अरावली में बारिश के पानी को संजो कर बढ़ाया जा सकता है भूजल स्तर
अरावली में चेक डैम बनाकर पानी को संजोने की कई बार योजना बनी पर उन पर अमल नहीं हुआ। अरावली पर्वत श्रृंखला संसार की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है।
महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)
अरावली की पहाड़ियां एनसीआर के लिए हर लिहाज से जीवनदायिनी मानी जाती हैं। बारिश होने से अरावली से आने वाले पानी से ही शहर में जलभराव होता है और बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है। पानी को संचय करने की नितांत जरूरत है, इससे शहरी क्षेत्र में जलभराव नहीं होगा, दूसरा भूजल स्तर भी बढ़ेगा। अरावली में चेक डैम बनाकर पानी को संजोने की कई बार योजना बनी पर उन पर अमल नहीं हुआ। अरावली पर्वत श्रृंखला संसार की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। जीव जंतु, पर्यावरण, संस्कृति, गांवों, कस्बों और शहरों के लिए एक मुख्य भूमिका निभाती है। मरुस्थल से आने वाली गर्म हवाओं को रोकने का काम करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है अगर अरावली पर्वत नहीं होता तो दिल्ली-एनसीआर मरुस्थल के रेत से भर गया होता। खनन से बने गड्ढों में किया जा सकता है जल संचयन: लगातार खनन की वजह से अरावली वीरान सी होती चली गई। 2002 में उच्च न्यायालय ने मामले में खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी। अरावली की पहाड़ियों से बारिश का लाखों गैलन पानी बेकार बह जाता है। इस पानी की वजह से ही शहर में बाढ़ जैसे हालात पैदा होते हैं। इस पानी का संचयन कर अरावली में बने परंपरागत जल स्त्रोतों में रोका जाए तो यह न केवल शहर के लिए वरदान के रूप में होगा, बल्कि बेकार बहने वाले पानी को एकत्रित करने से जल स्तर भी बढ़ेगा। गैरतपुर बास से ऊपर अरावली में बने गुरगजका जोहड़ में आसपास के गांव के ग्वाले अपने पशुओं को पानी पिलाने के लिए लाते थे। यह जोहड़ जंगली जीव जंतुओं के लिए भी पीने का पानी का बेहतर स्त्रोत था। जो सूखा पड़ा है। खनन से जोहड़ के लिए आने वाले पानी का रास्ता बदल गया और पानी शहर की ओर चला जाता है। खनन के दौरान अरावली में काफी बड़े-बड़े गड्ढे हो गए थे। उन गड्ढों में भी पानी को रोकने की व्यवस्था की जा सकती है। चेक डैम बनाने की योजना अधर में: टीकली व गैरतपुर बास से ऊपर अरावली में बरसाती पानी रोकने के लिए चेक डैम बनाए जाने की योजना बनी थी। चार साल पहले तत्कालीन वन मंत्री राव नरबीर सिंह ने इस चेक डैम का शुभारंभ भी किया था। लेकिन केवल शिलान्यास कराने तक मामला सीमित रह गया। उस पर वन विभाग ने आज तक भी काम शुरू नहीं किया है। प्रधानमंत्री सूक्ष्म सिचाई योजना के तहत कासन, मानेसर आदि गांव में चेक डैम बनाए गए, पर वे भी रखरखाव में दम तोड़ रहे हैं। घाटा गांव के पास भी वन विभाग ने चेक डैम बनाने की योजना बनाई थी। वह भी आज तक सिरे नहीं चढ़ पाई है।
बारिश के पानी को रोककर अरावली के ही परंपरागत स्त्रोतों में एकत्रित किया जा सकता है। इससे कई लाभ होंगे। एक तो शहर में जलभराव नहीं होगा। अरावली में ही पानी रोके जाने से अरावली हरी भरी होगी। इसके लिए सिर्फ अधिकारियों में इच्छाशक्ति का होना जरूरी है।
डा. अभिनव अग्रवाल, सदस्य, अरावली बचाओ सिटीजन ग्रुप
बेकार बहने वाले इस पानी को अरावली में एकत्रित किया जाए तो लगातार गिरता जा रहा भूजल स्तर भी ऊंचा उठेगा। अरावली में काफी पुराने परंपरागत जल स्त्रोत हैं। उनमें ही पानी रोके जाने की व्यवस्था करने से काम चल जाएगा। इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है।
राजेश वत्स, अधिष्ठाता, केशव धाम, आश्रम अरावली