शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता
स्कूल कॉलेज और ऑफिस सबकुछ घरों से ऑपरेट हो रहे हैं ऐसे में घरों के काम बढ़ गए हैं।
कभी नहीं देखा ऐसा आसमानी आसमान
इतनी उजली सुबह और ऐसी सुरमई शाम, फेफड़ों को राहत और शरीर को ऊर्जा देती प्रदूषण के कणों रहित ताजा हवाओं का मुलायम स्पर्श। कचनार धानी रंगत लिए खुशी से झूमते पत्ते, दूर तक फैले केवल प्राकृतिक सौंदर्य के नजारे, शहर की फिजा इससे पहले इतनी खूबसूरत कभी नहीं थी। खिड़की से दिखने वाला नीला आसमान। आज की पीढ़ी को तो पूरी तरह किसी विदेशी फिल्म का सीन लगता है। लगे भी क्यों न, कृत्रिम रोशनी से सजे भवनों की स्काइलाइन के बीच प्रदूषण के धुएं से ढका आकाश, यही तो देखा था शहरी नौनिहालों ने। कहां से उन्हें आसमान के आसमानी होने का सच पता होगा। लोग अपनी खिड़कियों और बालकनियों से बच्चों को आसमान दिखा रहे हैं। पेड़ों पर पत्तों के असल रंग से परिचित करा रहे हैं और प्रकृति के उस दुर्लभ नजारे से रूबरू करा रहे हैं जो कि शायद लॉकडाउन तक का ही मेहमान है। शाम होते ही बदल जाता है सड़कों का नजारा
कहां से आ रहे हो, कहां जा रहे हो.? वापस लौटो. शाम ढलते ही वीरान सड़कों पर मुसाफिरों की टोली, नाकों पर होने वाली पूछताछ के डर से छिप-छिप कर गलियों से गुजरते लोग, अपने पैतृक घरों को पहुंचने की जद्दोजहद में बॉर्डर पार करने की चुनौती। हर कोई इस कठिन वक्त को अपनों के बीच गुजारने की चाह में है। एमजी रोड पार करते हुए ऐसा ही नजारा दिखा। नाके पर तैनात पुलिसकर्मी एक परिवार को समझा रहे हैं- देखो, आगे चुनौती बहुत बड़ी है, देश में ऐसा लॉकडाउन आज तक नहीं हुआ। पूरी दुनिया खतरे से जूझ रही है, यह कोई छुट्टी नहीं है। जहां हो वहीं रहो कुछ दिन, सब्र रखो। अपने भी मिलेंगे और हालात भी सामान्य होंगे। लगता है बात समझ में आ गई, लोग लौट जाते हैं। लेकिन यह क्या, मुसाफिर तो आगे छिपकर बैठ गए हैं। निकलने के सही मौके के इंतजार में। अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूं.
मैं ही क्यों, इस समय हर कोई राशन की कतारों में नजर आ रहा है। वजह है कोरोना वायरस से ज्यादा घर का राशन खत्म होने की चिता और फैलती अफवाहें। हर कोई इस दौरान होम आइसोलेशन की तैयारियां पुख्ता कर लेना चाहता है। हर कोई दुकान से बार-बार निराश लौटने को मजबूर है क्योंकि दुकानदार का जवाब है कि स्टोर्स खाली हो गए हैं। होम डिलिवरी की आदी इस पीढ़ी को सबसे ज्यादा चिता सता रही है राशन की। और कुछ नहीं मिल रहा है तो दो मिनट में पकने वाला भोजन ही सही.। दुकान पर सामान उठाती उससे पहले दो हाथ झपटे, और रैक खाली। मानो सिर्फ फर्स्ट कम, फर्स्ट सर्व आधार पर ही सामान मिलेगा। लोग पसंदीदा ब्रांड न मिलने पर किसी भी ब्रांड से समझौता करने को तैयार हैं। शॉपिग करने आए हैं तो कुछ तो ले जाएं। तेल, साबुन, मसाले. जो हाथ आया उठा लिया। घरेलू कामकाज से जुड़ती पास्ता पीढ़ी
स्कूल, कॉलेज और ऑफिस सबकुछ घर से ही ऑपरेट हो रहे हैं। ऐसे में घर की मालकिन के काम बढ़ गए हैं। इन चुनौतियों के बीच ही अब घरेलू सहायक भी छुट्टी पर जा रहे हैं। सब काम अपने हाथों से ही करना पड़ रहा है। ऐसे में घर का हर व्यक्ति सहयोग कर रहा है। आज की पीढ़ी जहां रसोई में झांकती तक नहीं थी, आज वह भी काम में हाथ बंटाने को मजबूर है। लोग रचनात्मकता को अपना रहे हैं। बागवानी जैसे शौक फिर से लोगों में पल्लवित होते नजर आ रहे हैं। पिज्जा-पास्ता की डिलिवरी बंद होने के बाद अब किचन देर रात तक रोशन नजर आते हैं। इसे सकारात्मक बदलाव ही कहेंगे कि पास्ता पीढ़ी अब रसोईघर में दिख रही है। लोग घरों की साफ सफाई से लेकर शौक के बाकी काम कर रहे हैं। कुछ भी हो, सतर्कता की इस बयार में घर गुलजार हैं।