कोरोना से मौत के बाद अपनों ने भूलाया, संस्था ने निभाया फर्ज
कोरोना से अप्रैल-मई में सबसे ज्यादा मौतें हुईं। शहर के श्मशान घाटों में भी शवों की लाइन लग गई थी और दाह संस्कार करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। कोरोना महामारी में अपने भी एक-दूसरे से दूर हो गए।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: कोरोना से अप्रैल-मई में सबसे ज्यादा मौतें हुईं। शहर के श्मशान घाटों में भी शवों की लाइन लग गई थी और दाह संस्कार करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। कोरोना महामारी में अपने भी एक-दूसरे से दूर हो गए। कोरोना से हुई मौत और दाह संस्कार के बाद जब अपने अस्थियां तक लेने नहीं आए तो रामबाग श्मशान भूमि संस्था ने जिम्मेदारी उठाई। पुराने शहर के सबसे पुराने रामबाग श्मशान घाट में कोरोना से हुई मौत के बाद काफी लोगों का अंतिम संस्कार किया गया था, लेकिन 175 मृतकों की अस्थियां अपनों के आने का इंतजार करती रहीं। काफी दिन तक इंतजार के बाद जब स्वजन नहीं पहुंचे तो लाकर में रखी अस्थियों को गढ़ गंगा जाकर विसर्जित करने का कार्य रामबाग श्मशान भूमि संस्था कर रही है। संस्था के पदाधिकारियों के मुताबिक करीब पांच दिन पहले 85 मृतकों की अस्थियों का विसर्जन किया गया है। जब कोई नहीं आता तो संस्था करती है विसर्जन
संस्था के पदाधिकारियों के मुताबिक सिर्फ कोरोना ही नहीं कई बार लावारिश मृतकों का भी संस्कार होता है। ऐसे में जब कई दिन तक स्वजन नहीं पहुंचते तो इनकी अस्थियां संस्था द्वारा गढ़ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। काफी लोग विदेश में भी रहते हैं और स्वजन की मौत के बाद अस्थियां विसर्जन आदि के लिए नहीं पहुंच पाते हैं तो संस्था की ओर से यह कार्य किया जाता है। रामबाग श्मशान भूमि संस्था 1992 से कार्य कर रही है। कोरोना काल में हुई मौतों के अलावा भी जिन मृतकों की अस्थियां लेने स्वजन नहीं पहुंचते हैं तो संस्था द्वारा पूरे रीति-रिवाज के साथ गढ़ गंगा में विसर्जित की जाती हैं।
सुभाष सिगला, पार्षद एवं उपाध्यक्ष रामबाग श्मशान भूमि संस्था गुरुग्राम।