चमक-दमक में दब गई गुरुग्राम में शिक्षा की हकीकत
गुरुग्राम यानि कि राज्य का मान-सम्मान प्रतिष्ठा। हरियाणा को विश्व मानचित्र पर चमकता सितारा बनाने वाला शहर। नेता और मंत्री भी इसका नाम पूरे गर्व से लेते हैं। विडंबना ही कही जाएगी कि प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले में शिक्षा के स्तर आज भी बीस वर्ष पहले जैसा ही है। शिक्षा की स्थिति की बात आते ही मंत्री विश्वस्तरीय निजी आइबी स्कूलों या फिर निजी उच्चतर शिक्षा संस्थानों के शानदार भवनों को भले ही उपलब्धि बताकर अपनी पीठ थपथपाते हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। सरकारी स्कूलों की बात आते ही सब चुप हो जाते हैं। शिक्षा किसी भी शहर जिले या देश के भविष्य की रीढ़ होती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऊपरी चमक-दमक के पीछे का कड़वा सच शहर को किस दिशा में ले जा रहा है। बोर्ड परीक्षा के परिणाम इस बात का प्रमाण हैं कि गुरुग्राम सरकारी स्कूली शिक्षा के मामले में सबसे पीछे के पायदानों पर रहता है।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
गुरुग्राम यानि कि राज्य का मान-सम्मान, प्रतिष्ठा। हरियाणा को विश्व मानचित्र पर चमकता सितारा बनाने वाला शहर। विडंबना है कि प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले में शिक्षा का स्तर आज भी बीस वर्ष पहले जैसा ही है। शिक्षा की स्थिति की बात आते ही मंत्री विश्वस्तरीय निजी स्कूलों या फिर निजी उच्चतर शिक्षा संस्थानों के शानदार भवनों को भले ही उपलब्धि बताकर अपनी पीठ थपथपाते हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। सरकारी स्कूलों की बात आते ही सब चुप हो जाते हैं। शिक्षा किसी भी शहर, जिले या देश के भविष्य की रीढ़ होती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऊपरी चमक-दमक के पीछे का कड़वा सच शहर को किस दिशा में ले जा रहा है। बोर्ड परीक्षा के परिणाम इस बात का प्रमाण हैं कि गुरुग्राम सरकारी स्कूली शिक्षा के मामले में सबसे पीछे के पायदानों पर रहता है। अंतिम पायदान पर है गुरुग्राम
लगातार दस वर्षों का परिणाम देखें तो गुरुग्राम अंतिम चार पायदान से ऊपर नहीं बढ़ सकता है। 22 जिलों में वर्ष 2017-18 में गुरुग्राम 18 वें और 2018-19 में बारहवीं कक्षा के परिणाम में 19वें स्थान पर रहा है। हालांकि जिले के पास छात्रो के प्रतिशत में थोड़ा इजाफा जरूर हुआ है लेकिन साइबर सिटी जैसे जिले में यह इजाफा ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है। इस बार जिला का परिणाम 70.05 प्रतिशत रहा। इसके पहले 56 प्रतिशत परिणाम के साथ 18वें स्थान पर रहा था। ऐसी भी स्थिति आई थी कि एक समय 21 जिलों (चरखी दादरी जिले को शामिल करने से पहले)में गुरुग्राम बीसवें पायदान पर था। यह आंकड़े ही जिले में शिक्षा को लेकर सरकार की उदासीनता का प्रमाण देते हैं।
शहरीकरण की बलि चढ़ी सरकारी शिक्षा
शहरीकरण की दौड़ में शहर की ऊपरी चमक तो बढ़ गई लेकिन सतही खूबसूरती नहीं निखर सकी। यहां पर तथाकथित प्रगति की दौड़ में सरकारी स्कूली शिक्षा की बलि चढ़ गई। सरकार का ध्यान विकास पर रहा लेकिन विकास की नींव के बारे में नहीं सोचा गया। शिक्षा का स्तर लगातार गिरता चला गया लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली। हालांकि अधिकारियों का तर्क होता है कि यहां के स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर विद्यार्थी बाहर के प्रदेशों से आए हुए मजदूर वर्ग या कमजोर तबके के होते हैं। ऐसे में इनके माता पिता शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं होते। ऐसे में विद्यार्थियों को स्कूलों से जोड़ने तक के लिए तमाम प्रयास करने होते हैं। स्कूलों में शिक्षकों की संख्या की स्थिति जरूर सुधरी है लेकिन अभी भी जमीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं का लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिल सका है।
------------
पहले की सरकारों ने सरकारी स्कूलों के शिक्षा स्तर बढ़ाने पर जोर नहीं दिया। भाजपा ने सुधार किया तभी रिजल्ट पहले से बेहतर हुआ है। हमने स्कूलों को अपग्रेड करने के साथ-साथ संसाधनों को बढ़ाया है।
रामबिलास शर्मा, शिक्षा मंत्री हरियाणा
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप