निगम की डायरी: संदीप रतन
निगम में काम हो न हो लेकिन बिल करोड़ों के मंजूर हो जाते हैं। वो भी बिना जांच पड़ताल। हो भी क्यों नहीं बिल मंजूर करने के नाम पर ठेकेदारों से सुविधा शुल्क जो मिल जाता है।
नगर निगम में रोड स्वीपिग मशीन घोटाला
निगम में काम हो न हो लेकिन बिल करोड़ों के मंजूर हो जाते हैं। वो भी बिना जांच पड़ताल। हो भी क्यों नहीं बिल मंजूर करने के नाम पर ठेकेदारों से सुविधा शुल्क जो मिल जाता है। मैकेनिकल रोड स्वीपिग मशीनों का भी यही हाल है। सड़कों की सफाई कराने के नाम सिर्फ गड़बड़झाला हो रहा है। नए गुरुग्राम की कुछ सड़कों को अगर छोड़ दें तो कोई भी सड़क ऐसी नहीं है, जिस पर मशीनें ठीक से सफाई कर सकें। खस्ताहाल सड़कों पर मशीनें घूमाकर लाखों रुपये का चूना लगाया जा रहा है। 10 मशीनें गुरुग्राम और तीन मशीनें मानेसर निगम क्षेत्र में चल रही हैं। एक मशीन का भुगतान हर माह 4.70 लाख रुपये किया जा रहा है। 10 मशीनों के 47 लाख रुपये का भुगतान निगम के खजाने से हो रहा है। अगर इस मामले की गहनता से जांच हो तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। घास बची नहीं, सपने हरियाली के
लग रहा है निगम वाले सारा बजट हरियाली के सपने दिखाने में ही खर्च कर देंगे। पार्कों में घास तक नहीं बची है मगर करोड़ों रुपये के एस्टिमेट धड़ाधड़ मंजूर हो रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि मेयर की अध्यक्षता में होने वाली वित्त एवं संविदा समिति की बैठक भी यही बंदरबाट करने के लिए हो रही है। अगर 18 फरवरी को हुई एक ही बैठक पर गौर करें तो करोड़ों रुपये पार्क, ग्रीन बेल्ट संवारने के नाम पर ही मंजूर हो गए। एस्टिमेट की एक बानगी को यहां समझिए। सेक्टर 15 पार्ट वन व पार्ट टू की ग्रीन बेल्ट सुधार के लिए 4.78 करोड़ का एस्टिमेट मंजूर किया गया है। ये पौने पांच करोड़ महज दो ग्रीन बेल्ट के हैं। वैसे तो निगम वाले कितनी हरियाली बढ़ा रहे हैं, ये सबको पता है। लेकिन सवाल ये है कि जनता का पैसा क्या सिर्फ लूटाने के लिए है?
चल रही कुर्सी की लड़ाई
गुरुग्राम नगर निगम में कुर्सी की लड़ाई कोई नई बात नहीं है। निगम में मनचाही पोस्टिग और तबादले के बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। कुर्सी के किस्से यहां कम नहीं है। अगर किसी को पता लग जाए कि कुर्सी हिलने वाली है और कोई दूसरा आने का प्रयास कर रहा है तो चंडीगढ़ मुख्यालय में भी फाइल का वजन बढ़ जाता है। तबादला करवाने या रुकवाने दोनों के लिए नेताओें और अफसरों की हाजिरी भरनी पड़ती है। यहां अब नया किस्सा सुनिए। फरीदाबाद से गुरुग्राम निगम में भेजे गए अधीक्षण अभियंता विजय ढ़ाका अभी कुर्सी पर ठीक से बैठे भी नहीं थे कि कार्यालय के बाहर का बोर्ड बदल गया। यहां से रोहतक भेजे गए अधीक्षण अभियंता सत्यवान अपने तबादले पर कोर्ट से स्टे ले आए। वापस कार्यालय के बाहर अपनी नेम प्लेट टांग दी। विजय ढ़ाका यहीं रहेंगे या रिलीव किए जाएंगे, इस पर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। टैक्स पूरा, सुविधाएं जीरो
प्रदेश का सबसे धनी नगर निगम है गुरुग्राम। प्रदेश को जिस शहर से 60 फीसद राजस्व मिल रहा हो और स्थानीय बाशिदे मूलभूत सुविधाओं को तरसें, ये तो ठीक नहीं है। निगम द्वारा 183 करोड़ रुपये संपत्ति कर के रूप में अब तक वसूले गए हैं। यह राशि प्रदेश में सबसे ज्यादा है। अब बात करते हैं सुविधाओं की। निगम में इन दिनों सिर्फ वही फाइल मंजूर होती है, जिसमें निगम के अधिकारियों की खुशी शामिल हो। अब जनता का क्या है। दो-चार शिकायतें होंगी। सीएम विडो, ई मेल आदि। घूम फिरकर शिकायतें पहुंचेगी निगम अधिकारियों के पास। बड़े ही सलीके से बिना काम किए शिकायत की फाइल भी बंद हो जाएगी। पिछले दो साल में नगर निगम क्षेत्र में न तो नई सीवर लाइनें बिछी हैं और न ही सड़कों का निर्माण हुआ है। करोड़ों खर्च कहां हो रहे हैं, इसका जवाब निगम वालों के पास भी नहीं है।