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ब्लू व्हेल के बाद अब स्कल ब्रेकर चैलेंज का खतरा

बदलते दौर में पेरेंटिग को लेकर जो चुनौतियां पेश आ रही हैं अभिभावकों को उससे निकलना आसान नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 08:05 PM (IST)Updated: Tue, 18 Feb 2020 06:13 AM (IST)
ब्लू व्हेल के बाद अब स्कल ब्रेकर चैलेंज का खतरा
ब्लू व्हेल के बाद अब स्कल ब्रेकर चैलेंज का खतरा

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम

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बदलते दौर में बच्चों की परवरिश को लेकर जो चुनौतियां पेश आ रही हैं, अभिभावकों को उससे निकलना आसान नहीं है। सोशल मीडिया ने इस अभिभावकों की राहें और दुर्गम कर दी हैं। कुछ समय पहले आए ब्लू व्हेल और मोमो चैलेंज के खतरे ने अभिभावकों को चिता में डाला था। उससे उबरे, तो अब नया स्कल ब्रेकर चैलेंज के रूप में सामने है। अब अभिभावक व स्कूलों के अध्यापक परेशान हैं कि कहीं बच्चे इस नए चैलेंज के जाल में न फंस जाएं। बेहद खतरनाक चैंलेज

तकनीकी विशेषज्ञ शारिक कहते हैं कि इस चैलेंज में लोग खुद ही अपने को हानि पहुंचाते हैं। यह एक तरह का भंवरजाल है। इसमें व्यक्ति आसानी से फंस जाता है और फिर वह खुद को नुकसान पहुंचाने पर मजबूर हो जाता है। यह कोई गेम न होकर, बच्चों और किशोरों में अत्याधिक लोकप्रिय टिकटॉक का एक चैलेंज है। इसमें खुद को चोट पहुंचाकर विडियो बनाकर पोस्ट करना होता है। ये विडियो तीन लोगों के साथ बनाया जाता है। इसमें बीच वाले व्यक्ति को ऊंचाई तक जंप करना होता है। अभिभावकों को स्कूल भेज रहे अलर्ट संदेश

स्कूल भी इस चैलेंज को लेकर सतर्क हैं। बच्चों को किसी प्रकार का नुकसान न हो और वे ऐसी गतिविधियों में लिप्त न हों, इसके लिए स्कूल अभिभावकों को बाकायदा अलर्ट भेज रहे हैं। इसमें संदेश है कि अभिभावक बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखें। ऐसी चुनौतियों के सबसे अधिक शिकार स्कूली बच्चे होते हैं। बच्चों को सिखाएं अच्छे-बुरे की पहचान

बकौल साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन, कहावत है कि किसी के प्रभाव में कुएं में नहीं कूदना चाहिए। बच्चे सोशल मीडिया के प्रभाव में अंधे हो रहे हैं। अभिभावकों और शिक्षकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि वे बच्चों को सही-गलत, अच्छे-बुरे का निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें। इसके अभाव में ही वे पूरी तरह से सोशल मीडिया की भेंड़चाल की दौड़ में कूद रहे हैं। उनकी अपनी निर्णय क्षमता शून्य हो रही है। अगर रोमांच ही दिखाना है, तो शिक्षा के क्षेत्र में दिखाएं।

वर्जन..

'अभिभावक बच्चों को फोन पकड़ाकर अपना दामन छुड़ा लेते हैं। बच्चों की लोगों से, परिवार के सदस्यों से सीधी बातचीत नहीं होती। वे आभासी दुनिया को जीते हैं। उन्हें बताना चाहिए कि वे स्वविवेक से निर्णय लें। दुनिया में बहुत से आकर्षण व रोमांच है। उनके लिए क्या सही और क्या गलत है, इस सोच को विकसित करना चाहिए।'

- रक्षित टंडन, साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट 'हमने अभिभावकों को इस चैलेंज के खतरों से आगाह कर दिया है। बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों को कम करने के लिए सर्कुलर भेजे जा रहे हैं। स्कूल में हम बच्चों को सीधे तौर पर हम यह जानकारी नहीं देना चाहते, लेकिन अभिभावकों को सलाह देते हैं कि बच्चों को अच्छे-बुरे में फर्क करना सिखाएं। उन्हें ऐसे चैलेंजेज से दूर रखें।'

- अदिति मिश्रा, डायरेक्टर प्रिसिपल, डीपीएस, गुरुग्राम


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