैपिटल गेन टैक्स के रूप में सरकार को देना होता है। यही बात उद्यमियों को अखर रही है। यह टैक्स तब लगता है जब कोई पुराना औद्योगिक प्लाट बेचकर प्लाट या फैक्ट्री खरीदता है। कोई मकान बेचकर मकान खरीदता है तो उसे इस टैक्स से छूट है। वहीं कोई फैक्ट्री बेचकर मकान खरीदता है तो उसे भी इस टैक्स से छूट है।


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