लाइफस्टाइल : पिछड़ेपन का नहीं, सौंदर्य, सम्मान व सौम्यता का प्रतीक है साड़ी
फैशन डिजाइनर आसिमा का कहना है कि फैशन जगत में साड़ी आज भी अपनी उसी लावण्य और लालित्य का प्रतीक बनी हुई है जो सदियों से थी। आर्टिसन सागा की संचालक और फैशन एक्सपर्ट सीमा अग्रवाल का कहना है कि साड़ी केवल परिधान नहीं पूरी की पूरी परंपरा है।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। हाल ही में दिल्ली में एक रेस्तरां में महिला को इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया, क्योंकि उसने साड़ी पहन रखी थी। इस घटना ने एक बार फिर से साड़ी के मान-सम्मान की चर्चा छेड़ दी और साड़ी 'साड़ी इज आवर प्राइड', 'साड़ी इज स्मार्टेस्ट' और 'साड़ी नाट सारी' जैसे हैशटैग में लिपटकर इंटरनेट पर ट्रेंड कर रही है। विडंबना ही कहेंगे कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर फैशन का डंका बजा रहे भारतीय परिधान साड़ी को राजधानी में ही अपमानित होना पड़ रहा है। यह आधुनिकता और स्टाइल का बदरंग चोला ओढ़े, तथाकथित आधुनिकता के अंधानुकरण में उपजी सोच का नतीजा है। यह अवहेलना केवल साड़ी की नहीं, भारतीय सभ्यता, संस्कृति और मूल्यों की है। लाज-लिहाज और स्त्री सम्मान का प्रतीक साड़ी अगर पिछड़ी घोषित कर दी जाए तो यह चोट किसी एक व्यक्ति के नहीं, बल्कि पूरे देश की संस्कृति और सम्मान पर है।
साड़ी की साख पर सवाल
जब द्वापर युग में द्रोपदी का चीरहरण हुआ तो महाभारत जैसा युद्ध हो गया और आज कलयुग में जब साड़ी के सम्मान पर सवाल उठा दिया गया और इंटरनेट युद्ध हो गया है। कनाट प्लेस के रेस्तरां में साड़ी के वजूद और सम्मान पर सवाल उठने की यह कोई पहली घटना नहीं है।
इससे पहले भी ऐसा हो चुका है कि साड़ी पहनकर पहुंचने वाली महिला शिक्षक को रेस्तरां से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। तर्क कहें या कुतर्क या फिर आधुनिकता की नई और विकृत परिभाषा..जिसके प्रभाव में साड़ी को पिछड़ेपन की निशानी बता सम्मानजनक परिधान मानने से इन्कार कर दिया जाता है। विदेशी मंचों पर लहराती साड़ी : भारतीय डिजाइनर सत्यपौल, सब्यसाजी मुखर्जी, रितु बेरी, रितु कुमार से लेकर अलेक्जेंडर मेक्वीनस, हर्मीस, मार्शिया, जीन पौल ग्वाटलियर और शनैल जैसे उच्चकोटि के विदेशी ब्रांड और डिजाइनर्स ने साड़ी को अपनी रचनात्मकता का कैनवास बनाकर लंदन और पेरिस जैसे नामी फैशन वीक्स का हिस्सा बनाया। जिस साड़ी के सौंदर्य को दुनिया सराह रही है, उसी को अपनी ही धरती पर अपमान सहना पड़ रहा है।
फैशन डिजाइनर आसिमा का कहना है कि फैशन जगत में साड़ी आज भी अपनी उसी लावण्य और लालित्य का प्रतीक बनी हुई है जो सदियों से थी।
सम्मान, सौम्यता, सभ्यता और सुंदरता का प्रतीक
आर्टिसन सागा की संचालक और फैशन एक्सपर्ट सीमा अग्रवाल का कहना है कि साड़ी केवल परिधान नहीं, पूरी की पूरी परंपरा है। बदलावों से गुजरते हुए, अपने मौलिक स्वरूप को बचाए रखते हुए रचनात्मकता में ढलने का उदाहरण है। देश में साड़ी का अपमान देश की नारी का अपमान है और इसे सहन नहीं किया जाना चाहिए।
साड़ी बहुत ही सुंदर परिधान है। बदलते वक्त में इसे पहनने के तरीकों में जो बदलाव आए हैं, उन्हें भी साड़ी ने अपने दामन में समेटा है। साड़ी इतनी लचीली हुई कि आज उसे पहनने के अंदाज बदल गए हैं, लेकिन महिमा बरकरार है। जींस, टाप, स्कर्ट और शर्ट के साथ भी साड़ी अपनी सौम्यता और खूबसूरती का वजूद बचाए हुए है।